नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय के सामने बीती 20 जुलाई को अहमदिया मुस्लिम समाज के अहसन गौरी ने एक शिकायती पत्र सौंपा था। पत्र में उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक जमैतुल उलेमा के फतवे के आधार पर एक आदेश जारी कर उनके समाज को मुस्लिम समुदाय से बाहर करने का आदेश दिया है। आंध्र प्रदेश में वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुसलमानों को मुस्लिम समाज से बेदखल कर दिया है।
यह फैसला एक इस्लामी संस्था की तरफ से जारी किए गए फतवा को आधार बनाकर दिया गया है। इसकी जानकारी लगते ही केंद्र सरकार भी आनन-फनन हरकत में आई और राज्य सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर राज्य के वक्फ बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही वक्फ बोर्ड को उनके अधिकारों के बारे भी बताया गया।
“वक्फ अधिनियम 1955 के के तहत वक्फ बोर्ड राज्य सरकार के एक निकाय के रूप में काम कर सकता है। इसका मतलब यह है कि वक्फ बोर्ड राज्य सरकार द्वारा जारी आदेशों पर काम कर सकता है। उसे किसी भी गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी फतवों पर संज्ञान लेने का कोई अधिकार नहीं है।”
आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के एक फतवे पर केंद्र की मोदी सरकार ने सख्त नाराजगी जताई है। इस फतवे के जरिए अहमदिया समाज को ‘गैर मुस्लिम’ और ‘काफिर’ घोषित किया गया है। केंद्र ने इसे घृणा फैलाने वाली हरकत बताते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि किस ‘आधार’ और ‘अधिकार’ से यह फतवा जारी किया गया है। अहमदिया मुस्लिमों ने इसके खिलाफ केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय से शिकायत की थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को लिखे पत्र में कहा है, “अहमदिया मुस्लिम समुदाय की ओर से 20 जुलाई 2023 को एक शिकायत प्राप्त हुई है। इसमें कहा गया है कि कुछ वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और उन्हें इस्लाम से बाहर करने के लिए अवैध प्रस्ताव पारित कर रहे हैं। यह अहमदिया समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने वाली हरकत है। वक्फ बोर्ड के पास अहमदिया सहित किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान निर्धारित करने का अधिकार नहीं है।”
अल्पसंख्यक मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड को भारत में वक्फ संपत्तियों की देखरेख और उनका मैनेजमेंट का अधिकार है। राज्य वक्फ बोर्ड को इस तरह का आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है। मंत्रालय ने आगे कहा है, “वक्फ अधिनियम 1955 के के तहत वक्फ बोर्ड राज्य सरकार के एक निकाय के रूप में काम कर सकता है। इसका मतलब यह है कि वक्फ बोर्ड राज्य सरकार द्वारा जारी आदेशों पर काम कर सकता है। उसे किसी भी गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी फतवों पर संज्ञान लेने का कोई अधिकार नहीं है।”
मंत्रालय की ओर से यह भी कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। उसे इस तरह के आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। खासकर तब, जब इस तरह के आदेश से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ घृणा और असहिष्णुता पैदा हो सकती है।
क्या है मामला
इस पूरे मामले की शुरुआत साल 2012 में हुई। आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। वक्फ बोर्ड के इस फैसले को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी। बावजूद आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने इसी साल फरवरी में एक और प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि 26 मई, 2009 को जमीयत उलेमा द्वारा जारी किए फतवे को देखते हुए ‘कादियानी समुदाय’ को ‘काफिर’ घोषित किया जाता है। ये मुस्लिम नहीं हैं। बता दें कि अहमदिया मुस्लिमों को कादियानी भी कहा जाता है।
कौन हैं अहमदिया मुस्लिम
पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गाँव में मिर्जा गुलाम अहमद ने साल 1889 में अहमदिया समुदाय की शुरुआत की। मिर्जा गुलाम अहमद खुद को पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी और अल्लाह की ओर से चुना गया मसीहा बताते थे। मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरूआत की थी। इसे अहमदी आंदोलन और इससे जुड़े मुस्लिमों को अहमदिया बोला गया। अहमदिया मुस्लिम गुलाम अहमद को पैगंबर मोहम्मद के बाद का एक और पैगंबर या आखिरी पैगंबर मानते हैं। इसी कारण अन्य मुस्लिम उनका विरोध करते हैं। चूँकि गुलाम अहमद कादियान गाँव से थे। इसलिए अहमदिया मुस्लिमों को कादियानी भी कहा जाता है।
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