विगत एक दशक में पटाखे चलाने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही बढ़ा है। विशेष तौर पर त्योहारों के अवसर पर। नि:संदेह त्योहारों को धूमधाम से मनाना चाहिए। पटाखे भी फोड़े जाने चाहिए। लेकिन पटाखे इको फ्रेंडली होने चाहिए। पर विडंबना यह है कि देश में चीनी पटाखों की आमद बढ़ी है, जिसके इस्तेमाल से वातावरण विषैला हो रहा है। हालांकि एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत चीनी पटाखों के आयात पर सरकार ने रोक लगा रखी है, लेकिन सच्चाई यह है कि इन पटाखों की तस्करी के जरिए भारत लाया जा रहा है। आमतौर पर इन पटाखों को दीपावली के आसपास तस्करी के जरिए अन्य वस्तुओं के साथ कंटेनरों में भरकर लाया जाता है।
चीनी पटाखों में क्लोराइड और परक्लोराइड जैसे घातक रसायनों की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसे सेहत के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। तुलनात्मक रुप से भारतीय पटाखों में इस्तेमाल होने वाले नाइटेट की अपेक्षा चीनी पटाखों में प्रयुक्त क्लोराइड 200 से अधिक डिग्री सेल्सियस तापमान पर पिघलता है और हल्की सी रगड़ से विस्फोट हो जाता है। चूंकि नाइट्रेट की अपेक्षा क्लोराइड सस्ता होता है, इस नाते चीनी पटाखों की कीमत कम होती है और बाजार में उनकी मांग ज्यादा होती है। चीनी पटाखों को भारतीय जलवायु के अनुकूल नहीं माना जाता। अगर इन पटाखों का समुचित रखरखाव न हुआ तो भीषण हादसे होने की संभावना बनी रहती है।
दीपावली के आसपास इस तरह के हादसों की संभावना बढ़ जाती है। हादसों के अलावा ऐसे पटाखों के इस्तेमाल से सेहत संबंधी भी समस्याएं भी गहराती हैं। मसलन दीपावली के आसपास सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों की तकलीफें बढ़ जाती हैं। पटाखों के धुएं में नाइट्रोजन आॅक्साइड, सल्फर डाइ आॅक्साइड, कार्बन मोनो आॅक्साइड, ऐस्बेस्टॉस तत्वों के अलावा जहरीले गैसों के रसायनिक तत्व पाए जाते हैं जो बेहद खतरनाक हैं। कफ, अस्थमा, ब्रोकांइटिस, न्यूमोनिया, एम्फिसिया, सिरदर्द, फेफड़ों का कैंसर, आंख में जलन, श्वास नलिका में अवरोध एवं विभिन्न तरह की एलर्जी होती है। चूंकि पटाखों में जहरीले तत्वों की मात्रा अधिक होती है इस वजह से फेफड़ों की क्षमता प्रभावित होती है। यह कोशिकाओं को समाप्त कर देता है जिसके कारण फेफड़ों से आक्सीजन ग्रहण करने और कार्बन डाइआॅक्साइड छोड़ने में बाधा आती है। जहरीले पटाखों के कारण शरीर में बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण की संभावना भी बढ़ जाती है।
इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण की समस्या भी बढ़ जाती है। इस दौरान आवाज का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है जिसके कारण श्रवण क्षमता प्रभावित होने, कान के पर्दे फटने, रक्तचाप बढ़ने, दिल के दौरे पड़ने जैसी समस्याएं उत्पन हो जाती हैं। अगर आमजन को पटाखों से होने वाले नुकसान और वातावरण संरक्षण अधिनियम 1986 तथा ध्वनि प्रदूषण से सुपरिचित कराया जाए तो वातारण के प्रति उनमें संवेदनशीलता बढ़ेगी। आंकड़ें बताते हैं कि मानव निर्मित वायु प्रदूषण से हर साल तकरीबन चार लाख सत्तर हजार लोग दम तोड़ते हैं। मानव निर्मित प्रदूषण की वजह से आज भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं। आज देश की राजधानी दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। अगर पटाखों के बजाए दीपों के जरिए दीपावली का उत्सव मनाया जाए तो वायुमंडल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा और करोड़ों रुपए भी बर्बाद होने से बचेंगे। यहां ध्यान देना होगा कि विगत वर्षों में वायुमण्डल में आॅक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे न केवल कई तरह की बीमारियों में इजाफा हुआ है, बल्कि खतरनाक स्तर पर वातावरण भी प्रदूषित हुआ है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखाने और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। वाहनों के धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन आॅक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाई आॅक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग, और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और श्वास संबंधी रोग होते हैं। कारखाने और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न र्इंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।
वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषित वायुमण्डल से जब भी वर्षा होती है प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदुषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र समष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नार्वे, स्वीडन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रहा है। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमंडल के दूषित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है। ध्रुवों पर इस परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है जिससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनीं किरणें भूपृष्ठ पर पहुंचकर ताप में वृद्धि कर रही है। इससे न केवल कैंसर जैसे असाध्य रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ओजोन एवं अन्य तत्वों के बनने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
आंकड़े के मुताबिक प्रति लाख आबादी की मृत्यु में वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी 89.9 प्रतिशत है। याद होगा गत वर्ष पहले सर्वोच्च अदालत ने प्रतिबंधित पटाखों का निर्माण और इस्तेमाल किसी भी हाल में न होने देने के लिए कड़ा रुख अख्तियार किया था। उसने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस बारे में ताकीद किया था कि उसके आदेशों का सख्ती से पालन हो। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा था कि अगर कोई राज्य इसमें चूक करता है तो उस राज्य के मुख्य सचिव गृहसचिव जिम्मेदार होंगे। तब उसने छ: पटाखा निर्माताओं को नोटिस जारी कर पूछा कि उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही क्यों न किया जाए।
2019 में सर्वोच्च अदालत ने पटाखों में इस्तेमाल होने वाले खतरनाक रसायनों पर प्रतिबंध लगाया था। फिर उसने 3 मार्च, 2020 को पटाखों में इस्तेमाल किए जाने पदार्थों की रासायनिक जांच करने को कहा। उसके आदेश पर सीबीआई चेन्नई के संयुक्त निदेशक द्वारा जांच और पेश रिपोर्ट में पाया गया है कि प्रतिबंध के बावजूद भी एक दर्जन निर्माताओं ने पटाखों में प्रतिबंधित रसायनों का इस्तेमाल किया है। गौरतलब है कि पटाखा निर्माताओं से लिए गए नमूनों की रासायनिक जांच में प्रतिबंधित बेरियम एवं बेरियम सॉल्ट का इस्तेमाल पाया गया। ऐसे में सर्वोच्च अदालत का नाराज होना स्वाभाविक है। अब देखना दिलचसप होगा कि सर्वोच्च अदालत के आदेशों का कितना पालन होता है। उचित होगा कि हम खतरनाक पटाखे चलाने से बचें और प्रकृति एवं मानवता के प्रति संवेदनशील बनें।