Tuesday, April 16, 2024
- Advertisement -
HomeUttar Pradesh NewsMeerutक्रांतिधरा पर कदम पड़े और घंटाघर से जुड़ा नेताजी का नाम

क्रांतिधरा पर कदम पड़े और घंटाघर से जुड़ा नेताजी का नाम

- Advertisement -
  • सैकड़ों युवाओं ने आजाद हिन्द फौज से जुड़कर जंगे-आजादी को मंजिले-मकसूद तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: क्रांतिधरा मेरठ 1857 की पहली क्रांति से लेकर आजादी हासिल होने तक क्रांतिकारियों की महत्वपूर्ण गतिविधियों की साक्षी रही है। इन्हीं में शामिल रहे नेताजी सुभाषचन्द बोस का मेरठ की धरा ने ऐतिहासिक स्वागत किया और उनसे प्रेरणा लेकर सैकड़ों युवाओं ने आजाद हिन्द फौज से जुड़कर जंगे-आजादी को मंजिले-मकसूद तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की।

इतिहास के पन्नों में जाकर आजादी की जंग के दौरान होने वाले घटनाक्रम को अपनी स्मृतियों में संजोने वाले डा. अमित पाठक बताते हैं कि 1930 का दशक स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। इस पीरियड में बड़े-बड़े क्रांतिकारियों ने मेरठ आकर आजादी की जंग में भाग लेने के लिए लोगों को प्रेरित किया। नेताजी सुभाषचन्द बोस का भी इस अवधि में दो बार मेरठ आगमन हुआ। हालांकि उनके कांग्रेस से मतभेद भी हुए, लेकिन क्रांतिधरा मेरठ के वाशिंदों के लिए नेताजी के लिए विशेष आदर और श्रद्धा का भाव रहा। यही कारण था कि कांग्रेस के विरोध के बावजूद हजारों की संख्या में लोग उनके स्वागत के लिए उमड़े, और उनकी सभाओं में भाग लेते हुए पूर्ण समर्थन दिया।

नेताजी ने दो अलग-अलग सभाएं करते हुए आजादी के आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि मेरठ से काफी संख्या में युवा आजाद हिन्द फौज से जुड़े, और स्वतंत्रता संग्राम में जीजान से जुटकर अंग्रेजों को भारत से भगाने में अपना योगदान दिया। इतिहास में गहन रुचि रखने वाले मेजर डा. हिमांशु अपने परदादा जिराज सिंह, भवानी सिंह का नेताजी सुभाषचन्द बोस से गहरा जुड़ा होने का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए नेताजी सुभाषचन्द बोस की विचारधारा को भले ही गरम दल से जुड़ी माना जाए, लेकिन वे नरम दल की ओर से चलाए जा रहे आंदोलन के विरोधी हरगिज नहीं थे।

मेरठ की क्रांतिधरा में जब नेताजी का आगमन हुआ, तो टाउन हाल में बारिश के बीच दिए गए अपने भाषण में उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया, कि सिर्फ खादी पहनकर आजादी मिल सकती, तो मैं दो पहन लेता। अपने पूर्वजों के साथ-साथ बोस और गांधी के विचारों में सामंजस्य स्थापित करने वाले विचारकों के हवाले से मेजर हिमांशु का कहना है कि नेताजी खादी आंदोलन के विरोधी न होकर, इसे आंदोलन का एक हिस्सा मानते थे। इसी कारण उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया।

जिसके माध्यम से विभिन्न मोर्चों से अंग्रेजों को इस बात का अहसास कराया कि जरूरत पड़ने पर भारतीय क्रांतिकारी जान की बाजी लगाने से भी पीछे रहने वाले नहीं हैं। उनके इस काफिले में मेरठ समेत समूचे भारत से लोग जुड़ते चले गए। इतिहासकारों का कहना है कि मेरठ में जब नेताजी का आगमन हुआ,तभी ऐतिहासिक घंटाघर का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया। घंटाघर पर नेताजी का नाम आज भी उनके प्रति मेरठ के लोगों के प्यार, आदर और श्रद्धा का उदाहरण पेश कर रहा है। वहीं राजकीय संग्रहालय में नेताजी सुभाषचन्द बोस के मेरठ आगमन से जुड़े दस्तावेज और चित्र सहेजकर रखे गए हैं।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments