रबी फसलों में प्रमुखता से चना, मसूर, गेहूं इत्यादि की कटाई, थ्रेसिंग कार्य चल रहे हैं। किसान बंधुओं से कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की ओर से परामर्श एवं अनुरोध है कि इस समय फसल सुरक्षा के लिए विशेष सावधानियां रखें। कटी हुई फसलों को बिजली के तारों के नीचे, ट्रांसफार्मर के पास, सड़क के किनारे ढेर न लगाएं।
जिससे दुर्घटना एवं आगजनी न हो सके। साथ ही फसल की थ्रेसिंग करते समय स्वयं की, श्रमिकों की एवं जन सामान्य को भी असुविधा न हो, इसलिए एकदम सड़क किनारे के खेतों में थ्रेसिंग न करें। जिससे सड़कों पर डस्ट/बारीक भूसा जमा होकर वाहन दुर्घटना भी न हो तथा थ्रेसिंग कार्य में संलग्न व्यक्तियों को समय-समय पर आराम कराते हुए चौकन्ने होकर ही सावधानीपूर्ण थ्रेसिंग करें।
बीजोत्पादन के लिए थ्रेसर की गति 400-500 आर.पी.एम. प्रति घंटा रखें। थ्रेसर चालक हमेशा वहां मौजूद रहे जिससे थ्रेसर के चालन स्थिति में कोई दुर्घटना न हो सके। इसके लिए निगरानी करते, कराते रहें। थ्रेसर पर कार्य करने वाले व्यक्ति ढीले कपड़े, गले मेंतौलिया /अगेछा न डाले तथा धूम्रपान कतई न करें। बतौर सुरक्षा एवं सतर्कता के लिए नजदीक में ही पानी का टैंक तथा रेत रखें जिससे कोई घटना न हो सके।
किसान बंधुओं जब तक फसल सुरक्षात्मक तरीके से भण्डारण नहीं कर लेते तब तक कतई लापरवाही न करें और सुरक्षात्मक तरीके से रबी फसलों की कटाई उपरांत संसाधन क्रिया करायें। विद्युत विभाग एवं आपदा प्रबंधन के कार्यालय तथा उनके अधिकारियों का संपर्क नम्बर जरूर रखें।
यह सच है कि किसान रात -दिन मेहनत करके फसल पकाते हैं । लेकिन जब यही पकी फसल आग की भेंट चढ़ जाती है, तो किसान बहुत दुखी हो जाते हैं, क्योंकि इस आग में उनके सारे अरमान भी जल जाते हैं। बाजार की देनदारी , बेटी की शादी जैसे कई अन्य कार्य अधूरे रह जाने से वे चिंतित हो जाते हैं। लेकिन आवेश में आकर खुदकुशी करने जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए , क्योंकि जीवन की कीमत फसल के मूल्य से ज्यादा होती है।
आपदा की इस घड़ी में किसानों को धैर्य रखने की जरूरत है। आग से हुए नुकसान की भरपाई तो अगले साल की जा सकती है , लेकिन जीवन की भरपाई कभी नहीं हो सकती है। यदि फसल कट गई है तो उपज को खेत से तुरंत हटा दें, क्योंकि खेत में आग लगने पर तेजी से फैलती है।