Friday, May 2, 2025
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जब देवी अनसूया ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को नन्हे शिशुओं का रूप दिया

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हिंदू सनातन संस्कृति, हिंदू देवी देवताओं को अनेक रूपों में पूजते आए हैं। हर रूप को पूजने के पीछे का तार्किक पक्ष संपूर्ण प्रकृति को पूजने से है। सभी देवी-देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक स्वरूप हैं, जो प्रकृति में विद्यमान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का संदेश देते हैं। भगवान दत्तात्रेय भी तीन प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक है जो जीवन निर्माण, उसके पालन करने और उसका संहार करने की ओर संकेत करते हैं।

दत्तात्रेय जयंती का महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा की रात (पूर्णमासी) को मनाया जाता है। इसे दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय हिंदू त्रिमूर्ति (त्रिमूर्ति) के तीन देवताओं, अर्थात ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालनकर्ता) और महेश (भगवान शिव, संहारक) के विलय का प्रतीक हैं। हालांकि कई बार भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है।

भगवान दत्तात्रेय जयंती का महत्व
भगवान दत्तात्रेय को समर्पित कई मंदिर हैं, खासकर दक्षिणी भारत में। वह महाराष्ट्र राज्य के एक प्रमुख देवता भी हैं। वास्तव में, प्रसिद्ध दत्त संप्रदाय का उदय दत्तात्रेय के पंथ से हुआ। भगवान दत्तात्रेय के तीन सिर और छह भुजाएं हैं। दत्तात्रेय जयंती पर उनके बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। यह दिन कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में भगवान दत्तात्रेय मंदिरों में बहुत खुशी और धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति दत्तात्रेय जयंती के दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान दत्तात्रेय की पूजा करता है और व्रत रखता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

भगवान दत्तात्रेय की कहानी
हिंदू परंपरा के अनुसार, दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसूया के पुत्र थे। अनसूया बहुत ही पवित्र और सदाचारी पत्नी थी। उन्होंने त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बराबर पुत्र पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। देवी त्रिमूर्ति सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती, जो पुरुष त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश )की पत्नी हैं, अनसूया से ईर्ष्या के चलते अपने पतियों से उसकी सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए कहा।

तदनुसार, तीनों देवता तपस्वियों की वेश में अनसूया के पास आए और उनसे इस तरह से भिक्षा मांगी जिससे उनके सतीत्व गुणों की परीक्षा हो सके। देवी अनसूया परेशान हो सोचने लगी कि तीनों साधुओं की भिक्षा देने के रखी गई , अनुचित शर्त को कैसे पूरी करे? तभी उन्हें एक विचार आया, उसने एक मंत्र बोला, तीनों ऋषियों पर पानी छिड़का, देखते ही देखते तीनों तपस्वी नन्हे शिशुओं में बदल गए और फिर माता अनसूया ने उनकी शर्त के अनुसार ही उन्हें स्तनपान कराया।
जब अत्रि अपने आश्रम में लौटे, तो अनसूया ने उन्हें बताया कि क्या हुआ था, जिसे उन्होंने अपनी मानसिक शक्तियों के माध्यम से पहले ही देख लिया था। उसने तीनों शिशुओं को गले लगाया और उन्हें तीन सिर और छह भुजाओं वाले एक ही बच्चे में बदल दिया।

जब तीनों देवता वापस नहीं आए तो उनकी पत्नियां चिंतित हो गर्इं और वे अनसूया के पास गर्इं। तीनों देवियों ने उनसे क्षमा मांगी और उनसे अपने पतियों को वापस भेजने की प्रार्थना की। अनसूया ने अनुरोध स्वीकार कर लिया। तब त्रिमूर्ति अपने प्राकृतिक रूप में अत्रि और अनसूया के सामने प्रकट हुर्इं और उन्हें एक पुत्र, दत्तात्रेय का आशीर्वाद दिया।

दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि
इस पावन पर्व पर भगवान दत्तात्रेय के मंदिर इस दिन उत्सव का केंद्र होते हैं। भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और धूप, दीप, फूल, कपूर के साथ भगवान दत्तात्रेय की विशेष पूजा करते हैं। धर्म के मार्ग की प्राप्ति के लिए घरों और मंदिरों में भगवान दत्तात्रेय की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मंदिरों को सजाया जाता है, और लोग भगवान दत्तात्रेय को समर्पित भजनों और भक्ति गीतों में डूब जाते हैं। कुछ स्थानों पर अवधूत गीता और जीवनमुक्त गीता भी पढ़ी जाती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें स्वयं भगवान की वाणी है।

दत्तात्रेय जयंती का शुभ मूहर्त
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 2023 में, दत्तात्रेय जयंती 26 दिसंबर, 2023 मंगलवार को पड़ेगी। पूर्णिमा तिथि 26 दिसंबर 2023 सुबह 05:46 बजे आरंभ होगी और 27 दिसंबर 2023 को सुबह 06:02 बजे समाप्त होगी।


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