Wednesday, June 7, 2023
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केवट और प्रभु

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जब केवट प्रभु के चरण धो चुका, तो भगवान कहते हैं, भाई! अब तो गंगा पार करा दे। इस पर केवट कहता है, प्रभु! नियम तो आपको पता ही है कि जो पहले आता है, उसे पहले पार उतारा जाता है। इसलिए प्रभु अभी थोड़ा और रुकिये। भगवान कहते हैं, भाई! यहां तो मेरे सिवा और कोई दिखायी नहीं देता।

इस घाट पर तो केवल मैं ही हूं। फिर पहले किसे पार लगाना है? केवट बोला, प्रभु! अभी मेरे पूर्वज बैठे हुए हैं, जिनको पार लगाना है। केवट गंगा जी में उतरकर, प्रभु के चरणामृत से अपने पूर्वजों का तर्पण करता है। फिर भगवान को नाव में बैठाता है, दूसरे किनारे तक ले जाने से पहले-फिर घुमाकर वापस ले आता है। जब बार-बार केवट ऐसा करता है तो प्रभु पूछते हैं, भाई! बार-बार चक्कर क्यों लगवा रहे हो? मुझे चक्कर आने लगे हैं।

केवट कहता है, प्रभु! यही तो मैं भी कह रहा हूं। 84 लाख योनियों के चक्कर लगाते-लगाते मेरी बुद्धि भी चक्कर खाने लगी है, अब और चक्कर मत लगवाएं। गंगा पार पहुंचकर केवट प्रभु को दंडवत प्रणाम करता है। उसे दंडवत करते देख भगवान को संकोच हुआ कि मैंने इसे कुछ दिया नहीं। भगवान उसको सोने की अंगूठी देने लगते हैं तो केवट कहता है, प्रभु! उतराई कैसे ले सकता हूं? आपको तो पता है कि हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं और बिरादरी वाले से बिरादरी वाले मजदूरी नहीं लिया करते।

तुम जग खेवटिया (केवट), मैं नाव खेवटिया (केवट) फिर कैसे लूं उतराई राम? आप भी केवट, मैं भी केवट, अंतर इतना है कि हम नदी में इस पार से उस पार लगाते हैं, आप संसार सागर से पार लगाते हैं। हमने आपको पार लगा दिया,अब जब मेरी बारी आए, तो आप मुझे पार लगा देना प्रभु।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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