Saturday, September 21, 2024
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रेल हादसों पर कैसे लगे ब्रेक

 

SAMVAD


ROHIT MAHESHWARIपश्चिम बंगाल में बीते दिनों हुई रेल दुर्घटना में 10 यात्रियों की जान चली गई। कंचनजंगा एक्सप्रेस टे्रन सियालदाह जाने वाली थी, लेकिन मालगाड़ी ने पीछे से टक्कर मारी और बहुत कुछ ध्वस्त हो गया। पीछे की दो बोगियां मलबा बन गई। कुछ बोगियां पटरी से नीचे उतर कर पलट गई। घायलों की संख्या भी 50-60 बताई गई थी। हम उनके स्वस्थ होने और अपने-अपने घर लौटने की दुआ करते हैं। दुर्घटना कोई भी हो, विध्वंस होती है। दुर्घटना की शुरुआती रपटें इसे ‘मानवीय चूक’ करार दे रही हैं। संभव है कि ऐसा ही हो, लेकिन रेलवे सुरक्षा आयुक्त की सम्यक जांच के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि टक्कर का बुनियादी कारण क्या था? जांच में यह तथ्य भी विचाराधीन होना चाहिए कि मालगाड़ी का लोको पायलट लगातार चार रातों से सोया नहीं था। यह भी अमानवीय नौकरी है। नियम अधिकतम दो रात लगातार ड्यूटी करने की अनुमति देते हैं। यह भी अमानवीय नियम है। वैकल्पिक लोको पायलटों की व्यवस्था होनी चाहिए। यह कैसे होगा, क्योंकि रेलवे में बीते 10 सालों से करीब तीन लाख पद खाली पड़े हैं। उनमें 21 फीसदी लोको पायलट के पद हैं। उन्हें कब भरा जाएगा? वे तो स्वीकृत और अधिकृत पद हैं, फिर सरकार को इन पदों को भरने में क्या दिक्कत रही है?

खुद रेलवे बोर्ड का मानना है कि लोको पायलट की लगातार कई घंटों, दिनों की नौकरी भी बड़े हादसों का बुनियादी कारण है। ‘कवच’ एक आॅटोमैटिक रेल सुरक्षा सिस्टम है, जिसे स्वदेशी तौर पर ही विकसित किया गया है। सवाल है कि बालासोर रेल हादसे के बाद एक भी रूट किलोमीटर ‘कवच’ प्रणाली स्थापित क्यों नहीं की जा सकी? इसका जवाब रेल मंत्री देंगे अथवा जांच के बाद कोई यथार्थ सामने आएगा! अभी तक 1465 रूट किमी और 139 रेल इंजनों पर ही कवच स्थापित किया गया है। यह स्थिति फरवरी, 2024 की है और दक्षिण मध्य रेलवे में ही यह व्यवस्था की गई है।

बताया जाता है कि कई हजार रूट किमी पर कवच प्रणाली के लिए टेंडर दे दिए गए हैं। वे कब तक इस सुरक्षा प्रणाली को स्थापित कर देंगे, ताकि कोई भी अमूल्य जिंदगी गंवानी न पड़े? कवच ही सुरक्षा की 100 फीसदी गारंटीशुदा व्यवस्था नहीं है। सिग्नल और इंटरलॉकिंग सरीखी तकनीकी समस्याएं हैं, जिनके कारण रेलवे टकराव होते हैं और त्रासद हादसे सामने आते हैं। सिग्नल खराब होने की स्थिति में लोको पायलट्स को ट्रेन कैसे चलानी है, इसका पर्याप्त प्रशिक्षण पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोको स्टाफ को आज तक नहीं दिया गया है। आॅल इंडिया रनिंग लोको स्टाफ एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एसएस ठाकुर का बयान गौरतलब है कि सिग्नल फेल होने पर जिस वैकल्पिक फॉर्म टीए-912 के जरिए टेÑनें चलाई जाती हैं, उससे जुड़ा एक नियम यह भी है कि तब तक आगे वाली टे्रन अगला स्टेशन पार न कर ले, तब तक दूसरी टेÑन को पिछले स्टेशन से आगे नहीं बढ़ाते हैं। इस बार यह नियम नहीं माना गया, तो गलती से हादसा हो गया। हालांकि बालासोर दुर्घटना के बाद कुछ प्रयास किए गए थे, ताकि ये विसंगतियां कम की जा सकें।

सवाल यह है कि रेल मंत्रालय मानवीय भूल के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को टालने के लिए गंभीर पहल क्यों नहीं करता। क्यों रेल दुर्घटनाएं रोकना सत्ताधीशों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं होता? जिस ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली कवच को चरणबद्ध तरीके से जल्दी से लागू किया जाना चाहिए था, उस पर कछुआ गति से काम क्यों हो रहा है? एक ओर देश में बुलेट ट्रेन और तेज गति से चलने वाली अन्य ट्रेनों की बात की जा रही है, वहीं सामान्य गति से चलने वाली ट्रेनों को भी दुर्घटनाओं से निरापद बनाने में हम विफल साबित हो रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि देश में फास्ट ट्रेनों की चकाचैंध व ग्लैमर के बजाय सामान्य गति की ट्रेनों की सुरक्षा को प्राथमिकता के आधार पर सुनिश्चित किया जाए। वहीं विपक्ष का आरोप है कि रेलवे में रिक्त पड़े लाखों पदों को नहीं भरा जा रहा है, जिससे रेलवे बढ़ती आबादी के दबाव में सुरक्षित रेल सेवा उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। आखिर हम इन रेल हादसों से सबक कब लेंगे?

सवाल यह भी है कि क्या वंदे भारत सरीखी ट्रेन के आकर्षक आधुनिकीकरण पर राजनीतिक और नीतिगत फोकस अधिक है, लिहाजा कवच जैसी प्राथमिकताएं पीछे छूट जाती हैं? क्या रेलवे की सुरक्षा से ऐसे समझौते किए जा सकते हैं? सवाल यह भी वाजिब है कि राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष में 75 फीसदी फंडिंग कम क्यों की गई? सुरक्षा कोष के पैसे रेल अधिकारी क्यों खर्च कर रहे हैं? रेल हादसे होते हैं, तो ऐसे सवाल भी उठाए जाते हैं। इस पूरे परिदृश्य पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को देश को जवाब देना चाहिए। निस्संदेह, रेल यातायात को दुर्घटनाओं से निरापद बनाने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार व अधिक निवेश की जरूरत है। हम अतीत के हादसों से सबक लेकर परिचालन व्यवस्था को सुधारने का प्रयास करें। हादसों की जवाबदेही तय हो ताकि दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। वक्त की जरूरत है कि दुर्घटनाओं को टालने के लिए, जितना जल्दी हो सके अधिक दबाव वाले इलाकों में कवच योजना को क्रियान्वित किया जाए। पटरियों के रखरखाव के लिए आवंटित फंड का उचित उपयोग किया जाए। रेलवे के आधुनिकीकरण के लिये वित्तीय संसाधन जुटाए जाएं ताकि यह न कहा जा सके कि असुरक्षित पटरियों पर लचर संचालन प्रणाली दुर्घटनाओं की वजह बन रही है। दुर्घटनाओं का सिलसिला तभी थमेगा जब यात्रियों की सुरक्षा रेल मंत्रालय व सरकार की प्राथमिकता बनेगी।

बढ़ते रेल हादसों की वजह से रेलवे के पूरे तंत्र पर प्रश्न चिह्न लग रहा है। सिग्नल सिस्टम में सुधार करना जरूरी है। साथ ही मानवीय त्रुटियां न हों, इसके लिए रेलवे कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए। पटरियों के रखरखाव पर खास ध्यान दिया जाए। नियमित सुरक्षा आॅडिट और निरीक्षण सुनिश्चित किया जाए। आधुनिक तकनीक को अपनाया जाए। रेलवे ट्रैक का नियमित निरीक्षण होना चाहिए और इसकी मरम्मत पर ध्यान दिया जाना चाहिए। स्टाफ प्रशिक्षित और सतर्क होना चाहिए। आधुनिक कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाए। आपातकालीन सेवाओं को मजबूत बनाया जाए। ट्रेनों और स्टेशनों में सीसीटीवी लगाए जाए। देश में पिछली तीन बड़ी रेल दुर्घटनाओं में सिग्नल सिस्टम तकनीक में आ रही खामी एक बड़ी वजह उभर कर सामने आई हैं। अत: इसमें सुधार की आवश्यकता है।

सवाल यह भी है कि बार-बार रेल हादसे क्यों होते हैं और क्या इनको लेकर जवाबदेही तय नहीं की जा सकती? हादसों के बाद जांच के लिए जो समितियां गठित होती हैं, उनकी सिफारिशें किस हद तक मानी गई हैं। रेल यात्रा सुरक्षित बनाने के लिए ड्राइवरों की समय समय पर आंखों की जांच की जाए । मात्र मृतकों के परिजनों व घायलों को मुआवजा देने से रेलवे अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। समस्या समाधान चाहती है, न कि दलगत राजनीति।


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