नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉट वेबसाइट पर आपका अभिनंदन और स्वागत है। आज यानि 7 मार्च को एक ऐतिहासिक ऐलान हुआ। जोर जुल्म ओ सितम के विरूद्ध जनता का आक्रोश फूट पड़ा और फिर जो हुआ वह सहसा सुनकर यकीन करना असंभव सा प्रतीत होता है। मगर, सच तो सच है। पाकिस्तान की क्रूर आर्मी अपने ही लोगों की खून बहा रही थी, बड़े बूढ़ों से लेकर बच्चों तक को भी नहीं छोड़ा गया। इनता ही महिलाओं और बच्चियों ऐसा सुलूक किया जा रहा था जिसको सुनकर आपका कलेजा फट जाएगा।
आखिर अपनी जनता से बेपनाह मुहब्बत करने वाले शेख मुजीब-उर-रहमान ने पाकिस्तानी सरकार और उनकी आर्मी से ना केवल पंगा लिया बल्कि उनके खिलाफ बिगुल फूंक दिया। आज से करीब 52 साल पहले 7 मार्च सन् 1961 को तत्कालीन पाकिस्तान और आज के ढाका में शेख मुजीब-उर-रहमान ने इंतिहाई जुल्म के खिलाफ एक बड़ी जनसभा की। ढाका के रेसकोर्स मैदान में जन सैलाब उमड़ पड़ा। जनमानस के हाथों में बांस डंडा था और गुस्से तन बदन से आग निकल रहा था। अब भीड़ भी अपने नेता का साथ देते हुए नारे लगाने शुरू कर दी थी। भीड़ की बस और बस एक ही मांग थी, पाकिस्तान से आजादी उसे चाहिए पाकिस्तान से आजादी।
ढाका में स्थित रेसकोर्स मैदान खचाखच भरी हुई थी तो आसमान में पाकिस्तानी सेना के हेलिकॉप्टर उड़ रहे थे। उधर, हेलिकॉप्टर उड़ता देख जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था लेकिन, मानों किसी ने उफान मारते समंदर को रोक रखा था नजारा कुछ ऐसा ही था।
थोड़ी देर बाद मंच पर आवामी लीग पार्टी के नेता और जनता के चहेते शेख मुजीब-उर-रहमान पहुंचते हैं और माइक थामते ही अपने भाषण में पाकिस्तान से आजादी का ऐलान कर दिया। इतना ही उन्होंने आम जनता का अह्वान करते हुए कहा तैयार हो जाओ अब हमें और जुल्म नहीं सहना है अब हम पाकिस्तान से अलग होकर ही रहेंगे हमें तो बस पाकिस्तान से आजादी के अलावा कुछ नहीं चाहिए।
यकीनन शेख मुजीब-उर-रहमान का साथ खड़ा होना मानों आम जनता के दिल की बात हो गई। इसी ऐलान ने पाकिस्तान के दो टुकड़े होने की आधार शिला रख दी।
दरअसल, हिंदुस्तान को तोड़कर अलग मुस्लिम देश बनाने की साजिश मोहम्मद अली जिन्ना और उसके साथियों ने रची थी। सन् 1947 में हिंदुस्तान को तोड़कर एक अलग इस्लामिक देश पाकिस्तान बनाया जाता है। पाकिस्तान में उस वक्त दो प्रमुख क्षेत्र- पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल थे।
पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56 फीसदी आबादी रहती थी, जो बांग्ला भाषा बोलती थी। तो वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, बलूची, पश्तो और अन्य स्थानीय भाषाओं के बोलने वाले थे। साथ ही भारत से पलायन करने वाले मुसलमान भी थे, जो उर्दू बोलते थे। पाकिस्तान की आबादी में उनका हिस्सा सिर्फ 3 फीसदी था।
फरवरी 1948 में पाकिस्तान की असेंबली में एक बंगाली सदस्य प्रस्ताव पेश करते हैं। वो कहते हैं कि असेंबली में उर्दू के साथ-साथ बांग्ला भाषा का भी इस्तेमाल होना चाहिए। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है और यही रहेगी।
अगले ही महीने यानी मार्च 1948 में पाकिस्तान के संस्थापक कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने जब ढाका का दौरा किया, तो उन्होंने भी वहां दो टूक कहा कि मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा केवल उर्दू होगी। मुद्दा सिर्फ भाषा का नहीं था। पश्चिमी पाकिस्तान में मौजूद सरकार पूर्वी हिस्से की हर तरह से अनदेखी करती थी, चाहे वो आर्थिक मामला हो या उनकी राजनीतिक मांगें।
पूर्वी पाकिस्तान में ये नाराजगी बढ़ती रही और फिर शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग नाम की पार्टी बनाई और पाकिस्तान के अंदर स्वायत्तता की मांग कर दी। 1969 में उधर जनरल याह्या खान ने फील्ड मार्शल अयूब खान से पाकिस्तान की बागडोर अपने हाथ में ली थी और अगले साल चुनाव का ऐलान किया गया।
पाकिस्तान की आजादी के 23 साल बाद पहली बार साल 1970 में आम चुनाव हुआ। कुल 313 सीटों में से 167 सीटों पर आवामी लीग जीत गई। आवामी लीग का दबदबा पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में था। शेख मुजीब-उर-रहमान को पाकिस्तान का पहला लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री बनना था, लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो की मदद से सेना ने सत्ता देने से इनकार कर दिया।
मार्च 1971 तक आवामी लीग का कॉडर सड़कों पर था, प्रदर्शन हो रहे थे, हड़तालें चल रही थीं। पाकिस्तान की सेना खुलेआम बर्बरता कर रही थी। इसी बीच 7 मार्च को 1971 को ढाका के रेसकोर्स मैदान से शेख मुजीब ऐतिहासिक भाषण पाकिस्तान से आजादी का आह्वान करते हैं।
शेख मुजीब-उर-रहमान कहते हैं कि इस बार का संघर्ष, हमारी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष है। शेख मुजीब के भाषण का एक-एक शब्द पाकिस्तान के खिलाफ ललकार थी। बाद में इस भाषण को भारतीय उपमहाद्वीप में दिए गए सभी राजनीतिक भाषणों में सबसे ऊंची पायदान पर रखा गया।
दरअसल, इस भाषण के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ढाका पहुंचे थे। 23 मार्च को जब शेख उनसे मिलने पहुंचे तो उनकी कार में बांग्लादेश का झंडा लगा था। इसके दो दिन बाद 25 मार्च को ऐसा लगा कि पूरे शहर पर पाक सेना ने हमला बोल दिया हो, यह ऑपरेशन सर्चलाइट था।
सेना का एक अफसर लाउडस्पीकर से शेख को सरेंडर करने के लिए कहता है। शेख खुद घर से बाहर निकलते हैं। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिक बंदूकों के बट से धक्का देते हुए मुजीब को जीप में बैठाया और वहां से निकल गए। ‘फ्रॉम रेबेल टु फाउंडिंग फादर’ में सैयद बदरुल अहसन लिखते हैं कि शेख की सबसे बड़ी बेटी हसीना ने उन्हें बताया कि जैसे ही गोलियों की आवाज सुनाई दी, शेख मुजीब ने वायरलेस संदेश भेज बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर दी। रात को 1 बजे पाकिस्तानी सेना का शेख मुजीब के घर पहुंचती है।
इसके बाद वायरलेस पर एक संदेश भेजा गया,’बिग बर्ड इन केज, स्मॉल बर्ड्स हैव फ्लोन।’ यानी बड़ी चिड़िया पिंजड़े में हैं, छोटी चिड़िया उड़ गई हैं। पाकिस्तान में उन्हें मियावाली जेल में एक कालकोठरी में रखा गया।
सेना के अत्याचार से स्थानीयों में रोष व्याप्त हुआ और उन्होंने अपनी बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी नाम की सेना बना ली। पाकिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया। मुक्तिवाहिनी पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे।
गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। शुरू में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में शामिल थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई।
भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया। पाकिस्तानी सेना द्वारा लगभग दो लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। करीब 20 से 30 लाख लोग मारे गए थे।
माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। 31 मार्च 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी। 29 जुलाई 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था।
पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया। पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े-बड़े मार्च हुए और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की गई। दूसरी तरफ भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा।
पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों के सरेंडर का दिन…
16 दिसंबर 1971। सुबह 9 बजकर 15 मिनट। जनरल जैकब को दिल्ली से जनरल मानेक शॉ का मैसेज मिला। मैसेज था आत्मसमर्पण की तैयारी कराने ढाका जाओ। 16 की दोपहर तक मेजर जनरल जैकब सेरेंडर के एग्रीमेंट का ड्राफ्ट लेकर ढाका पहुंचे। एयरपोर्ट पर यूएन के प्रतिनिधि मौजूद थे। जैकब उन्हें नजर अंदाज करके आगे बढ़ गए।जैकब जब पाकिस्तानी सेना के लीडर जनरल नियाजी के सामने पहुंचे तब नियाजी कुछ अधिकारियों के साथ सोफे पर बैठे थे और वहां भद्दे चुटकुलों पर हंसी मजाक चल रहा था। जनरल जैकब ने घुसते ही माहौल अपने पक्ष में किया।
वहां बैठे एक अन्य भारतीय मेजर जनरल नागरा को लगभग निर्देश देते हुए कहा कि वो एक मेज और दो कुर्सियों की व्यवस्था करें, अब सरेंडर का समय आ गया है। जनरल जैकब ने नियाजी के सामने सरेंडर एग्रीमेंट पढ़ दिया। ये सुनते ही जनरल नियाजी ने कहा, ‘किसने कहा कि मैं सरेंडर कर रहा हूं? आप तो यहां बस सीजफायर की शर्तों और सेना वापसी पर बात करने आए हैं।’
रेसकोर्स के मैदान में अरोड़ा ने पहले गार्ड ऑफ ऑनर लिया उसके बाद अरोड़ा और नियाजी मेज पर बैठ कर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों की 5 प्रतियों पर साइन किया। कमाल तो ये कि नियाजी के पास कलम भी नहीं थी। उन्हें एक भारतीय अफसर ने अपनी कलम दी। नियाजी ने साइन किया। वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और अपनी रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी।
ये समारोह 15 मिनट में खत्म हो गया। इसी के साथ पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने अपने हथियार रख दिए। उस वक्त घड़ी में 4:55 मिनट हो रहे थे।
इसके बाद जनरल अरोड़ा ने सूचना भिजवाई और मानेक शॉ ने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सूचना दी। ये उसी ‘विजय दिवस’ की सूचना थी जो इंदिरा गांधी को एक इंटरव्यू के बीच में मिली थी। इसके बाद जनरल जैकब ने नियाजी को किनारे ले जाकर समझाया। कहा, ‘अगर समर्पण नहीं करते तो मैं तुम्हारे परिजनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकता।
हथियार डालने पर ही मैं सुनिश्चित कर पाऊंगा कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे। मैं तीस मिनट का समय दे रहा हूं। नहीं मानें तो मैं ढाका पर बमबारी का आदेश दे दूंगा।’ इस दौरान इंदिरा गांधी के साथ ही राष्ट्रपति वीवी गिरि, केंद्रीय मंत्री, सेना के तीनों अंगों के प्रमुख और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय दिल्ली के हवाई अड्डे पर
मौजूद थे।
मुजीब ने सेना के कैंटोनमेंट मैदान पर जनसभा में बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में मदद करने के लिए भारत की जनता को धन्यवाद दिया। दिल्ली में दो घंटे रुकने के बाद जब शेख ढाका पहुंचे तो दस लाख लोग उनके स्वागत में ढाका हवाई अड्डे पर मौजूद थे।