Tuesday, July 9, 2024
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टेबलेट के नाम पर मास्साब को चढ़ रहा बुखार

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  • टीचरों और बच्चों की लगायी जाएगी आन लाइन हाजिरी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: परिषदीय विद्यालयों में शिक्षण कार्य एवं पठन पाठन को हाईटेक बनाने के नाम पर जनपद मेरठ समेत प्रदेश भर के परिषदीय स्कूलो में टेबलेट बांटे जा रहे हैं। टेबलेट के आने के बाद यूपी में शिक्षा के स्वरूप में कितनी तब्दीली यह तो पता नहीं, लेकिन टीचरों की यदि बात की जाए तो उनका कहना है कि तब्दीली तो जैसी होगी वैसी होगी, लेकिन इतना जरूर है कि ये टेबलेट मुसीबत साथ लेकर आएंगे। इनके आने के बाद शिक्षा में सुधार के नाम पर जो बड़ा आमूल चूक परिवर्तन होगा वह यह कि टीचरों व बच्चों को लेकर शासन स्तर पर बैठे अफसर हर वक्त अपडेट रहेंगे।

स्कूलों में टेबलेट लाने के उद्देश्य के पीछे शासन की मंशा शिक्षा विभाग द्वारा नई पहल की गई है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो आगामी एक नवम्बर से परिषदीय विद्यालयों में टीचरों एवं विद्यालय में अध्ययनरत छात्र छात्राओं की उपस्थिति बायोमैट्रिक से दर्ज होगी। जानकारों का कहना है कि परिषदीय स्कूलों में टेबलेट लाने की थ्योरी के पीछे मकसद क्या है, यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसको लेकर जो तकनीकि खामियां गिनायी जा रही हैं।

उनको भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। मसलन टीचरों व छात्र-छात्राओं की हाजिरी यदि आॅन लाइन दर्ज करने का सिस्टम लागू किया जाता है तो खामियों की शुरुआत तो यही से शुरू हो जाएगी। यदि आॅनलाइन हाजिरी के कांसेप्ट की बात को सही मान लिया जाए तो क्या सुबह जब स्कूल शुरू होता है तब एक साथ टीचरों की हाजिरी तो माना जा सकता है कि आन लाइन लग जाएगी, लेकिन सभी बच्चों की हाजिरी उसी अवधि में आॅन लाइन लगाया जाना क्या व्यवहारिक हो सकेगा।

शिक्षण कार्य में सुधार का दावा

टेबलेट लाने के पीछे सूबे के शिक्ष विभाग के नीति निर्कों का तर्क हैं कि अब शिक्षण कार्य करने में शिक्षक किसी भी प्रकार का बहाना नहीं बता सकेंगे वितरित किए गए टेबलेट के माध्यम से जहां आगामी एक नवम्बर से शिक्षक आनलाइन शिक्षण कार्य करेंगे वहीं परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों एवं छात्र छात्राओं की उपस्थिति भी टेबलेट से बायोमैट्रिक के माध्यम से दर्ज होगी। गौरतलब हो कि शिक्षक लगातार इसका विरोध कर रहे थे उसके बाद भी उन्हें इस व्यवस्था से जोड़ ही दिया गया है।

उनका क्या, जो नहीं जानते टेबलेट चलाना

इसमें कई पुराने शिक्षक ऐसे हैं जो टेबलेट चलाना ही नहीं जानते। उनके प्रशिक्षण की भी अभी कोई व्यवस्था नहीं है। आॅनलाइन प्रक्रिया में शासन ने शिक्षकों की हाजिरी, अवकाश से लेकर वेतन, अवशेष के अलावा सभी अन्य सरकारी काम जो शिक्षकों से लिए जा रहे हैं। वह उनको अपने निजी मोबाइल व इंटरनेट का डाटा खर्च कर करना पड़ रहा था। जिसके तहत यह व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। हालांकि कहा जा रहा है कि एक नवंबर से जिन विद्यालयों में टेबलेट पहुंच गया है। वहां शिक्षक व छात्रों की उपस्थिति बायोमैट्रिक टेबलेट के माध्यम से होगी।

मास्साब हैं परेशान, कैसे करेंगे काम?

सरकार के टेबलेट देने से खुश होने के बजाय टीचर परेशान हैं। करोड़ों रुपये के लाखों टेबलेट के जरिये सरकार परिषदीय स्कूलों के कायाकल्प के साथ ही प्राइमरी स्तर की शिक्षा व्यवस्था को सुधारना चाहती है, लेकिन शिक्षक तो उसे हाथ में लेने से भी बचते दिख रहे हैं। नाम न छापे जाने की शर्त पर एक बड़े शिक्षक नेता ने जानकारी दी कि अभी तक जिन जनपदों में अभी तक शिक्षकों को टेबलेट बांटने के लिए भव्य समारोह आयोजित किए गए हैं

उनमें टेबलेट देने के लिए तो अफसरों ने हाथ बढ़ाया, लेकिन लेने वाले शिक्षक सामने नहीं आए। ऐसे एक-दो नहीं बल्कि बड़ी संख्या में शिक्षकों के टेबलेट न लेने पर पता चला कि वे सब तो छुट्टी पर हैं। अब छुट्टी लेने का बीमारी से अच्छा कौन बहाना हो सकता है, इसलिए ज्यादातर ने यही बता दिया कि उन्हें तेज बुखार है। यह आने वाला वक्त ही बता सकेगा कि कब तक बुखार उन्हें टेबलेट लेने से बचाता है।

ये कहना है बीएसए का

टेबलेट सिस्टम लागू करने के संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी आशा चौधरी ने बताया कि मेरठ में 1066 स्कूल हैं। इनके सापेक्ष यहां 1083 टेबलेट भेजे जाने की जानकारी बीएसए ने दी है। शासन को आदेश है, उसको शब्दत लागू किया जाएगा।

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