जनवाणी फीचर डेस्क |
न्यूयॉर्क में बीते शुक्रवार को सलमान रुश्दी पर हमला हो गया। रुश्दी की 1988 में एक किताब आई थी ‘सैटेनिक वर्सेज’। इसका हिंदी में अर्थ ‘शैतानी आयतें’ होता है। किताब से इस्लामिक कट्टरपंथी भड़क गए। ईरान के सर्वोच्च नेता ने रुश्दी को जान से मारने का फतवा जारी कर दिया। इसके 34 साल बाद 24 साल के एक नौजवान ने रुश्दी की जान लेने की कोशिश की।
इसी तरह का वाकया केरल में 12 साल पहले हुआ था। यहां कट्टरपंथियों के निशाने पर कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर टीजे जोसेफ थे। जोसेफ के खिलाफ कोई फतवा नहीं था, लेकिन उन पर 4 बार हमले हुए। रुश्दी और जोसेफ दोनों पर धार्मिक भावनाएं आहत करने और ईशनिंदा का आरोप लगा।
सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में 24 साल के लड़के ने हमला किया था। रुश्दी पर पैगंबर की बेअदबी के आरोप थे। फोटो हमले के बाद की है। हमलावर को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया।
जोसेफ पर हमले में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, यानी PFI का लिंक सामने आया था। इस संगठन का नाम हाल में देश विरोधी गतिविधियों और हिंसा भड़काने के मामलों से भी जुड़ा है। जोसेफ पर हमला, पहली घटना थी, जब भारत में PFI का नाम ईशनिंदा के खिलाफ किसी मामले में जुड़ा था।
प्रोफेसर टीजे जोसेफ केरल के एर्नाकुलम जिले में रहते थे। घर मुवात्तुपूजा इलाके में था। प्रोफेसर जोसेफ ने परीक्षा के लिए तैयार क्वेश्चन पेपर में ‘मोहम्मद’ नाम लिखा था। बी.कॉम सेकेंड ईयर की परीक्षा के लिए बने पेपर में दर्ज 11वां सवाल पैगंबर की बेअदबी का आधार बन गया।
इसके बाद कट्टरपंथी प्रोफेसर जोसेफ को ढूंढने लगे। 4 महीने बाद 4 जुलाई को जोसेफ चर्च जा रहे थे। रास्ते में जोसेफ पर 8 लोग तलवार और चाकू लेकर टूट पड़े। इस घटना से जोसेफ की जिंदगी बेपटरी हो गई।
प्रोफेसर टीजे जोसेफ फिलहाल आयरलैंड में हैं। वहीं से भास्कर के साथ खास बातचीत में उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई है। प्रोफेसर जोसेफ हिंदी और अंग्रेजी नहीं जानते। मलयालम में उनकी बातों का तर्जुमा उनकी बेटी एमी ने किया। वह वीडियो पर नहीं आना चाहते। वजह, PFI के हमले का डर अब भी है। उन पर हुए हमले की जांच NIA कर रही है और वे नहीं चाहते कि जांच में कोई रुकावट आए।
प्रोफेसर जोसेफ की आपबीती उन्हीं की जुबानी
‘मैं घर से चर्च के लिए निकला था। कार में मां और बहन साथ थीं। पत्नी-बेटा थोड़ी देर बाद आने वाले थे। अचानक कुछ लोगों ने मेरी गाड़ी घेर ली। मैं ड्राइविंग सीट पर था। उन्होंने कार का शीशा तोड़ दिया। मुझे घसीटकर निकाला।
मेरी बहन और मां चिल्लाईं तो उन्हें भी पकड़ लिया। फिर सभी मेरे ऊपर टूट पड़े। उन्होंने तलवार और चाकू से मेरे बाएं हाथ पर कई वार किए। फिर उनमें से एक चिल्लाया- यह बायां हाथ है। अब उनके चाकू और तलवार मेरे दाएं हाथ पर चलने लगे। वे कह रहे थे कि तुमने इस हाथ का इस्तेमाल पैगंबर के अपमान के लिए किया है। इसलिए इस हाथ से अब तुम्हें दोबारा कभी नहीं लिखना चाहिए।
जोसेफ कहते हैं कि उस घटना ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी। मुझे बचाने कुछ पड़ोसी दौड़े। तब तक हमलावर मुझे तकरीबन मरा हुआ छोड़कर भाग चुके थे। मेरा बेटा और पत्नी दौड़कर आए। मैंने बेटे से बस इतना कहा कि मुझे अस्पताल ले चलो। यह घटना एर्नाकुलम जिले के मुवत्तुपुझा इलाके में हुई थी। मेरे घर से बस कुछ दूरी पर था। मेरी हालत बिगड़ रही थी। लोकल हॉस्पिटल ने मुझे तुरंत कोच्चि रेफर कर दिया। वहां 16 घंटे तक सर्जरी चली।
पेपर में पूछे एक सवाल से शुरू हुआ मामला
प्रोफेसर जोसेफ के मुताबिक ये सब शुरू हुआ था मार्च 2010 में। मैं न्यूमैन कॉलेज में पढ़ाता था। सेकेंड ईयर के एग्जाम थे। मुझे क्वेश्चन पेपर सेट करना था। मैंने पंक्चुएशन यानी कॉमा, सेमीकॉलन, एपॉस्ट्रॉफी के टेस्ट के लिए एक क्वेश्चन सेट किया। पेपर का 11वां सवाल।
फिल्म डायरेक्टर पीटी कुंजू मोहम्मद की किताब थी- थिराकथायुदे, रीथी शास्त्रम। इस किताब को केरल स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज ने पब्लिश किया था। किताब से मैंने एक पैराग्राफ क्वेश्चन पेपर के लिए लिया था। कुंजू मोहम्मद ने अपनी फिल्म ‘गरसम’ से इस किताब के लिए कंटेंट लिया था।
किताब में सिजोफ्रेनिया से पीड़ित एक व्यक्ति ईश्वर से गुस्से में संवाद करता है। सिजोफ्रेनिया एक मेंटल डिसऑर्डर है। मैंने किताब के एक पैराग्राफ को अपने सवाल के लिए लिया। किताब में सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति का नाम नसीरुद्दीन था। मैंने पीटी कुंजू मोहम्मद के नाम से मिलान करते हुए उसका नाम ‘मोहम्मद’ रख दिया। बस यही गुनाह हो गया।
यह बात कट्टरपंथियों को रास नहीं आई। परीक्षा के एक हफ्ते बाद ही विरोध-प्रदर्शन होने लगे। पेपर संवेदनशील इलाकों में बांटा जाने लगा। उन्हें लगा कि मैंने पैगंबर का नाम लिखा है।
ईशनिंदा में गिरफ्तारी हुई, एक हफ्ते जेल में रहे
जोसेफ कहते हैं कि एक हफ्ते के भीतर ही मामला बढ़ गया। मैं डर रहा था कि कहीं कट्टर इस्लामिक संगठन इसमें शामिल न हों। अगर ऐसा हुआ तो फिर संभालना मुश्किल होगा। और ऐसा ही हुआ। कॉलेज ने भी मेरा सपोर्ट नहीं किया। मुझसे लिखित में जवाब मांगा गया। मैंने दिया, लेकिन शायद मेरे विरोधी सुनने को तैयार नहीं थे।
अप्रैल की शुरुआत में मैं एक हफ्ते जेल में रहा। केरल पुलिस ने मुझ पर IPC की धारा 295 लगाई। ये धारा धार्मिक आस्था को आहत करने के आरोप में लगती है। मुझे ईशनिंदा के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया। हालांकि बाद में बेल मिल गई।
दो महीने में 4 हमले, कॉलेज ने बर्खास्त कर दिया
जोसेफ ने बताया कि मेरे ऊपर पहला हमला क्वेश्वचन पेपर आउट होने के डेढ़ महीने बाद 7 मई को हुआ। दूसरा हमला 17 मई, तीसरा 28 मई और चौथा 4 जुलाई 2010 की सुबह। पहले तीन हमलों में मैं बच गया। चौथा हमला प्लानिंग के साथ किया गया, इसमें मैं नहीं बच पाया। मैं, मेरी नौकरी, मेरा परिवार सब तहस-नहस हो गया।
हमलावरों ने मेरे साथ जो किया, वह बहुत क्रूर था, लेकिन चर्च और मेरे परिचितों ने जो किया, वह उससे भी ज्यादा क्रूर था। चर्च में मेरे खिलाफ चिट्ठियां लिखीं और पढ़ी गईं। मेरी और मेरे परिवार की एंट्री रोक दी। वे डरे हुए थे PFI से। मेरे कई दोस्तों और परिचितों ने हमारे पास आना छोड़ दिया। उससे भी ज्यादा बुरा हुआ, जब चर्च के मैनेजमेंट से चलने वाले कॉलेज ने पहले मुझे सस्पेंड, फिर बर्खास्त कर दिया।
सामाजिक बहिष्कार से टूटी पत्नी ने 2014 में सुसाइड कर लिया
नौकरी जाने और सामाजिक बहिष्कार से पत्नी सलोमी टूट गई थीं। 4 साल मानसिक दबाव सहने के बाद 19 मार्च 2014 को उन्होंने खुदकुशी कर ली। परिवार अब पूरी तरह टूट गया। सलोमी ने मौत को गले लगाया, तब वह 48 साल की थीं। जोसेफ करीब 49 साल के।
बायां हाथ बचा था, उसी से किताब लिखी ताकि दुनिया सच जाने
जोसेफ के मुताबिक मैंने अपनी बायोग्राफी मलयालम में लिखी। इसका अंग्रेजी तर्जुमा A Thousand Cuts: An Innocent Question and Deadly Answers नाम से करवाया। हिंदी में इसका मतलब हुआ ‘हजारों घावः एक मासूम सवाल और उसका जानलेवा जवाब।’ मैं दुनिया को बताना चाहता था कि मेरे साथ क्या हुआ था।
उस वक्त लोकल मीडिया ने भी मुझे ईशनिंदा का दोषी ठहरा दिया था। मीडिया मेरे साथ मजबूती से खड़ा नहीं हुआ। कांग्रेस और मुस्लिम लीग भी PFI के साथ मेरे खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। मेरे साथ न सरकार थी, न कॉलेज और न ही समाज।
जोसेफ कहते हैं कि मेरा पहला मकसद दुनिया को यह बताना था कि सच में मेरे साथ क्या हुआ। उस एक हमले ने कैसे मेरी जिंदगी तबाह कर दी। मेरा परिवार टूट गया। दूसरा मकसद था यह बताना कि कट्टर इस्लामिक संगठन ईशनिंदा के नाम पर किसी भी निर्दोष के साथ कितना क्रूर बर्ताव करते हैं। उन्हें हमारा कानून स्वीकार नहीं। वह आज भी अपने कानून पर चलते हैं।
इस साल के केरल साहित्य अकादमी अवॉर्ड ने जोसेफ के हजारों घाव पर हल्का सा मरहम रखा। किताब को अवॉर्ड मिला तो दूसरी तरफ जोसेफ का मकसद भी पूरा हुआ। दुनिया में उनके हजारों घाव, उस सवाल और जवाब में हुई क्रूरता की चर्चा हुई। 10 साल पहले जिस हमले से जोसेफ की जिंदगी बिखर गई थी, हमले के बाद उन पर क्या बीती, वह कहानी लोगों तक पहुंच गई।
PFI ने कहा- हमले में हमारे सदस्य शामिल नहीं
इस मामले में PFI का कहना है कि हमले से उसका कोई कनेक्शन नहीं है। संगठन के जनरल सेक्रेटरी अनीस अहमद ने हमें बताया कि 2010 में केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि हमले और साजिश में PFI का हाथ नहीं है। कोर्ट से क्लीन चिट मिल गई, पर मीडिया से नहीं। PFI की स्टेट यूनिट ने पहले दिन से जांच में सहयोग करने की बात कही थी। हमने यह भरोसा सरकार और पुलिस को दिया था।
NIA ने जिन 13 लोगों को आरोपी बताया है, वे सभी आर्म्स एक्ट में पकड़े गए। NIA की एंट्री सीधे जोसेफ केस में हुई ही नहीं। आर्म्स एक्ट को लेकर उसने जांच शुरू की। यह बात सही है कि जोसेफ केस में शामिल शायद 2 लोग PFI से पहले कभी जुड़े थे। हमले के वक्त वे संगठन के सदस्य नहीं थे।
2007 में बना PFI अब 20 से ज्यादा राज्यों में फैला
2007 में बना PFI अब 20 राज्यों में काम कर रहा है। इसका एक संगठित नेटवर्क है। इसका मजबूत आधार दक्षिण भारत में ही है। हाल ही कर्नाटक में हिजाब विवाद हुआ तो PFI ने इसका इस्तेमाल अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए किया। PFI पर जिहाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगते रहे हैं।