वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा इस बात का पता चला है कि रूद्राक्ष शरीर में रक्तचाप को प्रभावित करता है। अतएव रक्तचाप के सही उपचार के लिए दाएं या बाएं बाजू में सूत या रेशम के धागे में पिरोकर इसे धारण करते हैं। रक्तचाप के अलावा रूद्राक्ष हृदयगति को भी संतुलित और प्रभावित करता है।
इसलिए हृदय संबंधी रोगी के लिए भी अब रूद्राक्ष की माला धारण करना लाभदायक समझा जाने लगा है किन्तु सामान्य रूप में यह स्वीकृत तथ्य है कि सिद्धि तथा उचित प्राण-प्रतिष्ठा और अनुष्ठान के उपरान्त उपयोग में लाए जाने पर रूद्राक्ष अधिक हितकर होता है। इसके लिए प्रचलित धार्मिक आचार-व्यवहार के अलावा भी शुद्ध और पवित्र मन से उपयोग करने पर रूद्राक्ष लाभकारी होता है।
भारत में आज नहीं, प्राचीन काल से ही फूल-फल और कतिपय जड़ी-बूटियों में गुण दोष के अनुसार चमत्कारी प्रभाव का ज्ञान था। इस कोटि में ‘रूद्राक्ष’ को अपने गुणों के कारण अब अधिक मान्यता मिलने से लोकप्रियता प्राप्त होने लगी है।
‘रूद्राक्ष’ जैसा कि इस संस्कृत शब्द के अर्थ से स्पष्ट है, को शिव जी की आंख कहा जाता है। साथ ही यह मान्यता है कि इसे धारण करने वाले व्यक्ति पर महादेव शिव की कृपादृष्टि बनी रहती है और अनेक प्रकार के संकटों से उसकी रक्षा संभव होती है। मूल रूप में रूद्राक्ष एक विशेष प्रकार के वृक्ष का बीज है, जिसमें एक से लेकर 14 रेखाएं या धारियां होती हैं।
चना या मटर से लेकर अंगूर के दाने जैसे गोलाकार काठ के कठिन या रूद्राक्ष के बीजों का रंग सामान्यत: गहरा गुलाबी या कालिमा लिए हुए लाल और श्याम रंग का हुआ करता है। रूद्राक्ष सामान्यता: काष्ठ वस्तु से अधिक कठोर और वजनी होता है। बाजारों में काठ की नकली गोलियाँ बनाकर भी लोग रूद्राक्ष के नाम पर बेचा करते हैं, जिनमें कोई गुण या चमत्कार नहीं होता।
असली रूद्राक्ष की पहचान
असली रूद्राक्ष की पहचान उसकी धारियों तथा विशेष गुणों से की जा सकती है। असली रूद्राक्ष शुद्ध जल में डूब जायेगा तथा छोटी प्याली में दूध या गंगाजल में रूद्राक्ष की माला रखने से तापमान बढ़ जाता है। असली रूद्राक्ष की पहचान तांबे के पैसे को बीच में रखकर भी की जा सकती है। ऐसी स्थिति में वह विद्युत संचार से घूमने लगता है जबकि नकली रूद्राक्ष में यह गुण नहीं है। रूद्राक्ष की महत्ता महादेव शिव शंकर की माया से जुड़ी है क्योंकि परंपरा अनुसार नेपाल में पशुपतिनाथ के मंदिर के पास रूद्राक्ष वृक्ष के दानों को सिद्ध कर प्रसाद रूप में वितरित किया जाता रहा है। इसके वृक्ष नेपाल नरेश के शाही बाग के अलावा हिमालय के तराई वाले इलाके में भी हैं। भारत और नेपाल से बाहर रूद्राक्ष के वृक्ष मलेशिया तथा जावा-सुमात्र के द्वीपों में भी मिलते हैं जहां से अब बड़ी मात्र में रूद्राक्ष भारत में आयात किया जाने लगा है।
रूद्राक्ष के विभिन्न प्रकार
रूद्राक्ष के ऊपरी उभार तथा धारियों और आकृति के अनुसार इसकी कोटि को निर्धारित किया जाता है। एक मुखी अर्थात एक धारी वाला रूद्राक्ष अधिक उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण है। इसके बाद दो मुखी, तीन मुखी, चार मुखी और पंचमुखी रूद्राक्ष बहुतायत में मिलते हैं। माला बनाकर धारण करने के लिए पंचमुखी रूद्राक्ष सर्वाधिक लोकप्रिय है लेकिन ग्यारहमुखी और चौदहमुखी रू्रा़क्ष का विशेष महत्त्व है जो अत्यन्त कठिनाई से प्राप्त होता है।
शक्ति की साधना और योग सिद्धि के लिए इनका उपयोग श्रेयस्कर माना जाता है। एकमुखी रूद्राक्ष अपनी गुणवत्ता के लिए अधिक प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि एकमुखी रूद्राक्ष शिव की कृपा दृष्टि का प्रतीक है जो धारण करने वाले व्यक्ति की भाग्य शक्ति को बढ़ाकर अनिष्ट से सुरक्षा प्रदान करता रहता है। दोमुखी रूद्राक्ष देवी दुर्गा का प्रतीक चिन्ह है जिसके धारण करने से हितकारी ज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे शत्रुओं की चालों से रक्षा संभव है।
तीनमुखी को प्राय: त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक मानकर धारण किया जाता है किन्तु मूलत: यह शक्तिदायक बीज ऊर्जा प्रदान कर शरीर के त्रिदोष का निवारण करने में सहायक होता है। चतुमुर्खी रूद्राक्ष व्यक्ति को नियंत्रण और प्रशासन की क्षमता देने वाला होता है। साथ ही तीव्र पीड़ा और संकट में भी यह व्यक्ति को अविचलित रहने की सामर्थ्य देता है। पंचमुखी रूद्राक्ष अधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। यही माया और लक्ष्मी का प्रतीक है। धन धान्य देने वाला तथा स्वस्थ और कांतिवान शरीर का रक्षक है। ऐसी रूद्राक्ष की असली माला को सिद्ध्र कर धारण करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य संतुलित रहता है तथा प्रयासों में सफलता मिलती है।
आधुनिक वैज्ञानिक मत
वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा इस बात का पता चला है कि रूद्राक्ष शरीर में रक्तचाप को प्रभावित करता है। अतएव रक्तचाप के सही उपचार के लिए दाएं या बाएं बाजू में सूत या रेशम के धागे में पिरोकर इसे धारण करते हैं। रक्तचाप के अलावा रूद्राक्ष हृदयगति को भी संतुलित और प्रभावित करता है।
इसलिए हृदय संबंधी रोगी के लिए भी अब रूद्राक्ष की माला धारण करना लाभदायक समझा जाने लगा है किन्तु सामान्य रूप में यह स्वीकृत तथ्य है कि सिद्धि तथा उचित प्राण-प्रतिष्ठा और अनुष्ठान के उपरान्त उपयोग में लाए जाने पर रूद्राक्ष अधिक हितकर होता है। इसके लिए प्रचलित धार्मिक आचार-व्यवहार के अलावा भी शुद्ध और पवित्र मन से उपयोग करने पर रूद्राक्ष लाभकारी होता है।
यही कारण है कि तपस्वी, संत, महर्षियों ने अति प्राचीन काल से ही रूद्राक्ष के मनकों की महत्ता को समझकर इसे अपनाए रखा। आधुनिक युग में भी यह शंकराचार्य, महर्षि महेश, रजनीश, साई बाबा आदि योगी पुरुषों के वक्षस्थल की शोभा है।
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