कबीरदास जी के यहां सत्संग में एक किसान प्राय: आया करता था। कबीरदास जी अक्सर उससे कुछ समय ईश्वर का ध्यान करने को कहते थे। इस पर उस किसान का जवाब होता था कि प्रभु , अभी बच्चे छोटे हैं। जब वे जवान हो जाएंगे तब मैं अवश्य भजन पूजन करूंगा। बच्चे बड़े हुए तो किसान कहने लगा कि इनका विवाह हो जाए तो पूजन करूं। लड़कों का विवाह हो गया, किसान के पोते भी हो गए। अब किसान का नया तर्क की पोतों के साथ समय नहीं मिलता, ये थोड़ा बड़े ही जाएं तो ईश्वर का ध्यान करूं।
इसी सांसारिक माया में रमे किसान की मृत्यु हो गई। जब कबीरदास जी को पता चला तो उन्होंने ध्यान लगाकर देखा कि किसान ने अपने ही घर में एक गाय के बछड़े के रूप में जन्म लिया है। क्योंकि किसान को अपनी गाय से बहुत प्यार था और मृत्यु के समय उसका ध्यान अपनी गाय में रहा। जिसके परिणामस्वरूप उसने गाय के बछड़े के रूप में अपने ही घर जन्म लिया। जब बछड़ा बड़ा हुआ तो उसे हल में जोता गया। जब वह बूढ़ा हो गया तो उसे तेली को बेच दिया गया। तेली के यहां वह कोल्हू में जोता गया।
जब वह बिल्कुल काम का नहीं रह गया तो किसान के बेटों ने उसे एक कसाई को बेच दिया। कसाई ने उसे काटकर उसका मांस बेच दिया और उसकी खाल को नगाड़ा बनाने वालों को बेच दिया। अब नगाड़े वाले उसकी खाल को पीट पीटकर बजाने लगे। इस पर दुखी होकर कबीरदास जी ने लिखा-बैल बने हल में जुते, ले गाड़ी में दीन। तेली के कोल्हू रहे, फिर घेर कसाई लीन।। मांस कटा बोटी बिकी, चमड़न मढ़ी नक्कार। कुछ कुकरम बाकी रहे तिस पर पड़ती मार।। हम माया और काल के छलावों में उलझे रहते हैं, मन भक्ति की ओर जाने ही नही देता है और जीवन का अंतिम दिन आ जाता है।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा