सबाहत की इन कहानियों में आपको मुस्लिम माहौल, मुस्लिम खान-पान, मुस्लिम पहरावा सब दिखाई देगा, लेकिन यह भी दिखाई देगा कि औरत की स्थिति दोनों तरफ यकसां हैं। सबाहत आफरीन औरत की बंद मुट्ठियों के जुगनुओं को आजाद करना चाहती हैं। सबाहत को अपनी कहानियों में परिपक्वता लानी होगी तभी वह भविष्य में एक अच्छी कहानीकार के रूप में जानी जाएंगी। सबाहत आफरीन युवा लेखिका हैं। वह अपने आसपास की जिंदगी और माहौल को बेहद संजीदा नजरों से देखती हैं। घटनाओं, किरदारों और चीजों को देखने का उनके पास एक नजरिया है। खासतौर पर स्त्रियों का जीवन, उनके जीवन की विसंगतियां, उनके साथ होने वाले भेदभाव उन्हें परेशान करते हैं। ऐसे किस्सों की उनके पास भरमार है, जहां स्त्री की अलग-सी छवियां दिखाई दें। बातचीत में भी जब सबाहत किस्से सुनाती हैं तो वह बेहद भावुक हो जाती हैं। उनकी दिली ख्वाहिश है कि स्त्रियों के लिए भी एक ऐसी दुनिया बने या हो जहां वे अपनी ख्वाहिशों को अंजाम दे सकें। वह चाहती हैं कि तलाक के बाद यदि औरत दूसरा निकाह करना चाहती है, या उसे कोई दूसरा पुरुष पसंद आता है तो इसमें गलत क्या है। प्रगतिशील सोच उनके व्यवहार में भी दिखाई है और उनकी कहानियों में भी।
हाल ही में उनका पहला कहानी संग्रह ‘मुझे जुगनुओं के देश जाना है’(रुझान पब्लिकेशन्स, राजस्थान) से आया है। सबाहत जुगनुओं के इस देश में कल्पना करती है कि औरतें भी मर्दों जैसी आजादी का लुत्फ उठा रही हैं, उनके दिलों के दरवाजों पर पहरे नहीं लगाये जा सकते, उन्हें भी तलाक के बाद दूसरा निकाह करने की छूट है, एक बार शौहर के घर से लौट आने के बाद उन्हें यह फैसला करने का हक होना चाहिए कि वह वापस जाए या न जाए।
सबाहत खुद कहती हैं, मेरी कहानियों में स्त्री पात्र के भीतर छटपटाहतट है, बेचैनी है। बोसीदा रीति रवाजों को मानने से इनकार करता उनका मन समाज के बनाए बन्धनों में जकड़ा हुआ जरूर है मगर वो किसी हाल में उम्मीद नहीं छोड़ती। उनकी आँखों में उम्मीद के दिए जल रहे हैं, एक ख़्वाब मतवातिर उनके जेहन में चलता रहता है, जो उन्हें यकीन दिलाता है कि आज नहीं तो कल हालात सुधरेंगे। कभी वो रात आएगी जब मुट्ठियों में बंद जुगनू आजाद होंगे और अंधेरी फजा फिर से रौशन होगी।
92 पेज के इस छोटे से संग्रह में कुल 9 कहानियां हैं। लगभग हर कहानी में औरत की मुट्ठी में बंद जुगनू (या मन के ख्वाबों) को आजाद करने को कोशिश है। कहीं दाम्पत्य जीवन में आ गई स्थिरता की बर्फ को पिघलाने के लिए सबाहत की नायिका किसी डॉक्टर के प्रति आकर्षित होती है (तनहा ख़्वाब) तो कहीं बेवा औरत अपने ही देवर को दिल दे बैठती है (दिल ही तो है)। कहीं शौहर का घर छोड़कर मैके आ गई औरत पाती है कि उसके अपने ही घरवालों को यह पसंद नहीं है कि बेटी यहां रहे (मुझे मंजूर नहीं!), बेटी पर शौहर के घर जाने का बहुत दबाव पड़ता है कि वह वापस शौहर के घर चली जाए, वही औरत का घर होता है। लेकिन बेटी बजिद है कि उसे वापस नहीं जाना है। आखिर बेटी की जीत होती है, जब दादी कहती है, ‘तुम जो भी फैसला करो खुद के लिए करो।
किसी के लिए खुद को सारी उम्र तकलीफ देना अक्लमंदी नहीं है। तुम्हारे बाप से बात करती हूं, कभी जिन्दगी में कुछ नहीं मांगा कोई सवाल नहीं किया मैंने, अपनी पोती के लिए सवाल जरूर करूंगी। इस घर में बार-बार एक किस्सा नहीं दोहराया जाएगा।’ नायिका को लगता है कि दरवाजे में एक खिड़की खुल गई है। सबाहत इस खिड़की के खुलने के लिए तीसरी पीढ़ी तक इंतजार करती है। सच भी है कि खिड़कियां इतनी आसानी से नहीं खुलतीं।
सबाहत के पास बेपनाह किस्से हैं। ये किस्से उन्होंने अपने आसपास देखे-सुने होंगे। इन किस्सों ने उनके भीतर दर्ज होकर कोई और रूप चाहा होगा। यही वजह है कि ये किस्से कहानी के रूप में सामने आए। ऐसा भी नहीं है कि ये किस्से पाठक पहली बार सुन रहा हो। हम सब इस तरह के किस्से आए दिन अपने चारों तरफ घटित होते देखते हैं। सबाहत ने ऐसे ही एक किस्से को दिलकश कहानी में ढाला है। ‘खूबसूरत औरतें’ कहानी इस वाक्य से शुरू होती है-अच्छी सूरतें भी अजाब की मानिंद होती हैं, जिधर गईं उधर लोगों की नजरें टिक गईं। कहानी की नायिका आलिया बेहद खूबसूरत है।
मर्दों की बेकरार निगाहें, उसे छू लेने या उसे कुछ पल देख लेने की बेवकूफाना हरकतें आलिया को गुरूर से भर देतीं। मगर कभी-कभार वो सख़्त शमिंर्दा हो जाती जब अपने ही सगे रिश्तेदारों की आँखों में अपने लिए छुपी तलब देखती, गलीज तलब। सबाहत ने आलिया के जरिये मर्द समाज के पाखण्ड को उजागर किया है। ‘जहरीला खत’ में सबाहत ने दिखाया कि किस तरह औरत द्वारा मजाक में लिखा गया खत पति-पत्नी के बीच तलाक की वजह बन जाता है। पारिवारिक और सामाजिक दबावों के चलते तलाक हो जाता है।
सबाहत की सभी कहानियों के केंद्र में स्त्री है। स्त्री के सुख-दुख, उसके ख़्वाब, उन्हें पूरा करने की हसरत और सामाजिक बंदिशें रवायतें हैं। अपनी कहानियों में सबाहत इन बंदिशों और रवायतों को तोड़ती दिखाई देती हैं। उनकी कहानियों के स्त्री पात्रों का विरोध भी बेहद चुप्पी वाला विरोध है। केवल ‘खूबसूरत औरतें’ कहानी की आलिया को छोड़कर। लेकिन विरोध तो है ही और कुछ कहानियों में यह विरोध कारगर होता दिखाई भी देता है।
‘शहीदन बुआ’ एक ऐसी कहानी है जिसमें किस्सागोई के बावजूद कहानी के तत्व भी दिखाई देते हैं। शहीदन बुआ की नाक ऐसी है कि वह किसी दूसरे गांव में भी अगर सालन पक रहा हो, गोश्त भूना जा रहा हो तो उन्हें खुश्बू आ जाती है और वह पहुंच जाती है मांगने। शहीदन बुआ ससुराल गई तो उनका शौहर उन्हें छोड़कर दूसरी औरतों के पास जाया करते थे। बाद में वह बेवा हो गई और किसी तरह अपना जीवन गुजारने लगी। उनकी नाक ने उनका साथ दिया।
एक दिन शहीदुन बुआ की नाक उन्हें निसार के घर ले जाती है। लेकिन निसार की औरत उन्हें सालन देने से मना कर देती है कि उसके सात -आठ बच्चे हैं, पहले वह उन्हें सालन देगी। अंत में वह सालन एक बिल्ली आकर गिरा देती है। उस दिन के बाद से शहीदुन बुआ की नाक की ताकत कम होती चली जाती है। उनकी नाक में निसार के बच्चों की ख़्वाहिशें जम सी गई थी। यह एक शानदार कहानी है जो कहती है कि जब आपका रूटीन टूटता है तो आपकी क्षमताएँ कम से कमतर हो जाती हैं।
सबाहत की इन कहानियों में आपको मुस्लिम माहौल, मुस्लिम खान-पान, मुस्लिम पहरावा सब दिखाई देगा, लेकिन यह भी दिखाई देगा कि औरत की स्थिति दोनों तरफ यकसां हैं। सबाहत आफरीन औरत की बंद मुट्ठियों के जुगनुओं को आजाद करना चाहती हैं। सबाहत को अपनी कहानियों में परिपक्वता लानी होगी तभी वह भविष्य में एक अच्छी कहानीकार के रूप में जानी जाएंगी।