Saturday, April 20, 2024
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संवेदना का अभाव

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महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक ऐसे नवयुवक की तलाश थी जो उनकी प्रयोगशाला में उनके साथ मिलकर रसायन तैयार कर सके। उन्होंने विज्ञप्ति निकाली। दो नवयुवक उनसे मिलने आए। दोनों को एक विशेष रसायन बना कर लाने को कहा गया। पहला नवयुवक दो दिन बाद रसायन लेकर आ गया। नागार्जुन ने पूछा, तुम्हें इस काम में कोई कष्ट तो नहीं हुआ? युवक ने कहा, मान्यवर बहुत कष्ट उठाना पड़ा। पिता को उदर कष्ट था, मां ज्वर से पीड़ित थीं।

छोटा भाई पैर पीड़ा से परेशान था कि गांव में आग लग गई, पर मैंने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। एकाग्रता से रसायन बनाने में तल्लीन रहा। नागार्जुन ने ध्यान से सुना, परंतु कुछ उत्तर नही दिया। युवक ने सोचा कि मेरा चुनाव तो निश्चित ही है, क्योंकि अभी तक दूसरा युवक लौटा ही नहीं था। इसी बीच दूसरा युवक उदास लौटा। नागार्जुन ने पूछा, क्यों क्या बात है? रसायन कहां गया? दूसरे नवयुवक ने कहा, मुझे दो दिन का समय चाहिए। मैं रसायन बना ही न सका, क्योंकि जैसे ही बनाने जा रहा था कि एक बूढ़ा रोगी दिखायी पड़ा, जो बीमारी से कराह रहा था।

मैं उसको अपने घर ले गया और सेवा करने लगा। अब वह ठीक हो गया, तो मुझे ध्यान आया कि मैंने रसायन तो बनाया ही नहीं। इसीलिए क्षमा याचना के लिए चला आया। कृप्या दो दिन का समय दीजिए। नागार्जुन मुस्कराए और कहा, कल से तुम काम पर आ जाना। पहला युवक सोच ही नहीं पा रहा था कि उसे क्यों नहीं चुना गया। नागार्जुन ने पहले युवक से कहा, तुम जाओ तुम्हारे लिए मेरे पास स्थान नहीं है, क्योंकि तुम काम तो कर सकते हो, लेकिन यह नहीं जान सकते कि काम के पीछे उद्देश्य क्या है? वस्तुत: रसायन का काम रोग निवारण है, जिसमें रोगी के प्रति संवेदना नहीं उसका रसायन कारगर नहीं हो सकता। पहला युवक निराश लौट गया।
                                                                                              प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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