जनवाणी संवाददाता |
देवबंद/सहारनपुर: इस्लामी तालीम के प्रमुख केंद्र दारुल उलूम देवबंद ने फिलिस्तीन, खासकर गाज़ा में क्रूरता और बर्बरता की सारी हदें पार हो जाने और संयुक्त राष्ट्र संघ व मानवाधिकार संगठन के मूकदर्शक बने रहने पर कड़ा रोष व्यक्त किया है। कहा कि हम मुसलमानों की धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी है कि फिलिस्तीन के बेकसूर लोगों के लिए दुआएं करें और एकजुट होकर इस जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करें।
दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा है कि मुकद्दस सरजमीं फिलिस्तीन इतिहास के सबसे खराब वक्त से गुजर रही है। निर्दोष बच्चों, महिलाओं और नागरिकों पर बमबारी का दौर जारी है। शहर के शहर मलबों के ढेर में बदल दिए गए हैं। यह जंग नहीं नरसंहार है जो 21वी सदी के सबसे विकसित और सभ्य विश्व की आंखों के सामने जारी है और जिसका एकमात्र मकसद एक राष्ट्र को विश्व के नक्शे से मिटा देना है। फिलिस्तीन की जमीं मरघट बन चुकी है भूख, प्यास, बीमारी, भय और विनाश से भरी दुनिया में लाखों लोग जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे हालात में हम भारतीय मुसलमानों की महत्वपूर्ण धार्मिक, नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी है कि हम अपने फिलिस्तीनी भाइयों के लिए दुआ करें, उनके दर्द को महसूस करें और एकजुट होकर उनके हक में खड़े हो। कहा कि जरूरी है कि सभी उपलब्ध संसाधनों और कानूनी साधनों का उपयोग करते हुए जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद की जाए। कहा कि अगर आज भी हम मजलूम फिलिस्तीनियों के साथ न खड़े हुए तो फिर हमें कय़ामत के दिन अल्लाह को इसका जवाब देना होगा।