Tuesday, July 9, 2024
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सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति पूजा

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Samvad 52


PRABHAT KUMAR RAIसुभाषचंद्र बोस का नाम स्मरण आते ही सहसा बहादुरशाह जफर की यह पंक्तियां भी जहन में आ जाती हैं।।।बागियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की/तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की। राजधानी दिल्ली के दिल इंडिया गेट के निकट ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 28 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना ठीक उस स्थान पर की गई है, जहां गुलामी के दौर में जॉर्ज पंचम की प्रतिमा स्थापित की गई थी। सुभाषचंद्र बोस एक प्रतिबद्ध देशभक्त और समाजवादी थे, जिनके जीवन में भारत की सांप्रदायिक एकता और सौहार्द का स्थान सदैव सर्वोपरि रहा। आज का दौर, जिसमें सांप्रदायिक वैमनस्य अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ दनदना रहा है, अत: ऐसे दौर में सुभाषचंद्र बोस की शख़्सियत और उनकी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता की चर्चा नितांत आवश्यक हो जाती है। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर सुभाषचंद्र बोस ने भारत की संपूर्ण आजादी का लक्ष्य प्राप्त करने के साथ ही साथ भारत में समाजवादी अर्थव्यवस्था स्थापित करने के पक्ष में अपने तेजस्वी और ज्वलंत विचार पेश किए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में पहली बार किसी कांग्रेस अध्यक्ष ने योजनाबद्ध तौर तरीके से आर्थिक विकास अंजाम देने के लिए अपने तेजस्वी विचार पेश किए थे और योजना आयोग के गठन की पेशकश की थी। एक अभिनव समाजवादी चिंतक के तौर पर सुभाष का मूल्याकंन प्राय: किया ही नहीं जाता है। जंग ए आजादी के विरल योद्धा के रूप में ही सुभाष बोस को अत्याधिक ख्याति और यश प्राप्त हुआ है। जबकि वास्तविकता यह भी है कि भारतीय वेदांत और मार्क्सवाद के द्वंदात्मक समन्वय के माध्यम से सुभाष ने एक अद्वितीय सैद्धांतिक काम अंजाम दिया था। वेदांत के आध्यत्मवाद में गहन आस्था रखने के बावजूद कार्ल मार्क्स के आर्थिक और सामाजिक विचारों को ग्रहण करने में सुभाष के कदाचित संकोच प्रकट नहीं किया। पूर्व और पश्चिम के सैद्धांतिक विचारों का अप्रतिम द्वंदात्मक समन्वय सुभाष बोस के विलक्षण विचारों में प्रकट होता रहा।

लोकमान्य तिलक की आकस्मिक मृत्यु के तत्पश्चात, 1920 से कांग्रेस आंदोलन पर हावी रही महात्मा गांधी की नीतियों का प्रखर विरोध सुभाषचंद्र बोस ने किया। 1939 में गांधी जी के खुले विरोध के बावजूद सुभाष ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में डा. पट्टाभि सितारमैया को पराजित किया। गांधी ने सुभाष बोस की जीत को अपनी व्यक्तिगत हार करार दिया। प्रमुख गांधीवादी लीडरों ने सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कदाचित काम नहीं करने दिया और तीन वर्ष के लिए उनको कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। विवश होकर सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस से निष्कासित होकर सुभाषचंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक की बुनियाद रखी। फारवर्ड ब्लाक के परचम तले सुभाष बोस ने वामपंथी कॉन्सालिडेशन कमेटी का गठन किया, जिसके तहत कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के समाजवादियों, एमएन रॉय की रैडिकल लीग और साम्यवादियों को एकजुट करने का प्रयास किया गया। सुभाष बोस की पार्टी फारर्वड ब्लाक देश-भक्ति की भावना के साथ समाजवादी विश्वास का अलंबरदार बन गई थी।

1939 में विश्व युद्ध का आगाज हुआ। 1941 में सुभाष किसी तरह से अंग्रेजों की नजरबंदी से बच निकले और अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी जा पहुंचे, जहां से उन्होंने फिर जापान का रुख किया। फरवरी 1942 में तकरीबन ब्रिटिश फौज एक लाख सैनिकों ने जापान के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। लगभग 60 हजार भारतीय सैनिकों ने आजा़द हिंद फौज में शामिल होने और देश की आजादी के लिए संघर्ष करने का निणर्य किया। सुभाष बोस के विलक्षण चमत्कारिक व्यक्तित्व और नेतृत्व ने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों में जोशो खरोश का संचार किया। सुभाष के लिए आजादी का संघर्ष एक दिवानगी रहा़, प्रख्यात अमेरिकी सेनानी पैट्रिक हैनरी की तरह ही उनका सदैव ही गहन भाव रहा कि मुझे आजादी दे दो या फिर मौत दे दो! फौजियों के अप्रतिम उत्साह को देखते हुए जापान के तत्कालिन प्रधानमंत्री तोजो ने कहा था कि सुभाष बोस को हम आखिरकार क्या कहकर पुकारें, उनके जैसे शख़्स को ही शताब्दी पुरुष कहा जा सकता है! सुभाषचंद्र बोस ने महात्मा गांधी जी के साथ अपनी राजनीतिक कटुता तिरोहित करते हुए उन्हें राष्ट्र पिता कह कर संबोधित किया। और आजा़द हिंद फौज की प्रमुख ब्रिगेड का नामकरण महात्मा गांधी ब्रिगेड किया, जिसका सर्वोच्च कमांडर जनरल शाहनवाज खान को नियुक्त किया गया।

1944 में अदम्य उत्साह के साथ ब्रिटिश फौज को पराजित करते हुए बर्मा को पार करके अंडमान निकोबार द्वीप पर अपना परचम आजाद हिंद फौज ने लहरा दिया और आसाम के कुछ हिस्सों पर आधिपत्य जमा लिया। भारत की बदनसीबी ही कहिए कि अमेरिका ने जापान के नागासाकी और हिरोशिमा नगरों पर अमेरिका ने अणुबम का भीषण नरसंहार किया। मजबूर होकर जापान के सम्राट हिरोहितो ने अपनी सेना को आत्मसमपर्ण करने का आदेश दिया। देश को स्वतंत्र कराने का आजाद हिंद फौज का स्वप्न तो तत्कालीन तौर पर साकार नहीं हो सका, किंतु उसके द्वारा अंजाम दिए विकट संग्राम ने भारत में अद्भुत जनचेतना संचार कर दिया। आईएनए की प्रेरणा से 1946 में मुंबई में रॉयल इंडियन नेवी के सोर्ड शिप ने सैन्य विद्रोह कर दिया। ब्रिटिश इंटैलिजैंस के चीफ माइकेल अडवर्ड के अपनी सिक्रेट रिपोर्ट में लिखा कि ‘लाल किले से बाहर आकर सुभाषचंद्र बोस की छाया भारत के सभी सैन्य कैंटोंन्मैंटस पर भयानक तौर पर मंडरा रही है और ये सभी इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) की अनुगूंज से धधकने लगे है।’ भारत में ब्रिटिश सेना के कंमाडर इन चीफ फील्ड मार्शल आकिनलेक ने तत्कालिन ब्रिटिश प्रधान मंत्री को लिखा कि ‘ब्रिटिश फौज का प्राय: प्रत्येक भारतीय अफसर आईएनए के प्रभाव के कारण देशभक्त विद्रोही बन चुका है।’ इसी विवशता के कारण ही अंग्रेज भारत को एक खंडित आजादी देकर चले गए।

आज के दौर में जबकि सत्ता पर दक्षिणपंथी ताकत का आधिपत्य है, तो सुभाषचंद्र बोस की देशभक्ति की चर्चा तो खूब की जा रही है, किंतु क्या इन्हीं दक्षिणपंथी ताकतों ने भारतीय योजना आयोग का खात्मा करके, उसके स्थान पर नीति आयोग का गठन नहीं किया? समाजवाद और आर्थिक समता के विरोधी सत्तानशीन दक्षिणपंथी जो सार्वजनिक क्षेत्र का निरंतर निजीकरण करके देश की दौलत को अपनी पसंद के कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर रहे हैं। बोस वामपंथी राजनेता थे, जो समाज में आर्थिक समता के प्रबल पक्षधर थे। बोस की मूर्ति की केवल पूजा करके और उनके समाजवादी सिद्धांतों की बलि चढ़ाकर बोस को कदापि याद नहीं किया जा सकता।


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