गीता यादव
देश-भर में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चिकित्सक मानते हैं कि बदलती जीवन शैली-खान-पान के अलावा यह मामले पीने के पानी से भी जुड़े हो सकते हैं। मामले के खुलासे के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को गंभीरता से उन इलाकों में पानी की गुणवत्ता की जांच करानी चाहिए, जहां कुछ ही समय में मरीजों की संख्या बढ़ी हो ताकि समय रहते इस पर नियंत्रण हो सके।
जल की हर बूंद अमूल्य है और इसके बिना जीवन संभव नहीं। लेकिन यही जल देशवासियों के जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में पिछले कुछ समय से कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ी है। ये रोगी एक ही गांव या शहर के एक ही कॉलोनियों से निकलकर आ रहे हैं। इनकी केस हिस्ट्री बता रही है कि यह मामला पानी से भी जुड़ा हो सकता है।
देश के अलग-अलग गांवों और शहरों में पानी से जुड़े कैंसर के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं और बाद में जांच के बाद उनकी पुष्टि भी हुई है। विभिन्न अध्ययनों ने पानी में पाए जाने वाले विशिष्ट प्रदूषकों और कैंसर के बीच संबंधों की भी जांच की है और जिसके बड़े निराशाजनक परिणाम सामने आए हैं। बड़े अफसोस की बात है कि दुनिया भर में साफ पानी की समस्या दिनों दिन गहराती जा रही है। शोध बताते हैं, पूरे विश्व में पीने के जल के रूप में 0.03 प्रतिशत जल उपलब्ध है और उसमें भी 0.1 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। वैसे देखा जाए तो, भारत के ज्यादातर हिस्सों में पीने के लिए जिस पानी का इस्तेमाल किया जाता है, वो या तो सरकारी टैंक द्वारा सप्लाई किया जाता है या फिर वाटर पंप, हैंड पंप, ट्यूब वेल आदि के द्वारा सीधे जमीन से बाहर निकाला जाता है। सरकारी टैंक से आने वाले पानी को लोग इसलिए सुरक्षित मानते हैं कि इसे ट्रीट करने के बाद सप्लाई किया जाता है। मगर रिसर्च के अनुसार, यह पानी भी उतना सुरक्षित नहीं है। अमूमन हर देश के पानी का अपना क्वालिटी स्टैंडर्ड होता है, जिसके अनुसार यह तय किया जाता है कि पीने के साफ पानी में कितनी मात्रा में कौन सा तत्व मौजूद होना चाहिए।
पानी जमीन की गहराई से निकलता है, इसलिए इसमें ढेर सारे तत्व घुले होते हैं। इनमें से कुछ तत्व ऐसे हैं जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार पानी में 90 से ज्यादा ऐसे दूषित पदार्थ होते हैं, जो शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। हालांकि यदि प्यूरीफायर का इस्तेमाल किया जाए तो, इनमें से कुछ दूषित तत्व बाहर निकल जाते हैं। मगर ज्यादातर प्यूरीफायर में पानी को शुद्ध बनाने के लिए जिन केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें बाई प्रोडक्ट को भी वैज्ञानिकों ने हानिकारक माना है। एनवायरमेंट वर्किंग ग्रुप द्वारा हाल में हुए एक अध्ययन के अनुसार पीने के पानी में 22 ऐसे तत्व पाए गए हैं, जो कैंसर कारक बन सकते हैं। इनमें ज्यादातर कैंसर का कारण आर्सेनिक है। इसके अलावा कुछ ऐसे केमिकल से निकलने वाले बाइप्रोडक्ट भी हैं, जो खतरनाक हो सकते हैं, जिनका इस्तेमाल पानी को ट्रीट करके शुद्ध करने के लिए किया जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि आर्सेनिक ऐसा तत्व है जो जमीन के नीचे प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। लंबे समय तक आर्सेनिक से दूषित पानी के सेवन से त्वचा, फेफड़े, मूत्राशय और गुर्दे के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
भारत में ब्यूरो आॅफ इंडियन स्टैंडर्ड के मुताबिक एक लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक की अनुमति दी गई है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीने के पानी में 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से ज्यादा आर्सेनिक नहीं होना चाहिए। भारत के लगभग सभी राज्यों के ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा डब्ल्यूएचओ और बीआईएस दोनों की तय लिमिट से ज्यादा पाई जाती है। अधिक नाइट्रेट्स वाले पानी का सेवन विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकता है। नाइट्रेट्स का शरीर में नाइट्रोसामाइन में परिवर्तन हो सकता है, जो कैंसरकारी हो सकते हैं। इसके अलावा, बिस्फेनॉल ए-कुछ प्लास्टिक कंटेनर जो पानी को स्टोर करने के लिए उपयोग किए जाते हैं, उनसे भी कैंसर का खतरा हो सकता है। इसके अलावा गांवों में खेती में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक और रसायन भी पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। यह भूजल में मिल सकते हैं और इसे दूषित कर सकते हैं। इनमें से कुछ रसायन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
कई उद्योग अपने कचरे को नदियों और झीलों में छोड़ते हैं, जो अंतत: भूजल को प्रदूषित कर सकते हंै। इनमें से कई रसायन कैंसरकारी हो सकते हैं। जोधपुर शहर के एक औद्योगिक क्षेत्र में जब 1983 में एक नल-कूप लगाया गया, तो दर्शक यह देखकर चकित रह गए कि जल से रंगीन पानी निकल रहा है। जांच के बाद पाया गया कि यह पानी बुरी तरह प्रदूषण-युक्त है। जांच के बाद ज्ञात हुआ कि कपड़ा छपाई के इन उद्योगों से लगभग 1.5 करोड़ लीटर गंदा पानी खुली नालियों, खुले मैदानों और तालाबों में बहा दिया जाता है। पृथ्वी अपनी प्रकृति के अनुसार इस पानी को सोख लेती है और फिर यह गंदा पानी भूगर्भीय जल के साथ मिलकर पृथ्वी के भीतर विद्यमान पानी को प्रदूषित कर देता है। प्रदूषण चाहे जैसे हो, लेकिन इसका हमारे जीवन से सीधा-सीधा संबंध है। राजस्थान के गांवों और शहरों में कैंसर के मामले जिस तेजी से पांव पसार रहे हैं वो चिंताजनक हैं। ऐसे में सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को जल स्रोतों की नियमित जांच और शुद्धिकरण प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिए। दूषित पानी से बचने के लिए जनता को भी जागरूक होना चाहिए। उन्हें अपने पीने के पानी के बारे में जानकारी होनी चाहिए। संदेह होने पर क्षेत्र के जिम्मेदार लोगों को संबंधित अधिकारियों से बात करके अपने इलाके के पानी की जांच करानी चाहिए। ताकि आने वाले समय में कैंसर के मामलों को रोका जा सके।
आदर्श जल कैसा हो
-किसी प्रकार के विषाणु ना हों।
– जल के नीचे कोई पदार्थ जमा ना हो।
– ध्यान रहे, शुद्ध जल हल्का और पारदर्शी होता है।
– पीने योग्य जल में खारापन या नमक नहीं होता।
– आर्सेनिक, लेड, पारा, सेलेनियम आदि विषैले पदार्थ एक निश्चित मात्रा से अधिक ना हों।
-जल के 100 सी.सी. नमूने में ई. कोलाई जीवाणुओं की मौजूदगी ना हो।
– फ्लोराइड, नाइट्रेट, एरोमेटिक, हाइड्रोकार्बन जैसे पदार्थ, जो स्वास्थ्य के लिए हितकर, ना हों नहीं होने चाहिए।
रोकथाम और सुरक्षा
पानी शरीर को जरूरी मिनरल्स देता है, अपने पानी की जांच करें, आपका पानी कहां से आता है? उस में कहीं भारी धातु यानी हैवी मेटल्स तो नहीं? नल से आने वाला पानी अक्सर पुरानी पाइपों में से आता है, जिस में भारी धातु होती है। सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को जल स्रोतों की नियमित जांच और शुद्धिकरण प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिए। घर पर भी वाटर प्यूरीफायर का उपयोग करने से जोखिम कम हो सकता है।