Saturday, March 22, 2025
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जीएसटी घटे तो उबरे कैंची और कपड़ा उद्योग

  • कैंची उद्योग से जुड़े लोग बजट में कोई नई बात तो नहीं देखी
  • लेकिन टैक्स बढ़ाए जाने से उम्मीदें थोड़ी जगी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: व्यापार और उद्योग जगत से जुड़े लोग बजट के विभिन्न प्रावधानों का गहनता से अध्ययन कर रहे हैं। मेरठ के प्रसिद्ध कैंची उद्योग से जुड़े लोग इस बजट में अपने लिए कोई नई बात तो नहीं देख रहे हैं, लेकिन विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाए जाने से उनकी उम्मीदें थोड़ी जगी है।

कैंची उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि यह एक कुटीर उद्योग है जिसमें अधिकतर काम हाथ के जरिये किया जाता है। ऐसे में केंद्र सरकार कैंची उद्योग को बचाने के लिए टैक्स में कमी करके राहत देने का काम जरूर कर सकती है।

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कैंची उद्योग से जुड़े मेरठ कैंची कलेक्टर के अध्यक्ष हाजी फरमान उद्दीन, उपाध्यक्ष शरीफ अहमद सैफी, खालिद अहमद सैफी, इरफान अहमद आदि का कहना है कि मेरठ में करीब 150 करोड़ रुपये का वार्षिक टर्न ओवर होता है। मेरठ में कैंची उद्योग से हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है यहां करीब आठ हजार छोटी बड़ी इकाइयां मौजूद हैं।

इसके अलावा हजारों की संख्या में लोग परोक्ष-अपरोक्ष रूप में घरों से जुड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं। इनका कहना है कि भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही कैंची का निर्माण लोहे को पीटकर कैंची का रूप देकर धार ग्राइन्डिंग, फिटिंग आदि के कार्य किये जाते हैं। इसी कारण से एमएसएमई मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कैंची को हैंडीक्राफ्ट आइटम में शामिल किया हुआ था।

परन्तु विदेशों में कैंची का निर्माण मशीनों के जरिये किया जाता है। जिस कारण इसका अंतरराष्ट्रीय एचएसएन कोड मशीनों द्वारा निर्मित कटलरी उपकरणों में शामिल है। इसी के आधार पर भारत में भी कैंची को कटलरी उपकरणों में शामिल कर दिया गया है। जिस कारण कैंची भी उच्चतम टैक्स श्रेणी में आ गई है। इस समय कैंची पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगती है।

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टैक्स की अधिकता के कारण मेरठ में निर्मित कैंची बाजार में नहीं बिक पा रही है। जबकि मेरठ में बनी कैंची का जीआई टैग भी रजिस्टर्ड है। क्योंकि भारत में निर्मित कैंची हैंडीक्राफ्ट अर्थात हाथ से बनती है, इसलिए इसको निम्न टैक्स श्रेणी में शामिल करना आवश्यक है। हाजी फरमान उद्दीन बताते हैं के इस संबंध में आयुक्त उद्योग के माध्यम से एक पत्र केंद्र सरकार को प्रेषित किया गया है।

जिसमें उपरोक्त तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया है। केंद्र सरकार से मांग की गई है कि कैंची को निम्न टैक्स श्रेणी में शामिल कराया जाए। ताकि भारत में बन्द हो रहे कैंची उद्योग को जीवित किया जा सके। तथा फैल रही बेरोजगारी दर को घटाया जा सके। उनका कहना है इस कुटीर उद्योग को बचाने के लिए जीएसटी की न्यूनतम दर कैंची पर लागू किए जाने की आवश्यकता है।

वस्त्र उद्योग पर भी भारी पड़ रहा अलग-अलग टैक्स स्लैब

मेरठ: शहर के हैंडलूम वस्त्र उद्योग की अगर बात की जाए तो इसका मासिक टर्नओवर ही करीब 300 करोड़ रुपये हो जाता है। बजट को लेकर जो चर्चा हैंडलूम वस्त्र उद्योग व्यवसाय में है उसके मुताबिक परोक्ष रूप में कोई राहत नहीं दी गई है अलबत्ता आयकर के प्रावधान का लाभ छोटे व्यापारियों को मिलना तय है।

हैंडलूम वस्त्र व्यापारी संघ के अध्यक्ष नवीन अरोड़ा महामंत्री अंकुर गोयल, पंकज गोयल, नील कमल रस्तोगी आदि का कहना है कि मेरठ में हैंडलूम पावलो व्यवसाय से करीब 500000 लोग जुड़े हुए हैं। इस व्यवसाय का मासिक टर्नओवर करीब 300 करोड़ हो जाता है। बजट में सीधे तौर पर वस्त्र जगत का कोई जिक्र नहीं हुआ है। तीन साल से पूरी दुनिया जो पैंडमिक झेल रही है।

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इससे वस्त्र उद्योग भी अछूता नहीं है। वस्त्र उद्योग के लिए सबसे ज्यादा उलझन वाली बात यह है कि ऐसे दो टैक्स स्लैब में रखा गया है यानी जिस कपड़े की कीमत 1000 से कम है उस पर पांच प्रतिशत जीएसटी का प्रावधान है। जबकि 1000 या इससे अधिक की कीमत वाले कपड़े पर जीएसटी 12 प्रतिशत हो जाती है। वस्त्र उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है जीएसटी के इस अलग-अलग चले के कारण काफी उहापोह की स्थिति रहती है इस उद्योग को सुविधा देने के लिए बेहतर तो यही है कि कपड़े को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए

फिर भी अगर जीएसटी लगाना जरूरी हो तो इसे अधिकतम दो प्रतिशत तक रखा जाना चाहिए। हल्के व्यापारिक दृष्टिकोण से वस्त्र उद्योग के इन पदाधिकारियों और सदस्यों का कहना है कि एमएसएमई का बजट बढ़ने से बैंकों में विश्वास बढ़ेगा। कोलेटरल फ्री रजिस्टर्ड व्यापारी के लिए लाभ होगा। जिसमें वस्त्र उद्योग भी शामिल है। इसके अलावा आईटी पार्क बनने के बाद व्यापार बढ़ जाएगा। वहीं मेरठ में परिवहन सेवा बेहतर होने का लाभ भी दूसरे व्यापार और उद्योग के साथ-साथ वस्त्र उद्योग को मिलने वाला है।

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