एक नए अध्ययन में इस बात का दावा किया जा रहा है कि अकेलापन डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। दरअसल यह अध्ययन लंदन और कनाडा के वैज्ञानिकों ने किया है। इसमें विशेषज्ञों ने करीब पांच लाख से अधिक प्रतिभागियों पर अध्ययन करके डाटा एकत्रित किया। बता दें कि यह शोध पीएलओएस में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने कनाडा के स्टडी आॅफ एजिंग में 5,02,506 और यूके की बायोबैंक में 30,097 लोगों के डाटा का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं के मुताबिक, धूम्रपान, अत्यधिक शराब पीना, खराब नींद आदतों वाले लोगों में एकाकी होने और सामाजिक समर्थन की कमी होने की संभावना अधिक थी। दरअसल डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश उस बीमारी को दिया जाने वाला नाम है जिसमें हमारी भूलने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है।
यह एक मस्तिष्क का रोग है जो प्राय: याद्दाश्त की समस्याओं के साथ शुरू होता है। बाद में यह मस्तिष्क के अन्य भागों को प्रभावित करने लगता है जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती हैं। यह स्मृति, सोच-विचार, अभिविन्यास, समझ, गणना, सीखने की क्षमता, भाषा और निर्णय को प्रभावित करता है। डिमेंशिया के कारण स्मृतिलोप, सोचने में कठिनाई, दृश्य धारणा, स्व-प्रबंधन, समस्या समाधान से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगती है।
यह भी देखा गया है कि अमूमन समय के साथ यह बीमारी बढ़ती है। जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, व्यक्ति अन्य लोगों पर ज्यादा निर्भर होने लगता हैं। यह समस्या वृद्ध लोगों में ज्यादा होती हैं। हालांकि 40 वर्ष की आयु में भी इसकी शुरुआत हो सकती है।
लेकिन 65 वर्ष की उम्र तक, हर बीस में से एक व्यक्ति को एवं 80 वर्ष की उम्र तक हर पांच में से एक व्यक्ति को मनोभ्रंश हो सकता है। उल्लेखनीय है कि डिमेंशिया के लक्षण कई रोगों के कारण पैदा हो सकते है। ये सभी रोग मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त करते हैं। जैसा कि हम अपने सभी कामों के लिए अपने मस्तिष्क पर निर्भर हैं, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते। यह देखा गया है कि डिमेंशिया से पीड़ित रोगी में बोलते वक्त सही शब्द नहीं सूझता। साथ ही उनका व्यवहार बदला-बदला-सा लगने लगता है, और व्यक्तित्व में भी फर्क आ जाता है।
यह भी देखा गया है कि वे असभ्य भाषा का प्रयोग करने लगते हैं और अश्लील तरह से पेश आने लगते हैं। साल दर साल डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की स्थिति अधिक खराब होती चली जाती है, और बाद की अवस्था में उन्हें साधारण से साधारण काम करने में भी दिक्कत होने लगती है, जैसे कि चल पाना, बात करना, खाना ठीक से चबाना और निगलना, यहां तक कि वे छोटी से छोटी चीज के लिए भी निर्भर हो जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में 4 करोड़ से अधिक लोग डिमेंशिया बीमारी से पीड़ित है। यह रोग एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट को बढ़ा रहा है। भारत में लगभग 40 लाख से अधिक लोगोें में डिमेंशिया रोग मौजूद है। हाल में जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज के वैज्ञानिकों ने डिमेंशिया रोग पर शोध किया है। इस शोध के मुताबिक, अगले तीन दशकों में डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की तादाद तीन गुनी हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि डिमेंशिया रोकथाम पर लैंसेट आयोग ने बारह मुख्य जोखिमों को सूचीबद्ध किया है। जिसमें शिक्षा का निम्न स्तर, उच्च रक्तचाप, सुनने की क्षमता में कमी, धुम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक गतिविधियों में कमी, मधुमेह, कम सामाजिक संपर्क, अत्यधिक शराब का सेवन और मस्तिष्क की गहरी चोटें तथा वायु प्रदूषण शामिल हैं।
जर्मन रिसर्च सेंटर की डिमेंशिया विशेषज्ञ मरीना बोकार्डी का कहना है कि इन जोखिमों में से अधिकांश को व्यवहार में बदलाव के माध्यम से कम किया जा सकता है। यदि हम व्यक्तिगत रूप से या हमारी सरकारें इन जोखिम कारकों को कम करने के लिए कुछ ठोस उपाय करती हैं, तो हम डिमेंशिया के कम से कम 40 फीसदी मामलों को रोक सकते हैं।
एक अन्य शोध के मुताबिक, डिमेंशिया वर्तमान में सभी प्रकार की बीमारियों से होने वाली मृत्यु का सातवां प्रमुख कारण है जो वैश्विक स्तर पर वृद्ध लोगों में विकलांगता और दूसरों पर निर्भरता के प्रमुख कारणों में से एक है। ऐसे में, अब आम आदमी के मस्तिष्क में इस सवाल का कौंधना स्वाभाविक है कि आखिर डिमेंशिया जैसी बीमारी से निपटने का उपाय क्या हो सकता है? डिमेंशिया को ठीक करने के लिये वर्तमान में कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। हालांकि नैदानिक परीक्षणों के विभिन्न चरणों में कई नए उपचारों की जाँच की जा रही है।
हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव कर उसमें डिमेंशिया के विकास की संभावनाओं को प्रभावित किया जा सकता है। विशेषज्ञों की राय है कि हम अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव के कारकों को रोक सकते हैं। यदि हम नियमित तौर पर व्यायाम और स्वच्छ आहार, धुम्रपान न करने तथा अधिक शराब पीना रोक कर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अवसाद से जुड़े जोखिमों को कम कर देते हैं, तो संभव है कि हम डिमेंशिया से बच सकते हैं। इसके अलावा, अच्छी नींद लेना भी इससे बचाव में मदद करता है।
साल 2021 में जारी एक शोध के मुताबिक, 50 और 60 की उम्र के लोग जो पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं। उनके जीवन में एक समय के बाद डिमेंशिया होने की संभावना बढ़ जाती है। लिहाजा, डिमेंशिया रोग के प्रति जागरूकता अभियानों को चलाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सरकारों को डिमेंशिया रोग से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इसके अलावा, हम अपनी जीवनशैली में बदलाव कर विभिन्न प्रकार की बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं।