- वक्फ मनसबिया की कौम के लोगों से दर्दमंदाना अपील
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मैं 100 साल से ज्यादा की हो चुकी हूं। मैं बूढ़ी हूं। मुझे सहारे की जरुरत है। अगर अब भी मुझे लेकर लोगों में छीना झपटी होती रही तो मैं बहुत जल्द टूट जाऊंगी। मुझे मंसब अली खां ने जब कौम के नाम वक्फ (आरक्षित) किया था तब उन्होंने यह सोचा भी न होगा कि जो जायदाद कौम की बेहतरी के नाम वक्फ की जा रही है, उसे हासिल करने के लिए लोग न जाने क्या क्या हथकंडे अपनाएगें। हालांकि मेरे चाहने वालों की भी कमी नहीं है और इन चाहने वालों ने ही मुझे इस काबिल तो बना ही दिया है कि मैं अपने वजूद से खुद लड़ सकूं।
मैं एक बहुत बड़ी जायदाद के रूप में कौम के उस सरमाए को अपनी आगोश में समेटे हूं जो मंसब अली खां ने यह सोच कर वक्फ किया था कि आगे चलकर यह कौम के काम आएगा। मेरे चाहने वालों की मुझ पर बहुत ज्यादा नजर ए इनायत रहीं, लेकिन कुछ लोग मुझे कमाई का जरिया बनाने में लग गए और मेरे वजूद से ही जा टकराए। मैंने कभी किसी के साथ नाइंसाफी नहीं की तो फिर आज मेरे साथ नाइंसाफी क्यों हो रही है।
मैंने हमेशा कौम की बेहतरी के सपने संजोए। कौम ने भी मुझ पर जां निसार की लेकिन बिरादरी के कुछ मुट्ठी भर मौका परस्त लोगों ने मेरे वकार को झुठलाना चाहा, उससे खेलने की कोशिश की। यहां आकर मैं टूट गई। ऐसे मौका परस्त लोग मुझ पर कब्जा कर मेरे पैरों में बेड़ियां डाल मुझे कमाई का जरिया बनाना चाहते हैं। इन मुट्ठी भर लोगों की कारस्तारियों के चलते आज मेरा वजूद हिचकोले ले रहा है। मैं शुक्रगुजार हूं उन लोगों की भी जो मेरे वजूद को बचाने के लिए उन लोगों से टकराने को तैयार बैठे हैं
जो मुझे दोनों हाथों से लूटना चाहते हैं। फैसला तो हुक्मरानों को ही करना होता है, लेकिन मेरी इन हुक्मरानों से दर्दमंदाना अपील है कि वो मेरा वजूद चाहे जिन हाथों में सौंपे लेकिन वो हाथ इतने काबिल जरुर होने चाहिए जो मेरा इस्तेमाल उस तरह कर सकें जिस सोच के साथ मुझे कौम के नाम वक्फ किया गया था। फैसला आपको करना है…मैं हूं मेरठ की आभागी वक्फ मनसबिया!