Friday, March 29, 2024
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सोचो साथ क्या जाएगा….!

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सुधांशु गुप्त
सुधांशु गुप्त
लातिन और उत्तरी अमेरिका के लेखकों की कहानियां पढ़ते हुए लगता है, मानो आपके भीतर का निराकार आकार ले रहा है। यही कहानियों की सफलता भी है। कहानियां कई तरह की हो सकती हैं, होती हैं। सुनने वाली, सुनाने वाली, घटनाओं पर आधारित कहानियां, परिवेश की कहानियां, बिंबो, सपनों और फैंटेसी से उपजी कहानियां। लेकिन मुझे हमेशा लगता रहा कि कहानियों का कोई एक प्रकार अब भी ‘मिसिंग’ है। स्पेनिश लेखिका इसाबेल एलिंदे ने एक जगह लिखा है, कुछ ऐसी खुफिया कहानियां भी होती हैं, जो मन की परछाइयों में छिपी रह जाती हैं, किसी जीवाणु की तरह ये हिलती-डुलती हैं और कई बार वक़्त के साथ इनकी बदसूरत सूंडें उगने लगती हैं और आखिरकार ये गन्दगी या परजीवी तत्वों से ढंक जाती हैं। स्मृति के इन प्रेतों को मारने के लिए कभी-कभी उन्हें कहानी की शक्ल में सुनाना जरूरी हो जाता है।
वरिष्ठ कथाकार, अनुवादक और विचारक जितेन्द्र भाटिया की विश्व साहित्य संकलन सीरीज का पहला खंड (लातिन और उत्तरी अमेरिका), ‘सोचो साथ क्या जाएगा’ (संभावना प्रकाशन) पढ़ने के बाद मन पर कहानियां को लेकर छाई धुंध दूर हो गई। इस संग्रह में इसाबेल एलिंदे, गैब्रिएल गार्सिया मार्क्वेज, जोर्जे लुई बोर्खेज, बर्नार्ड मालागुड, जॉय विलियम्स, जॉन स्टेनबेक की कहानियां हैं। इन कहानियों में बाजारवाद, उपभोक्ता संस्कृति, प्रेम, स्त्री विमर्श, तानाशाही के खिलाफ उठती आवाजें सब सुनाई देती हैं लेकिन इनमें कहानीपन भी मौजूद है। बल्कि किस्सागोई अपने शीर्ष पर दिखाई पड़ती है। यही इनकी खूबसूरती है। मार्क्वेज, कोलंबिया (स्पेनिश) जादुई यथार्थ के जनक माने जाते हैं, लेकिन किस्सागोई उन्होंने अपने दादा-दादी से सीखी। ‘जादुई यथार्थ’ उनकी कहानियों में महज एक चमकदार आवरण है, या उनकी खास शैली की तह में जन की विलक्ष्णतम और असंभाव्य सपनों को हकीकत में बदल डालने की एक गहरी चाह मौजूद है, यह उनकी कहानियों को पढ़कर ही जाना जा सकता है। उनकी दो कहानियां इस संग्रह में मौजूद हैं-विकराल डैनो वाला एक बहुत बूढ़ा आदमी और दुनिया का सबसे खूबसूरत डूबा हुआ आदमी। संयोग से दोनों ही कहानियों का परिवेश और दुनिया एक-सी है। पहली कहानी में उपभोक्ता संस्कृति का नग्न रूप दिखाई देता है तो दूसरी कहानी मानवता की वकालत करती दिखाई देती है। दोनों ही कहानियों में बूढ़ा व्यक्ति मुख्य किरदार है। पहली कहानी में बड़े डेनो वाला एक बूढ़ा आदमी मिलता है तो दूसरी में एक विशाल बूढ़े की लाश मिलती है। कहानियों का प्रवाह, संवेदना और रवानगी धीरे-धीरे आपको अपनी ग्रिप में ले लेती है। परिकथाओं-सी ये दोनों कहानियां आपकी चेतना पर गहरा असर डालती हैं।
यह भी संयोग ही है कि लातिन अमेरिका का जादुई यथार्थ अपनी कहानियों में अधिक सहजता से, ग्राह्य भाषा में, चित्रित करने वाली इसाबेल एलिंदे की दो कहानियां भी इस संग्रह में है। पहली कहानी है-दो शब्द। इस प्रेम कहानी को एलिंदे ने यथार्थ और फंतासी के सहारे लिखा है। कहानी की नायिका शब्दों को बेचकर अपनी आजीविका चलाती है। एक दिन एक कुख्यात लुटेरे कर्नल के आदमी उसे उठा कर ले जाते हैं। कर्नल उससे कहता है कि वह राष्ट्रपति बनना चाहता है, क्या वह भाषण के लिए मुझे शब्द बेच सकती है? नायिका उसके कान में दो शब्द कहती है और वापस लौट आती है। समय बीतता है। कर्नल के आदमी उसे दोबारा उठाकर ले जाते हैं। कर्नल और नायिका की निगाहें मिलती हैं, सिपाहियों को उसी वक्त समझ आ गया कि उनके सरदार के लिए शापित शब्दों के तिलिस्म से बाहर निकल पाना अब असंभव है। नायिका आगे बढ़ते हुए कर्नल का हाथ अपने हाथ में लेती है और कर्नल की तेंदुएं जैसी खूंखार आंखें अभूतपूर्व कोमलता से सरोबार होती चली जाती हैं। आप सोचते रहिए कि वे दो शब्द क्या थे। इस कहानी का शिल्प, भाषा और कथ्य पाठकों पर जादुई प्रभाव छोड़ता है। यहां जादुई यथार्थ गढ़ा हुआ उपकरण न होकर जिंदगी जीने का एक सहज ढंग है। इसाबेल एलिंदे की ही एक अन्य कहानी है, जिस मिट्टी से बने हैं हम। यह कहानी बेहतरीन कहानियों में है, जिसमें एलिंदे ने जीवन को बचाए रखने की जद्दोजहद को दिखाया है। एलिंदे स्वयं स्वीकार करती हैं, जीवन के एक छोटे से क्षण को बचाने के लिए भी अपना समूचा लेखन, अपना अस्तित्व, अपना सब कुछ बहुत सहजता से न्यौछावर किया जा सकता है। यही बात एलिंद कहानी में कहती हैं।
संग्रह की एक अन्य महत्वपूर्ण कहानी है-नदी का तीसरा किनारा। जोआओ ग्विमारेज रोसा द्वारा लिखित इस कहानी में एक नदी है, पिता हैं, पुत्र है और बदलता समय है। नदी समय का रूपक है तो पिता जीवन का प्रतीक। पिता एक दिन नाव लेकर नदी में चले जाते हैं। बेटा उन्हें दूर से देखता रहता है। काल का यह टुकड़ा बीतता है। अब बेटा बड़ा हो चुका है, वह चाहता है कि पिता घर वापस आ जाएं। एक दिन वह पिता की जगह लेने नदी पर पुहंचता है। जब वह अपनी इच्छा पिता को सुनाता है तो पिता वापस उस तक आने लगते हैं, बेटा डर कर वहां से भाग जाता है। समीक्षक विलियम फॉस्टर का इस कहानी के बारे में कहना है कि यह कहानी ‘ईश्वर द्वारा आदमी के बहिष्कार’ का एक विलक्षण रूपक है, जिसमें हर स्थिति के पीछ कुछ और, एवं उस ‘ओर’ के पीछे कुछ और अव्यक्त छिपा है। विश्व साहित्य की इस कालजयी बहुआयामी कहानी में अजनबीयत और मानवीय यंत्रणा की अनेक छवियां दिखाई देती हैं।
कहानियां और भी हैं। जॉन स्टेनबेक की ‘चौकसी रखने वाले’, बोर्जे लुई बोर्खेज की ‘वह दूसरा’ और जॉय विलियम्स की ‘बाहर निकलने का रास्ता’। विलियम्स संयुक्त राज्य अमेरिका की हैं। उन्होंने इस कहानी में उपभोक्ता जीवन के खंडहरों को दिखाया है। वह पूरी कहानी में उपभोक्ताधर्मी समाज से बाहर आने का रास्ता खोज रही हैं। सारे विकास के बावजूद स्त्री यहां कमजोर और असहाय दाखाई देती है। यह कहानी स्त्री विमर्श के भी रास्ते खोलती है।  ‘सोचो साथ क्या जाएगा’ में कुछ महत्वपूर्ण लेख भी हैं। जुआन विलोरी का आज की शाम डिज्नीवर्ल्ड के नाम, हावर्ड जिन का- जन प्रतिरोध और जेल डायरी की उलटी पुलटी दुनिया, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (यिद्दीश) के आइजेक वैशविस सिंगर का वक्तव्य-मैं बच्चों के लिए क्यों लिखता हूं। इन लेखों से आपको लातिन और उत्तरी अमेरिका की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृति और साहित्यिक दुनिया दिखाई देगी, जो आपको कहानियों के समझने में मदद करेगी। जितेन्द्र भाटिया ने कहानियों के साथ लेखकों के लेखन पर भी बात की है, जो अनुवाद की दुनिया में कम देखने को मिलता है। यह किताब और इसकी कहानियां-लेख जहन पर लगे बहुत से जाले साफ करने में सहायक हो सकते हैं।

फीचर डेस्क Dainik Janwani
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