एक राजा के संग उसकी पत्नी का भाई भी रहता था। राजा उससे कोई काम नहीं लेता था। राजा से उसकी रानी ने शिकायती लहजे में कहा, ‘आप हमेशा अपने मंत्री को महत्व देते हैं। मेरा भाई आपके मंत्री से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है। आप राजकाज में उसकी सलाह क्यों नहीं लेते?’ राजा ने कहा, ‘यह तुम कहती हो।
मेरी दृष्टि में तुम्हारे भाई का मस्तिष्क अच्छा नहीं है।’ ‘यह सब साबित होगा, जब आप उसे कोई मौका दें। पहले से ही धारणा आपने किस आधार पर बना ली?’ रानी के आग्रह पर राजा ने उसके भाई को एक अवसर देने का आश्वासन दे दिया। एक दिन राजा ने रानी के भाई से कहा, ‘देखो, तुम्हारा भांजा बड़ा हो गया है, भांजी भी बड़ी हो गई है।
उसकी शादी करनी है। उसके लिए कोई अच्छा राजकुमार और भांजे के लिए अच्छी राजकुमारी मिल जाए तो इनकी शादी कर दी जाए।’ रानी का भाई एक महीने तक योग्य वर की तलाश में घूमता रहा। एक दिन वह राजा के समक्ष उपस्थित हुआ।
बोला, ‘आपने कहा था सोलह वर्ष का कोई योग्य वर मिल जाए, तो उसके साथ शादी कर दी जाए। मैंने वर की खोज कर ली है। सोलह वर्ष का तो नहीं मिला, किंतु आठ-आठ वर्ष के दो मिल गए हैं।’ राजा ने रानी से कहा, ‘देखो, अपने भाई की अक्लमंदी।
एक के लिए दो की खोज करके आया है। अब बोलो, क्या कहती हो?’ जिसका मस्तिष्क सुंदर नहीं होता, वह शरीर से कितना ही सुंदर हो, उसे सुंदर नहीं कहा जा सकता। मस्तिष्क सुंदर कब होता है? जब सापेक्षता होती है।