Saturday, January 11, 2025
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संकट में बसपा का राष्ट्रीय दर्जा

Samvad 51

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर देश की राजधानी में राजनीतिक माहौल काफी गरमाया हुआ है। मुख्य मुकाबला भाजपा, कांग्रेस व आप पार्टी के बीच दिखाई दे रहा है पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी कमर कस ली है। बीएसपी जल्द ही दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है। दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी का वैसे तो बीते चुनाव में कोई जनाधार नहीं रहा था, लेकिन फिर भी बसपा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। चुनाव के इस रण में अचानक बसपा ने सभी सीटों पर लड़ने का एलान कर भाजपा व आप पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है।

वैसे मायावती के हाथी का इस रण में उतरना कोई नई बात नहीं है। राजधानी दिल्ली में बसपा दिल्ली नगर निगम की 250 और दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर चुनाव लड़ती हुई आई है। साल 2008 में दिल्ली में 2 उम्मीदवार बसपा से जीत कर पहुंचे थे। बसपा ने साल 2009, 2014 और 2019 में दिल्ली में लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिली। 2004 से 2024 तक हुए चार लोकसभा चुनाव में बसपा को इस बार सबसे कम वोट प्रतिशत मिला है। इस बार उसका वोट शेयर महज 0. 71 प्रतिशत रहा, जबकि वर्ष 2019 में 1.1 फीसदी रहा था। राजधानी दिल्ली में बसपा की छवि अब सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी की बन गई है।

यही नहीं पहले आम चुनाव फिर हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में मिली नाकामयाबियों से देश की एक मात्र दलितों के लिए राजनीति करने वाली राष्ट्रीय पार्टी बसपा पर नेशनल पार्टी का दर्जा छिनने का खतरा मंडराने लगा है। उत्तर प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में लगातार घटते मत प्रतिशत के चलते बसपा को चिंता सता रही है। निर्वाचन आयोग इसकी समीक्षा करेगा तो बीएसपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचा रहना मुश्किल हो जाएगा। उत्तर प्रदेश में चार बार बहुजन समाज पार्टी की सरकार रही। केंद्र में भी पार्टी के लोकसभा और राज्यसभा सांसद जीतते रहे हैं। कई राज्यों में भी पार्टी के विधायक चुनाव जीतने में सफल होते रहे। पार्टी का जनाधार देश भर में फैला और मूलरूप से उत्तर प्रदेश की इस पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया। बसपा उन आधा दर्जन पार्टियों में शामिल है जो राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल हैं, लेकिन हाल के कुछ सालों में बहुजन समाज पार्टी के लगातार गिरते प्रदर्शन से अब उसके सामने राष्ट्रीय स्तर का दर्जा बरकरार रख पाना भी बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

हाल ही में जब हरियाणा और जम्मू कश्मीर के नतीजे आ गए। सभी राजनीतिक दलों की तरह ही बहुजन समाज पार्टी ने भी चुनाव परिणाम से बड़ी उम्मीद लगा रखी थी, लेकिन नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आए और सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी बहुजन समाज पार्टी के कुल 37 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, लेकिन एक भी प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाया। अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पिछले चुनाव में जहां पार्टी का 4.74 फीसदी मत मिले थे, वहीं इस चुनाव में वोट प्रतिशत 3 प्रतिशत घटकर सिर्फ 1. 82 फीसदी ही रह गया। जम्मू कश्मीर की स्थिति तो और भी बदतर हो गई। यहां पर पार्टी का मत प्रतिशत सिर्फ 0. 96 फीसद ही रह गया।

पिछले कुछ चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रदर्शन की बात की जाए तो यह खस्ता हाल ही रहा है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 2007 में बहुजन समाज पार्टी को 30. 43 फीसद वोट हासिल हुए थे और 206 सीटें जीतकर पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में आई थी और पार्टी की सीटें सिर्फ 80 रह गर्इं। 2017 में जब चुनाव हुआ तो वोट प्रतिशत घटकर 22.23 प्रतिशत और सीटें सिर्फ 19 रह गई 2022 में तो पार्टी की हालत और भी खस्ता हो गई। वोट प्रतिशत सिर्फ 12.58 रह गया और जबकि सीट सिर्फ एक ही रह गई। इसी तरह बात अगर अन्य राज्यों में की जाए तो उत्तराखंड में 2007 में बहुजन समाज पार्टी को 11.76 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे और 8 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की थी। 2012 में वोट फीसद बढ़कर 12.5 प्रतिशत हो गया, लेकिन सीटें तीन ही रह गर्इं। साल 2017 में पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। वोट सिर्फ 7 प्रतिशत रह गए और सीट एक भी न मिली। 2022 में यह अनुपात और भी कम हो गया। सीटें सिर्फ दो रह गर्इं और वोट प्रतिशत गिरकर 4.52 प्रतिशत रह गया।

मध्य प्रदेश की बात की जाए तो साल 2008 में 8.97 प्रतिशत वोट और सात सीटों पर पार्टी को जीत मिली। साल 2013 में 6.29 प्रतिशत वोट और चार सीटें, 2018 में 5.01 प्रतिशत वोट और दो सीटें हासिल हुर्इं। 2023 में 3.35 प्रतिशत वोट मिले और सीट एक भी न बची। छत्तीसगढ़ में 2008 में 6.11 प्रतिशत वोट और दो सीटें, 2013 में 4.30 प्रतिशत वोट और एक सीट, 2018 में 3.90 प्रतिशत वोट और दो सीटें, 2023 में 2. 57 प्रतिशत वोट और सीट एक भी न मिली। राजस्थान में साल 2008 में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक 7.5 0 प्रतिशत था और छह विधायक बने थे। 2013 में वोट प्रतिशत 4.20 प्रतिशत रह गया और सीटें घटकर तीन रह गर्इं। 2018 में वोट प्रतिशत 4.02 प्रतिशत रह गया लेकिन सीटें छह हो गईं। 2023 में वोट प्रतिशत बहुत ज्यादा गिरकर 1.82 प्रतिशत रह गया और सीटें भी सिर्फ दो रह गर्इं।

किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तीन मानक होते हैं। इन सभी मानकों पर खरा उतरने वाली पार्टी को ही चुनाव आयोग की तरफ से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया जाता है। पहला मानक यह है कि कम से कम चार राज्यों में लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़े और उनमें कम से कम छह फीसद से ज्यादा वोट हासिल करे। इतना ही नहीं इन राज्यों से कम से कम चार लोकसभा प्रत्याशी चुनाव जीत कर आएं। दूसरा मानक ये है कि कम से कम चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा हासिल करे और तीसरा, कुल सीटों में से कम से कम तीन राज्यों से दो प्रतिशत सीटें वह जीत जाए।

बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा इसलिए कायम है, क्योंकि वह चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी थी। छत्तीसगढ़, तेलंगाना, एमपी, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव हुए नहीं थे। इससे पहले 2018 के चुनाव में बसपा राजस्थान में छह सीटों पर जीत हासिल की थी। छत्तीसगढ़ में उसके पास दो सीटें थीं। इस प्रकार तीन सीटें या तीन प्रतिशत सीटों पर जीत के आधार पर वह यहां राज्य स्तरीय पार्टी बनी रही थी। इसी तरह उत्तराखंड में दो सीटें जीतकर राज्य स्तरीय पार्टी बन गई थी। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में छह फीसद से ज्यादा वोट हासिल कर और लोकसभा सीट जीतने के आधार पर राज्य स्तरीय पार्टी बनी रही। यही वजह है कि उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बरकरार रहा। बसपा का मत प्रतिशत भी लगातार गिरता ही जा रहा है। ऐसे में यह सच है कि अगर इलेक्शन कमीशन ने समीक्षा की तो बीएसपी के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर संकट खड़ा हो सकता है।

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