Sunday, June 15, 2025
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निकाय बोर्ड के गठन तक टल सकते हैं गन्ना समितियों के चुनाव

  • हर तीन साल बाद होने वाले चुनाव 2015 के बाद से लगातार टलते आ रहे हैं चुनाव

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सहकारी गन्ना विकास समितियों के लिए हर तीन साल बाद होने वाले चुनाव 2015 के बाद से लगातार टलते चले आ रहे हैं। निकाय चुनाव की तैयारियों के बीच एक बार फिर गन्ना समितियों के चुनाव टलने के आसार बन गए हैं। हर तीन साल बाद होने वाले सहकारी गन्ना समितियों के चुनाव टलने के समय-समय पर अलग-अलग ही कारण सामने आते रहे हैं। समितियों के गठन की अब तक रही परम्परा के अनुसार जनपद के राजस्व ग्रामों में निवास कर रहे 100 गन्ना किसानों पर एक डेलीगेट तथा सौ किसानों से अधिक होने पर दो डेलीगेट चुने जाते हैं। निर्वाचित डेलीगेट की ओर से संचालकों का चुनाव किया जाता है।

फिर निर्वाचित संचालकों के जरिये समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। आम तौर पर प्रत्येक सहकारी गन्ना समिति में दर्जन भर संचालकों का चुनाव किया जाता है। सामान्य तौर पर समितियों के गठन के लिए हर तीन साल बाद चुनाव कराए जाते हैं, लेकिन 2015 के बाद से किसी न किसी कारण से चुनाव स्थगित होते रहे हैं। एक बार कोविड-19 के दौरान 2020 में अगस्त माह में इसकी प्रक्रिया चली, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण चुनाव फिर स्थगित करने पड़े।

चुनाव की तारीख को लेकर अधिकृत तौर पर आज भी विभागीय अधिकारी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है। हालांकि एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि इस सात भी सतियों के चुनाव होने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। क्योंकि शासन स्तर से स्थानीय निकाय चुनाव कराने की तैयारियां तेजी से चल रही हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि प्रदेश भर में स्थानीय निकाय बोर्ड के गठन होने के बाद ही सहकारी गन्ना समितियों के चुनाव के बारे में विचार किया जा सकता है।

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वैसे जहां तक समितियों के चुनाव को लेकर तैयारियों की बात है, जिला गन्ना अधिकारी स्तर से यह पूर्व में जानकारी दी जा चुकी है कि मेरठ की सभी छह सहकारी गन्ना समितियों के मतदाताओं की सूची अपडेट है। इसके अलावा मवाना और मोहिउद्दीनपुर के बायलाज को अपडेट करा दिया गया है। इन दोनों समितियों में 50 सदस्यों पर एक डेलीगेट का चुनाव करते थे। अब मेरठ समेत प्रदेश भर में एकरूपता लाई गई है।

जिसके अंतर्गत 100 सदस्यों पर एक डेलीगेट चुना जाएगा। इससे अधिक सदस्य होने पर दो सदस्य चुने जाएंगे। गौरतलब है कि प्रदेश में लगभग 196 सहकारी समितियां और गन्ना समितियां हैं, हर एक किसान इन समितियों का सदस्य होता है। सदस्यता फीस जमा करने के बाद ही वह अपना गन्ना सप्लाई कर पाता है। अभी तक गन्ना किसान केवल एक सदस्य के तौर पर इन समितियों से जुड़े रहते थे।

प्रदेश के 50 लाख 10 हजार गन्ना अंश प्रमाण पत्र धारक किसान अब इन समितियों में हिस्सेदार बन गए हैं। यानि गन्ना समितियां को होने वाले लाभ किसानों को भी उनके अंश के हिसाब से मिल सकेगा। दूसरे शब्दों में गन्ना किसान अब इन समितियों के शेयर होल्डर हो गए हैं।

गन्ना किसान और मिल के बीच पुल का काम करती हैं समितियां

गन्ना विकास समितियां किसान और मिल के मध्य सेतु का काम करती है। गन्ना समितियों में पंजीकृत गन्ना कृषक गन्ना समितियों के माध्यम से चीनी मिलों को गन्ना आपूर्ति करते हैं। गन्ना समितियां, गन्ना किसानों व चीनी मिलों के मध्य समन्वय स्थापित करती हैं। समितियां सदस्य गन्ना कृषकों के गन्ने की आपूर्ति सम्बन्धित चीनी मिलों को निर्धारित समयावधि में कराते हुए सरकार की ओर से घोषित गन्ना मूल्य दर के अनुसार भुगतान कराने में भूमिका अदा करती हैं।

वहीं चीनी मिलों में निर्बाध गति से पूर्ण पेराई क्षमता पर गन्ने की उपलब्धता सुनिश्चित कराकर मिल संचालन में सहयोग करती है। सदस्य गन्ना कृषकों को पौधशाला से उत्तम गन्ना बीजों का वितरण एवं समिति क्षेत्रान्तर्गत गोदामों को स्थापित कर या किराये पर लेकर गुणवत्ता पूर्ण खाद, उर्वरक, कीटनाशक दवाओं का वितरण सुनिश्चित कराती हैं। इसके अलावा गन्ना समिति, गन्ना किसानों को उच्च गुणवत्ता के कृषि निवेशों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के साथ ही साथ गन्ना विकास हेतु सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में सक्रिय सहयोग करती हैं।

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