Thursday, June 5, 2025
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भुखमरी के कगार पर गरीब


 विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर भारत के समक्ष चिन्ताजनक बात सामने आई है। जिस देश ने 5 ट्रिलियन जीडीपी पाने का लक्ष्य रखा हो, उस देश में अब भी सभी लोगों को भर पेट भोजन नसीब न हो रहा हो, यह विकट समस्या प्रकट होती हुई दिख रही है। भारत में भुखमरी की हालत काफी खस्ता है जो बहुत लंबे समय से चला आ रही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग बहुत अधिक हैं। हाल ही में आयरलैंड की एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी का संगठन वेल्ट हंगर हिल्फ की ओर से संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वां स्थान मिला है, जो देश की खराब स्थिति को बयां कर रहा है। 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर था, जिसमे ह्रास हुआ है। 2021 की रैंकिंग के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है। मतलब साफ है कि ये देश अपने नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराने में भारत से बेहतर साबित हुए हैं। रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को ‘चिंताजनक’ बताया गया है।

भारत का जीएचआई स्कोर भी गिर गया है। यह वर्ष 2000 में 38.8 था, जो 2012 और 2021 के बीच 28.8-27.5 के बीच रहा। इस सूचकांक में कहा गया है कि भारत सबसे अधिक चाइल्ड वेस्टिंग वाला देश है जहां कोविड-19 महामारी और इसके चलते लगाए गए प्रतिबंधों से लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

जीएचआई स्कोर की गणना चार पैरामीटर पर की जाती है, जिनमें अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में चाइल्ड वेस्टिंग की दर 1998 और 2002 के बीच 17.1 प्रतिशत से बढ़कर 2016 और 2020 के बीच 17.3 प्रतिशत हो गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अन्य पैरामीटरों में सुधार दिखाया है जैसे कि बाल मृत्यु दर, बाल स्टंटिंग की व्यापकता और अपर्याप्त भोजन के कारण अल्पपोषण की व्यापकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि इस सूची में पांच से कम जीएचआई स्कोर के साथ चीन, ब्राजील और कुवैत समेत 18 देश शीर्ष स्थान पर हैं।

भारत के घोर विरोधी चीन तो आगे है ही भारत के साथी ब्रिक्स देश ब्राजील भी भारत से काफी आगे है। ऐसे में भारत के लिए बड़ी चुनौती है कि जिस देश को हम विश्व गुरु बनाने की ओर अग्रसर है, उस देश को दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज होना पड़ रहा है।

दुनिया में हर व्यक्ति का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन मौजूद होने के बावजूद आज हर नौ में से एक व्यक्ति भूखा रहता है। इन लाचार लोगों में से दो-तिहाई एशिया में रहते हैं। अगर हमने दुनिया की आहार और कृषि व्यवस्थाओं के बारे में गहराई से नए सिरे से नहीं सोचा तो अनुमान है कि 2050 तक दुनियाभर में भूख के शिकार लोगों की संख्या दो अरब तक पहुंच जाएगी।

दुनियाभर में, विकासशील क्षेत्र में अल्पोषित लोगों की संख्या में 1990 से लगभग आधे की कमी आई है। 1990-1992 में यह 23.3 प्रतिशत थी जो 2014-2016 में 12.9 प्रतिश रह गई। किंतु 79.5 करोड़ लोग आज भी अल्पपोषित हैं। दक्षिण एशिया पर भुखमरी का बोझ अब भी सबसे अधिक है।

28.1 करोड़ अल्पपोषित लोगों में भारत की 40 प्रतिशत आबादी शामिल है। हम अपना आहार कैसे उगाते और खाते हैं इस सबका भूख के स्तर पर गहरा असर पड़ता है, पर ये बात यहीं खत्म नहीं हो जाती।

अगर सही तरह से काम हो तो खेती और वन विश्व की आबादी के लिए आमदनी के अच्छे स्रोत, ग्रामीण विकास के संचालक और जलवायु परिवर्तन से हमारे रक्षक हो सकते हैं। खेती दुनिया में रोजगार देने वाला अकेला सबसे बड़ा क्षेत्र है, दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी और भारत में कुल श्रमशक्ति के 54.6 प्रतिशत हिस्से को खेती में रोजगार मिला है।

भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में भुखमरी की स्थिति अत्यंत गंभीर है। भुखमरी से निजात पाने के लिये भारत द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन अधिकांश राज्यों का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं है।

मात्र पांच ऐसे राज्य हैं, जो भूख की समस्या से निपटने के लिए सबसे अच्छा काम कर रहे हैं। ये पांच राज्य हैं-पंजाब, केरल, गोवा, मिजोरम और नगालैंड। वहीं झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा राजस्थान में यह समस्या लगातार बनी हुई है।

भूख की समस्या से निजात पाने में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक समेत कई राज्यों का प्रदर्शन ठीक-ठाक है। भुखमरी खत्म करने में राज्य सरकारें विफल रही हैं, इस विफलता का एक प्रमुख कारण राज्यों और देश की आबादी को माना जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि भुखमरी दूर करने के लिए भारत सरकार ने कार्य न किए हों, बल्कि भारत सरकार ने अपने विभिन्न नीतियों और योजनाओं के द्वारा लगातार प्रयास किया है लेकिन अब तक परिणाम वही ढाक के तीन पात की तरह ही आया है।

भारत ने राष्ट्रीय पोषण रणनीति की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य भारत में कुपोषण के मामलों में कमी लाना है। राष्ट्रीय पोषण मिशन बच्चों के विकास की निगरानी करने के साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रदान किए जाने वाले खाद्य राशनों की चोरी की भी जांच करता है।

अंत्योदय अन्न योजना भी सरकार के द्वारा चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य गरीब परिवारों को रियायती मूल्य पर भोजन उपलब्ध कराना है। जिसका लाभ दिख भी रहा है और बहुत से गरीबों को दो वक्त की रोटी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

2017-18 में शुरू किए गए पोषण अभियान का उद्देश्य विभिन्न कार्यक्रमों के बीच तालमेल और अभिसरण के माध्यम से स्टंटिंग, कुपोषण, एनीमिया और जन्म के समय शिशुओं में कम वजन की समस्या को कम करना, बेहतर निगरानी और बेहतर सामुदायिक सहयोग स्थापित करना है।

एकीकृत बाल विकास योजना की बात की जाए तो इसके द्वारा 0-6 वर्ष की आयु, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों में बच्चों पर ध्यान केंद्रित करके बचपन की व्यापक देखभाल और विकास की परिकल्पना करती है। भारत की यह विडंबना रही है कि अन्न का विशाल भंडार होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी होते हैं।

अगर इसके कारणों की पड़ताल करें तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव, अकुशल नौकरशाही, भ्रष्ट सिस्टम और भंडारण क्षमता के अभाव में अन्न की बरबादी जैसे कारक सामने आते हैं।


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