योगी सरकार लाख आदेश निर्देश जारी कर ले। एसएसपी साहब भले ही तमाम कोशिशें कर लें, मगर एफआईआर तो थानेदार साहब को ही करना है। सारी पत्रावली घूम फिर कर थाने पर ही आना है। अब थानेदार साहब मुकदमे को तो अपने हिसाब से ही लिखेंगे और विवेचना भी अपने हिसाब से करेंगे। जरूरत पड़ी तो शिकायती पत्र भी लिखवा लेते हैं। पीड़ित की पीड़ा से उनका कोई सरोकार नहीं है, उन्हें तो बस अपनी सहूलियतें देखनी है। एक गंभीर बात और अगर आपकी सुनवाई हो भी गई। मुकदमा गंभीर धाराओं में दर्ज भी कर लिया गया तो भी कार्रवाई तभी होगी जब थानेदार साहब चाहेंगे। इसको पढ़कर सहसा आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन इस परत दर परत रिपोर्ट को पढ़कर आप भी कह उठेंगे बात तो पते की है, मगर सवाल अभी भी वहीं है।
- अभिषेक की हत्या में मुख्य आरोपी ढाबा मालिक मनोज शर्मा अभी तक क्यों नहीं पकड़े गए?
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जिले में एक थाना परतापुर है। इसी थाना इलाके में एनएच 58 पर एक ढाबा चलता है, जिसका नाम शिवा टूरिस्ट ढाबा है। घटना 19 अगस्त की है। एक ग्राहक खाना खाने के लिए ढाबा पर रूकता है। ग्राहक खाने में नमक कम होने की शिकायत ढाबे के मैनेजर और वेटर्स से करता है। बातों ही बातों में विवाद बढ़ जाता है। आरोप है कि ढाबा संचालक और उसके कर्मी ग्राहक युवक को पीटने लगते हैं। ग्राहक युवक अपनी जान बचाकर सड़क की ओर भागने लगता है।
इतने में ग्राहक युवक एक कैंटर की चपेट में आ जाता है और उसकी मौत हो जाती है। आरोपियों की अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई। एक भाजपा नेता के दबाव में आरोपियों को बचाने की कवायद चल रही हैं। यदि ढाबा मालिक का कोई गुनाह नहीं था तो फिर उसे सील क्यों किया, फिर उसकी सील क्यों हटाई?
बता दें कि ग्राहक युवक अभिषेक बुलंदशहर जिला अंतर्गत गांव कर्मपुरा का निवासी है। अभिषेक अपने दो दोस्त आकाश, सूरज के साथ ढाबे पर खाना खाने के लिए रुका था। अचानक वहां ग्राहक अभिषेक ने दाल मे कम नमक की शिकायत कर दी, इसी बात पर ढाबा मैनेजर और युवक का विवाद हुआ। मैनेजर निशांत ने फोन कर तभी ढाबा संचालक एक भाजपा नेता को बुलाया।
आरोप है कि भाजपा नेता ने अपने साथियों के साथ वहां पहुंचकर अभिषेक को पीटना शुरू कर दिया। आरोप है कि मनोज ने अभिषेक को दौड़ा दौड़ाकर पीटा, तभी अभिषेक दौड़ते वक्त हाईवे से गुजर रहे ट्रक की चपेट में आ गया मौके पर मौत हो गई।
आखिर ढाबे पर पुलिस की मेहरबानी क्यों?
शिवा टूरिस्ट ढाबा पर 19 अगस्त को घटना होती है। वारदात में ग्राहक अभिषेक निवासी दिल्ली को जान से मारने का आरोप मृतक के परिजन लगाते हैं। एफआईआर भी लिखी जाती है, मगर सवाल ढाबे का है। परतापुर पुलिस ने ढाबा को सील क्यों नहीं किया ? फिर सील क्यों हटाई? ये सब सवालों के घेरे में हैं। पुलिस की इतनी मेहरबानी ढाबा मालिक के उपर क्यों बरस रही है
और तो और बताया जा रहा ढाबा मालिक को पहले पुलिस गैर इरादत्तन हत्या के मामले में आरोपी बनाकर चल रही थी, लेकिन फिर अचानक उनका नाम भी एफआईआर से गायब कैसे हो गया ? कम से कम आईपीसी में तो यह व्यवस्था है कि घटना स्थल को पुलिस सीज कर सकती है। ढाबा को खोलने का काम अदालत पर छोड़ती। यानि परतापुर थाने की पुलिस ने मृतक के परिजनों के आरोपों को ताक पर रखकर काम किया।
तभी तो ढाबा मालिक का नाम तहरीर में होते हुए उसका नाम एफआईआर से गायब कैसे हो गया ? ये बड़ा सवाल हैं। इसके बाद घटना स्थल तो शिवा टूरिस्ट ढाबा है, उसको सील क्यों नहीं किया गया ? यदि सबकुछ ठीक था तो फिर सील क्यों लगाई और फिर सील क्यों खोली गई। ये तमाम बिन्दु जांच का विषय हैं।
जांच से पहले आरोपी का नाम गायब
पीड़ित परिवार ने पुलिस को जो तहरीर दिए थे उसके हिसाब से मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। अलबत्ता बताया जा रहा है कि ढाबे के असली मालिक मनोज शर्मा का नाम एफआईआर से गायब है। यह करिश्मा पुलिस ने कैसे किया होगा ? यह भी जांच का विषय है।
अब यह जांच में मामला खुलेगा कि कहीं ऐनवक्त पर पीड़ित परिजनों से तहरीर तो बदलवाई नहीं गई। तभी तो एफआईआर में नहीं है अथवा पुलिस ने स्वयंभू तरीके से निर्णय ले लिया होगा कि कथित नेता वारदात में शामिल नहीं था। मामला तो तभी खुलेगा जब गैर विभागीय जांच ईमानदारी से होगी।
एफआईआर से ढाबा मालिक का नाम गायब
मृतक युवक के परिजनों ने ढाबा मालिक मनोज शर्मा, मैनेजर निशांत, कार सवार तीन युवकों के खिलाफ तहरीर दी, लेकिन परतापुर पुलिस ने निशांत शर्मा व कुछ अज्ञात के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की।
मीडिया के दबाव में दर्ज हुआ था मुकदमा
मीडिया में जबरदस्त कवरेज के चलते पुलिस हड़बड़ा गई थी और फिर आनन फानन में तीन अज्ञात कार सवार और शिवा टूरिस्ट ढाबे के मैनेजर पर मुकदमा लिखकर केस को जांच के लिए कार्रवाई पूरी दिखा दी गई।
अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुए आरोपी
19 अगस्त को हुई वारदात केस में परतापुर के हाथ आरोपी नहीं आए। वैसे तो पुलिस की भागदौड़ में कोई कमी नहीं है। धरपकड़ की कार्रवाई भी चल रही है। बस आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पा रही है। सवाल यहां उठता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस आरोपियों को बचने का पूरा मौका दे रही है। ताकि आरोपी कानूनी दांवपेंच का इस्तेमाल करके बचने का रास्ता निकाल सकें।
पुलिस की चुप्पी कुछ कहती है…
इस केस में पुलिस की चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह तय है यदि तहरीर के मुताबिक एफआईआर नहीं किया गया है तो पूरा का पूरा मुकदमा अल्पीकरण का शिकार हुआ है। पुलिस मुकदमें की धाराओं में फेरबदल करके आरोपियों को बचाने के लिए रास्ता निकाल रही है।
पुलिस की चुप्पी कुछ तो कहती है…
19 अगस्त को घटी घटना के बाद भी पुलिस पूरे मामले पर चुप्पी साधे बैठी रही। न लाश की शिनाख्त हुई थी और न ही परिजनों को तलाशा गया। बल्कि पुलिस चुपचाप ढाबा संचालक को बचाने में जुटे रही। दूसरे दिन परिजनों को बेटे के मौत के बारे में बताया गया। परिजनों की तहरीर पर मुकदमा भी दर्ज नहीं किया गया।
ये बोली-सीओ
इस केस संदर्भ ने ‘जनवाणी’ ने सीओ ब्रह्मपुरी सुचिता सिंह से बातचीत की। सीओ ने बताया कि शिवा टूरिस्ट ढाबा सील नहीं किया गया था, बल्कि 30 दिन की नोटिस पीरियड में था। सीओ सुचिता सिंह ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ गैर जमानतीय वारंट हो गया है। गिरफ्तारी के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।