Tuesday, September 17, 2024
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गाजा में क्रूरता के शिकार बच्चे

Samvad 52


PREM SINGHफलस्तीन-इस्राइल संघर्ष का फिलहाल जारी मंजर ब्रेख्त के महाकाव्यात्मक रंगमंच (एपिक थिएटर) की तरह लगता है, जहां दुनिया-भर में फैली जगहों (लोकेशंस) पर मानव-क्रूरता और मानव-करुणा की कशमकश (टसल) मंचित हो रही है। इस महाकाव्यात्मक मंजर में साफ देखा और समझा जा सकता है कि क्रूरता की बड़ी-छोटी मीनारें चौतरफा सिर उठाए खड़ी हैं। लेकिन करुणा के छींटे, छोटे ही सही, भी चौतरफा फैले हैं। बच्चों की निर्द्वंद्व हत्याएं शायद मानव-क्रूरता का निकृष्टतम रूप है। 7 अक्तूबर को इस्राइल के दक्षिणी इलाके में हमास द्वारा और उसके बाद से फलस्तीन की गाजा पट्टी में हजारों बेकसूर बच्चों की हत्याएं नेताओं, राजनयिकों, पत्रकारों और सरोकारी नागरिकों के बीच चर्चा/बहस का विषय बनी हुई हैं। लेकिन संघर्ष की एक महीने से ज्यादा अवधि बीत जाने के बावजूद बच्चों की हत्याओं में कोई कसर नहीं हो रही है। 41 किमी लंबे, 6 से 12 किमी चौड़े, कुल 365 वर्ग किमी क्षेत्र में बसे गाजा में एक महीने में करीब 6000 बच्चों के मारे जाने की घटना युद्धों के इतिहास में शायद पहली है। आइए इस मर्मांतक प्रकरण पर थोड़ा विचार करें। हमास के इस्राइल पर 7 अक्तूबर के हमले के बाद से गाजा पट्टी में करीब 6000 बच्चों की मौत हो चुकी है। बड़ी तादाद में बच्चे मलबे के नीचे दबे बताए जा रहे हैं। इसके पहले हमास के हमले में करीब 30 बच्चों की हत्या हुई, करीब दो दर्जन बच्चे यतीम हुए और करीब 35 बच्चे बंधक बनाए गए। कल लेबनन में भी इस्राइली हमले में 3 बच्चों के मारे जाने की खबर है। हमास के हमले में मारे जाने वाले बच्चों पर इस्राइल से लेकर अमेरिका-यूरोप तक काफी प्रोपेगण्डा राजनीति हो चुकी है।

उदाहरण के लिए हमास के आतंकियों द्वारा 7 अक्तूबर के हमले में बच्चों का सिर काटने की खबर इस्राइली मीडिया में चलाई गई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी उसे दोहराया था। हालांकि, वह खबर झूठी निकली। इस्राइल के विदेश मंत्री ने नाटो की बैठक में हमास के हमले में क्रूरतापूर्वक मारे गए बच्चों के विडियो और तस्वीरें दिखाईं। क्रूरता का यह भी एक पहलू है कि बच्चों की हत्याओं पर राजनीति हो रही है ताकि बच्चों की हत्या का औचित्य प्रतिपादित किया जा सके और जनमत को अपने पक्ष में किया जा सके। दूसरी तरफ करुणा से परिचालित लोग यह सब देख कर विचलित हैं। क्रूरता और करुणा की इस कशमकश में करुणा का पक्ष किस कदर कमजोर है, यह इसीसे से पता चलता है कि अभी तक युद्ध-विराम पर सहमति नहीं बन पाई है। 9 नवंबर को अलबत्ता व्हाइट हाउस के हवाले से खबर आई है कि गाजा में दिन में 4 घंटे का सैन्य विराम (मिलिटरी पॉज) रहेगा, ताकि उत्तरी इलाके से लोग दक्षिणी इलाके में जा सकें और मानवीय सहायता पहुंचाई जा सके। हालांकि, इस बीच हमास के खिलाफ इस्राइली सेना की कार्रवाई जारी रहेगी।

यूं तो हर जीवन कीमती और सर्वथा सेव्य होता है, लेकिन बच्चों की हत्या सीधे कुदरत के प्रति अपराध है। बच्चे ही आगे चल कर बड़े बनते हैं; और भले-बुरे भी। एक जीवन को फलीभूत होने से पहले ही मिटा देना किसी तर्क से वाजिब नहीं ठहराया जा सकता। न हमास द्वारा की गईं बच्चों की हत्याओं को, न उनके बदले इस्राइल द्वारा जारी हत्याओं को। युद्ध को एक महीने से ऊपर हो चुका है। इस्राइली सत्ता और सैन्य प्रतिष्ठान बच्चों की हत्याओं को अभी तक सही ठहरा रहे हैं।
दुनिया के अपेक्षाकृत तटस्थ और शांतिप्रिय माने जाने वाले देशों का भी बच्चों की लगातार जारी हत्याओं पर निर्णायक स्टैंड नहीं है। गांधी का देश संयुक्त राष्ट्र में यह नहीं कह पाया कि हमास को निपटाने से पहले बच्चों को बचाना जरूरी है!

दरअसल, न हमास खत्म होगा न इस्राइल; आगे की हमास की आतंकी कार्रवाइयों और इस्राइल की सैन्य कार्रवाइयों में खत्म बच्चों समेत निर्दोष नागरिकों को ही होना है। बड़ी शक्तियों में रूस, चीन, ईरान और टर्की जैसे अमेरिका-विरोधी देश क्रूरता के विरोधी नहीं हैं। बच्चों के प्रति क्रूरता के भी नहीं। उनसे बच्चों की हत्याओं का वास्ता देकर करुणा के पक्ष में अपील करना निरर्थक है। नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं को लेकर उनके अपने देशों के रिकार्ड छिपे नहीं हैं। निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय नियम-कानूनों को लेकर उनका रवैया भी इस्राइल और दूसरे शक्तिशाली देशों जैसा रहता है। ध्यान देने की बात है कि क्रूरता का फैलाव केवल इस्राइल और उसके समर्थक देशों तक सीमित नहीं हैं। हमास के समर्थक संगठन और देश युद्ध-विराम के लिए गाजा में बच्चों की हत्याओं की दुहाई देते हैं। लेकिन ऐसा वे सच्चे सरोकार के चलते नहीं करते। जैसे इस्राइल को फिलिस्तीनी बच्चों को लेकर पीड़ा नहीं होती, वैसे ही हमास समर्थकों को इस्राइली बच्चों की हत्याओं पर अफसोस नहीं होता। हमास के समर्थकों में हिजबुल्ला का काफी नाम लिया जाता है।

वेस्ट बैंक में रहने वाले फिलिस्तीनी नेशनल इनिशिएटिव के महासचिव और फिलिस्तीन विधानसभा के सदस्य मुस्तफा बरगुती पेशे से मेडिकल डॉक्टर हैं। वे अहिंसा में विश्वास रखते हैं। मौजूदा प्रकरण पर संभवत: उन्होंने प्रेस को सबसे ज्यादा साक्षात्कार दिए हैं। वे हमास के 7 अक्तूबर के हमले को अकेली और अलग घटना मान कर बात करने को तैयार नहीं होते। उनका आग्रह होता कि 7 अक्तूबर के हमले को इस्राइल के 75 सालों से जारी एक से बढ़ कर एक धतकर्मों की प्रतिक्रिया के रूप में, यानि पूरा संदर्भ ध्यान में रख कर देखा जाना चाहिए।

उनका मानना है कि फिलिस्तीनी इस्राइल की तरफ से चलाए जा रहे ‘नरसंहार, सामूहिक सजा और नस्लीय सफाए’ का सामना कर रहे हैं; जब तक फिलिस्तीनियों को दमित और इस्राइल को दमनकारी नहीं समझा जाता, तब तक मसले का सही परिप्रेक्ष्य सामने नहीं आ सकता। स्काइ न्यूज चैनल को दिया गया उनका साक्षात्कार मुख्यत: बच्चों की हत्याओं पर केंद्रित है। बरगुती गाजा में जारी बाल-हत्याओं में अमेरिका की मिलीभगत ही नहीं, सीधे भागीदार मानते हैं। इस्राइली जिआॅनवाद को सारी समस्या की जड़ मानने वाले बरगुती इस्राइल और गाजा में होनी वाली बच्चों की हत्याओं में हमास की संलिप्तता को लेकर कुछ नहीं कहते!

कम से कम सत्ता-प्रतिष्ठानों का व्यवहार देख कर यही लगता है कि क्रूरता ने मानव-सभ्यता पर मजबूत कब्जा जमा लिया है। बच्चे मारे जाकर तो क्रूरता का शिकार बनते ही हैं, जीवित रहने पर भी उनका जीवन क्रूरता के हाथों का खिलौना बन कर रह जाता है। आधुनिक सभ्यता का यह शायद सबसे गहरा संकट है। लेकिन करुणा कभी पूरी तरह मनुष्य को छोड़ कर नहीं जाती। दुनिया के कई देशों में बच्चों की हत्याओं से विचलित सरोकारी नागरिकों के स्वत:स्फूर्त आंदोलन हो रहे हैं। दुनिया-भर के असंख्य नागरिक उनके साथ हैं। ऐसे नागरिक, जो बच्चों की हत्याओं-चाहे वे यूक्रेन में हों, इस्राइल में हों, गाजा में हों या दुनिया के किसी अन्य कोने में-को धर्म या नस्ल के चश्मे से नहीं देखते। बल्कि मानव करुणा की दृष्टि से देखते हैं। करुणा-मानवता के लिए करुणा- का यह सच्चा स्रोत है, जिसे हमेशा बने रहना है।


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