Sunday, January 19, 2025
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सरकारी शिक्षा के मंदिर में गुरुओं का अभाव

  • तीन साल से जिले के राजकीय और अशासकीय विद्यालयों को नहीं मिले शिक्षक
  • शिक्षकों की कमी के चलते गिर रहा शिक्षा का स्तर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: किसी जमाने में राजकीय इंटर कॉलेज मेरठ का पूरे प्रदेश में दबदवा हुआ करता था। क्योंकि देशभर के जाने-माने इंजीनियर और जज इसी स्कूल से निकल कर आते थे, लेकिन आज हालात यह है कि जिले के राजकीय और अशासकीय स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन कराने में कतारा रहे है।

कारण साफ है कि एक तो शिक्षकों की कमी और दूसरा शिक्षकों का नवीनतम शिक्षा तकनीकों के प्रति रुचि न लेना। इसकी वजह से प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूल के शिक्षक पिछड़ते जा रहे हैं और वहीं शिक्षकों की लगातार हो रही कमी इसमें आग में घी का काम कर रही है। क्योंकि 2021 के बाद से स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई और छात्र संख्या हर बढ़ जाती है।

प्रदेश स्तर पर बेसिक व माध्यमिक शिक्षा को लेकर हर साल भारी भरकम बजट जारी करने के साथ ही शिक्षा को गुणवत्ता परक पाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन स्कूलों में प्रधानाचार्य व मुख्य विषयों के शिक्षकोें की कमी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण एवं आधारभूत शिक्षा से महरुम रहने के लिए मजबूर कर रही है। हालात यह है कि कुछ स्कूलों में संविदा पर शिक्षकों को रखकर काम चलाया जा रहा है।

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इसका प्रभाव परीक्षा परिणाम पर भी साफ देखने को मिल रहा है। शहर के कुछ चुनिंदा स्कूल जिनका परिणाम सर्वोत्तम हुआ करता था उनमें से आज होनहार नहीं निकल पा रहे है। सरकार शिक्षा के ढंÞाचे को मजबूत करने का दावा कर रही हैं, लेकिन धरातल की सच्चाई सब खोखला साबित कर रही है।

मुख्य विषयों की शिक्षा से वंचित है छात्र

गौर करने वाली बात यह है कि जिले में 410 माध्यमिक विद्यालय हैं। जिसमें 47 राजकीय विद्यालय है। उनमें 340 सहायक अध्यापकों के पद है और 232 ही मौजूद है यानि 108 पद लंबे समय से खाली चल रहे है। वहीं, प्रवक्ता की बात करे तो 183 पद हैं, जिनमें से केवल 60 ही मौजूद है और 123 शिक्षकों की जरुरत है। सूत्रों के अनुसार राजकीय विद्यालयों में सबसे ज्यादा गणित, विज्ञान और कॉमर्स के शिक्षकों का अभाव है। ऐसे में जुगाड़ से पढ़ाई कराई जा रही है। सरकार का भर्ती की ओर कोई ध्यान नहीं है।

अशासकीय विद्यालयों का भी है यहीं हाल

राजकीय के साथ-साथ लंबे समय से अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। पद न भरे जाने की वजह से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षकों के साथ-साथ इन विद्यालयों में प्रधानाचार्य, लिपिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भी पद लंबे समय से नहीं भरे गए है। आंकड़ों पर गौर करे तो इन विद्यालयों में प्रधानाचार्यो के 132 सृजित पद है,

जिसमें केवल 52 प्रधानाचार्य मौजूद है और 80 पद खाली चल रहे है। वहीं प्रवक्ता की बात करे तो 785 पद सृजित है, जिसमें 642 कार्यरत है और 143 पद खाली है। टीजीटी शिक्षक के 2024 पद है, जिसमें से 1434 भरे हुए है और 590 खाली है। ऐसे में कैसे छात्र-छात्राएं होनहार बन सकेंगे यह अपने आप में एक बढ़ा सवाल है जो माध्यमिक शिक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है।

आंकड़ों पर एक नजर

  • अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय

श्रेणी सृजित कार्यरत रिक्त
प्रधानाचार्य 132 52 80
प्रवक्ता 785 642 142
सहायक अध्यापक 2024 1434 590
लिपिक 346 256 90
चतुर्थ श्रेणी 1247 594 653

  • राजकीय विद्यालय

शिक्षक सृजित कार्यरत रिक्त
सहायक अध्यापक 340 232 108
प्रवक्ता 183 60 123

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