Thursday, April 25, 2024
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क्या टेबल पर आ पाएंगे किसान और सरकार ?

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जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: किसानों के गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन को 100 दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन किसान संगठनों व सरकार के बीच 20 जनवरी के बाद टेबल पर बातचीत नहीं हो पाई। क्या किसानों व सरकार के बीच फिर से टेबल पर बातचीत हो पाएगी? यह बड़ा सवाल है। क्योंकि सरकार व किसानों के बीच टेबल पर बातचीत के बाद ही डेढ़ वर्ष तक कृषि कानून को होल्ड कराने का निष्कर्ष निकला था।

सरकार व किसान संगठनों के बीच जब से संवाद टूटा हैं, तब से किसानों ने आंदोलन का भी विस्तार कर दिया है। पहले यह आंदोलन पंजाब, हरियाणा व वेस्ट यूपी तक सीमित था, लेकिन वर्तमान में आंदोलन का विस्तार राजस्थान, मध्य प्रदेश व पूर्वी यूपी में भी हो गया है।

आंदोलन का स्वरूप बदल रहा है। भाकियू के राष्टÑीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत आंदोलन के विस्तारण के लिए जगह-जगह महापंचायत कर रहे हैं, जिसके चलते आंदोलन का व्यापक स्तर पर विस्तार होता दिखाई दे रहा हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया था कि किसानों से वो एक फोन कॉल की दूरी पर हैं, लेकिन किसानों से 20 जनवरी के बाद कोई संवाद सरकार ने नहीं किया है।

इस तरह से आंदोलन का समाधान कैसे होगा? किसान संगठनों व सरकार को फिर से एक टेबल पर आना होगा, जिसके बाद आपस में संवाद की स्थिति पैदा होगी, तभी किसानों की समस्याओं का निस्तारण संभव हो सकता है। किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन लंबा खींचने के संकेत भी दे दिये हैं।

पहले टेंट अस्थाई थे, लेकिन वर्तमान में किसानों ने लोहे के पाइप लगाकर टेंट लगा दिये हैं। इसमें तिरपाल भी मजबूत लगाई जा रही है, जिसके बाद गर्मी से बचा जा सकेगा। इसमें पंखे व कूलर लगाने की व्यवस्था भी की जा रही है। किसानों ने लंबी तैयारी आंदोलन चलाने के लिए अब करनी आरंभ कर दी हैं।

अब याचना नहीं, चुनावी रण होगा

किसान अब तक याचना केन्द्र सरकार से कृषि कानून के खिलाफ कर रहे थे, लेकिन अब साफ दिख रहा है कि किसान नेता भी चुनावी रण करने के लिए तैयारी कर रहे हैं। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने भी ऐलान किया है कि मार्च में पश्चिमी बंगाल में किसानों की महापंचायत की जाएगी, जिसमें केन्द्र सरकार के खिलाफ प्रचार किया जाएगा। किसान नेताओं ने इसको लेकर तैयारी आरंभ कर दी है।

किसान नेताओं ने यदि भाजपा के खिलाफ प्रचार किया तो पश्चिमी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के हाथ मजूबत होंगे। भाकियू ने अराजनीतिक होने का दावा किया है, लेकिन पश्चिमी बंगाल में चुनाव में महापंचायत कर एक तरह से चुनावी रण में उतरा जाएगा।

भले ही किसान नेता ममता बनर्जी का साथ नहीं दे, लेकिन भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार करने का लाभ तो बंगाल की सीएम ममता को ही होगा। इससे साफ है कि किसान नेता अब याचना करने के मूड में नहीं है, बल्कि चुनावी रण की तैयारी कर रहे हैं।

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