जनवाणी संवाददाता |
मुजफ्फरनगर: में मौलाना कुमेल असगर गाजीपुरी ने दीन की राह में इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों की दी गई कुर्बानियों का जिक्र किया। मौलाना ने फरमाया कि दीन के रास्ते पर चलकर इल्म हासिल करना है। इल्म यानी ज्ञान का दरवाजा हजरत अली है और इमाम हुसैन उसकी चाबी। मौलाना ने कर्बला में इमाम की शहादत का जिक्र किया तो सोगवार रोने लगे।
मुजफ्फरनगर किदवई नगर स्थित जाहिद हाल पर गुरुवार सुबह मोहर्रम की पहली मजलिस आयोजित हुई। जिसे मौलाना कुमैल असग़र गाजीपुरी ने मिम्बर-ए-रसूल से खिताब फरमाया।
मौलाना ने बताया कि इमाम हुसैन ने अपने नाना का दींन बचाने के लिए कर्बला के मैदान में अपने आप और परिवार वालों को कुर्बान कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर जीवन और आखिरत यानी मौत के बाद की जिंदगी मैं सफल होना है तो ज्ञान हासिल करो, और ज्ञान सिर्फ अहलेबैत से मिल सकता है।
इमाम हुसैन का किरदार हमारे लिए मिसाल
मौलाना ने कहा कि, “इमाम हुसैन के चरित्र को ध्यान में रख जिंदगी गुजारनी चाहिए।” उन्होंने आगे उनकी एक बात को याद करते हुए कहा कि, “किसी के गम में शरीक होने का मतलब सिर्फ इतना ही नहीं कि उनके पास बैठ जाएं। बल्कि जरूरी है कि ऐसे मौके पर उनके काम आया जाए, उनकी मुश्किल को आसान किया जाए।”
अनुकरणीय जीवन जियो
स्वर्गीय विरासत हुसैन के अज़ाखाने जाहिद हॉल पर गुरुवार सुबह हुई मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना कुमेल असगर ने कहा कि “यदि किसी व्यक्ति के घर में मौत हो जाए और वह दुखी हो तो यदि उनका कोई काम भी करना पड़े तो करो।”
मौलाना कुमेल असगर ने फरमाया कि “इमाम हुसैन के चाहने वालों की कमी नहीं थी। सुबह शाम लोग उनकी जियारत (देखने वाले) के लिए खड़े रहते थे। उनके पीछे नमाज पढ़ते थे।”
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