Friday, April 19, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादविकास में बाधक अवैध कब्जे

विकास में बाधक अवैध कब्जे

- Advertisement -

 

Samvad 36


सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में तेजी से बढ़तीं अवैध बस्तियों को लेकर जो चिंता जताई, उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। उसने इन अवैध बसाहटों की रोकथाम के लिए व्यापक कार्ययोजना बनाने की जरूरत भी जताई। अवैध बस्तियों के साथ-साथ देशभर में सभी राज्यों के प्रमुख शहरों में फुटपाथों पर कब्जे चिंता पैदा कर रहे हैं। बड़े शहरों के साथ-साथ कस्बाई इलाकों में भी फुटपाथों पर कब्जेबाजों का बोलबाला है। इस मामले में नगरीय निकायों के अधिकारियों की चुप्पी गंभीर समस्या है। अवैध कब्जों पर नि:संदेह व्यापक कार्ययोजना की जरूरत है।

अतिक्रमण की परिभाषा भले ही हमें न पता हो लेकिन अतिक्र मण का कोई न कोई रूप हम सब रोज देखते ही हैं। कभी कहीं से गाड़ी लेकर निकलते हुए गलियों में वाहन खड़ा करने वालों को कोसते हैं तो कभी घर के बाहर चबूतरे बनाकर गली की चौड़ाई को आधा कर देने वालों को। ये सब अतिक्र मण के ही छोटे-छोटे रूप हैं। समग्रता में बात करें तो हमारा देश अतिक्र मण के ऐसे छोटे-बड़े मामलों की अति का शिकार है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक जून, 2017 तक 2.05 लाख हेक्टेयर सरकारी जमीन अतिक्र मण का शिकार थी।

नि:संदेह अवैध कब्जों के लिए राज्य सरकारें और उनके स्थानीय निकाय जिम्मेदार हैं। वे पहले सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण होने देते हैं, फिर जब-तब उन्हें हटाने का काम भी करते हैं। ऐसी कार्रवाई कभी सही ढंग से नहीं होती तो कभी वह अदालती हस्तक्षेप का शिकार हो जाती है। यह आरोप निराधार नहीं लगते कि नेताओं और अधिकारियों की साठगांठ से सरेआम आम लोगों के हितों पर डाका डाला जा रहा है। पैदल चलने वालों की जान से खेला जा रहा है।

परिभाषा के स्तर पर अतिक्र मण उस घटना को कहा जाता है जहां किसी अन्य के मालिकाना हक को दरकिनार करते हुए उसकी संपत्ति या जमीन पर कोई अन्य व्यक्ति अधिकार जता लेता है। वैसे तो निजी स्तर पर कई बार किसी दूसरे की जमीन पर स्थायी या अस्थायी ढांचा बनाकर अतिक्र मण का प्रयास होता है लेकिन सबसे ज्यादा मामले आते हैं सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण के फुटपाथ पर कब्जा करने वालों से आम आदमी की तरह बात करने पर ही स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें इसके बदले में संबंधित लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है।

नेताओं के संरक्षण में फुटपाथ पर कब्जा करने वालों पर कार्रवाई करने से प्रशासनिक अधिकारी यह कहते हुए बचने की कोशिश करते हैं कि सख्ती किए जाने पर गरीबों का रोजगार छिन जाएगा। यहां विचारणीय है कि बड़े शहरों के विस्तार के क्र म में यह क्यों नहीं देखा जाता कि शहरों को संचालित करने वाले मजदूर और कामगार रहेंगे कहां?

देश में अतिक्रमण की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2 प्रतिशत वन क्षेत्र अतिक्र मण का शिकार है। 2019 में एक आरटीआई के जवाब में पर्यावरण मंत्रलय ने यह जानकारी दी थी। गोवा, पुडुचेरी, चंडीगढ़ और लक्षद्वीप के अतिरिक्त कोई राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश ऐसा नहीं जहां वन क्षेत्र पर किसी तरह का अतिक्र मण न हो।

हकीकत है कि यातायात व्यवस्था को ठप करने और दुर्घटनाओं को बढ़ाने वाले इन कब्जों को भ्रष्टाचारियों से ही ताकत मिलती है। स्थानीय निकायों के भ्रष्ट कर्मी अवैध निर्माण होने देते हैं। कुछ नेता इन्हें वोट बैंक के रूप में विकसित करने की कोशिश करते हैं तो आपराधिक प्रवृत्ति के स्थानीय संरक्षकों के लिए आमदनी का माध्यम बना हुआ है।

पटरियों के किनारे अवैध झुग्गियां बनाकर अतिक्र मण कर लेने वाले भारतीय रेलवे के लिए भी बड़ी समस्या हैं। विभिन्न राज्यों में इन झुग्गियों को हटाने के लिए कई बार अभियान भी चलाए गए हैं लेकिन रेलवे की जमीनों को पूरी तरह से अतिक्र मण से मुक्त करा पाना संभव नहीं हो पाया है। रेलवे की कुल 814.5 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्र मण है। दक्षिणी जोन की 141 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्र मण है। 176 हेक्टेयर जमीन के साथ सबसे ज्यादा अतिक्र मण उत्तरी जोन पर है।

अब तो बड़े शहरों में झुग्गी माफिया भी पनप गए हैं जो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की शह से अतिक्र मण कराते हैं। प्रभावशाली लोगों ने अपने घरों के आगे फुटपाथ पर बागवानी तैयार कर ली है तो कई लोगों ने गार्ड के कमरे बनवा दिए हैं। इसी तरह कुछ नेताओं ने फुटपाथ की जगह अपने कार्यालय खोल दिए हैं। उसके आसपास अस्थायी दुकानें विकसित करा दी हैं।

अतिक्रमणकारियों ने रक्षा विभाग को भी नहीं छोड़ा है। ऐसे लोग कैंट एरिया के बाहर सेना की ऐसी जमीनों पर कब्जा करते हैं जहां कोई बाड़ नहीं होती है। रक्षा क्षेत्र की 9505 एकड़ जमीन अतिक्र मण का शिकार है। अकेले उत्तर प्रदेश में 1927 एकड़ रक्षा क्षेत्र की जमीन पर अतिक्र मण है। 1660 एकड़ के साथ मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र में 985 एकड़ रक्षा जमीन पर अतिक्रमण है।

फुटपाथ पर कब्जे को समाज सेवा का बहाना बनाते हुए संस्थागत रूप भी दिया जा चुका है। इसे कब्जेबाजी की राजनीतिक दूरदर्शिता ही कहा जाएगा कि सस्ती दवाओं की दुकानें फुटपाथ पर खोल दी जाएं ताकि उनका विरोध करने वाला खुद को गरीब-विरोधी होने की आत्मग्लानि से बचने के लिए चुप रहे।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि फुटपाथ पर पैदल यात्रियों का हक है और हर हाल में अतिक्र मण हटाए जाने चाहिए। इसके बाद भी अगर फुटपाथों पर कब्जा कायम है तो समझा जा सकता है कि कब्जेबाजों को कितना मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। फेरीवालों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है कि उन्हें सडक पर सामान छोड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

झुग्गी बस्तियां शहरी विकास को बदसूरत करने के साथ अन्य कई गंभीर समस्याएं भी पैदा कर रही हैं। यह स्वीकार करना होगा कि अपने देश में शहरीकरण बेतरतीब और अनियोजित विकास का पर्याय बन गया है। स्थिति यह है कि नियोजित आवासीय इलाके व्यावसायिक ठिकानों में बदलते जा रहे हैं। चूंकि समस्या गंभीर है इसलिए यह समझना होगा कि केवल चिंता जताने से काम चलने वाला नहीं है।

स्पष्ट है कि कानूनी व्यवस्था किसी भी स्थिति में फुटपाथ पर कब्जे की इजाजत नहीं देती परंतु जब अधिकारी और राजनेता ही फुटपाथों पर विभिन्न माध्यमों से कब्जे करने लगें तो आम आदमी के सामने असहाय वाली स्थिति बन जाती है। यह सरकार तथा प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सार्वजनिक संपत्तियों का उपयोग केवल जन कल्याण तथा निर्धारित सार्वजनिक कार्यों के लिए ही हो।

नरेंद्र देवांगन


janwani address 115

What’s your Reaction?
+1
0
+1
3
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments