- पितृपक्ष में पूर्वजों को प्रसन्न रखने क लिए करते है पिंडदान
जनवाणी संवाददाता |
नानौता: आज यानि शुक्रवार से पितृपक्ष शुरू हो रहे हैं। अपने पूर्वजो को प्रसन्न रखने के लिए लोग पिंडदान करते है। शास्त्रों के अनुसार जिनके परिजनों का देहांत हो चुका है उन्हें पितृ कहते हैं। जिस तिथी पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध तिथी कहते हैं। मान्यता है कि इन्द्रदेव ने महाभारतकाल में दानवीर कर्ण को पिंडदान के लिए पृथ्वी पर जाने की अनुमति दी थी।
ऐसा कहा जाता है कि जब तक कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं ले लेता है तब तक वह सूक्ष्मलोक में रहता है। इन पितरों का आर्शीवाद सूक्ष्मलोक से परिवारजनों को मिलता रहता है। पितृपक्ष में पितर धरती पर आकर लोगों को आर्शीवाद देते हैं व उनकी समस्याओं को दूर करते हैं।
15 दिनों का होता है पितृपक्ष
पंडित विरेन्द्र शर्मा ने बताया कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण की मृत्यु होने के बाद आत्मा स्वर्ग पंहुच गई तो उन्हें नियमित भोजन की बजाएं खाने के लिए सोना और जेवरात दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इन्द्रदेव से इसका कारण पूछा तो इन्द्र ने कहा कि आपने अपने जीवनभर अधिकांश सोने के आभूषणों का दूसरों को दान दिया, लेकिन कभी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वों अपने पूर्वजों के बारे में जानता ही नहीं है। इसके बाद इन्द्रदेव ने उसे 15 दिन के समय के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजो को भोजन दान कर सके। इस 15 दिन के समय को पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है।