- नई तकनीक: हाईड्रोपोनिक्स अथवा जल संवर्धन कृषि के रूप में नई तकनीक का ईजाद
- ‘जलीय कृषि’ के तहत करिए अनोखा प्रयोग एनसीआरटीसी करेगा मदद
- पर्यावरण के अनुकूल होगी तकनीक, पानी की भी होगी बचत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: खेतों में उगने वाली फसलों को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। ऐसे में यदि सूखा पड़ जाए और उधर, गांवों में बिजली की किल्लत के चलते कई बार फसले बरबाद होने की कगार पर पहुंच जाती हैं। फसलों को इन्ही सब दुश्वारियों से बचाने के लिए अब एक नई तकनीक (जलीय कृषि) के रूप में ईजाद हुई है जिसमें खेतों की बजाए पानी एवं पोषक तत्वों की सहायता से फसलों को उगाया जा सकता है।
इस पूरे काम में एनसीआरटीसी के अधिकारी किसानों की मदद कर रहे हैं। इसके लिए फिलहाल मेरठ एवं गाजियाबाद के किसानों को चुना गया है। एनसीआरटीसी के अधिकारियों के अनुसार इन दोनों जिलों के किसानों को इस पद्धति से अवगत कराने के लिए बाकायदा ‘कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम’ के तहत सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें कृषि विशेषज्ञों की एक टीम मेरठ एवं बागपत के किसानों को प्रशिक्षण दे रही है।
एनसीआरटीसी के अधिकारियों ने बताया कि कृषि विशेषज्ञों की टीम किसानों को हाईड्रोपोनिक्स जैसी आधुनिक कृषि तकनीक और संरक्षित कृषि कौशल से अवगत करा रही है। बताते चलें कि हाईड्रोपोनिक्स या जल संवर्धन कृषि एक ऐसी तकनीक है जिसमें फसलों को खेतों में उगाए जाने के बजाए केवल पानी एवं पोषक तत्वों की सहायता से उगाया जा सकता है और इसे जलीय कृषि भी कहते हैं।
एनसीआरटीसी की कृषि विशेषज्ञों की टीम में शामिल कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक से उगाई गर्इं फसलों को पानी की कम जरूरत होती है तथा इससे पानी की बचत भी होती है। एनसीआरटीसी के अधिकारियों के अनुसार कृषि विशेषज्ञ किसानों को हाईड्रोपोनिक्स और संरक्षित खेती के प्रशिक्षण के माध्यम से उनकी आय में होने वाली वृद्धि के गुण भी सिखा रहे हैं।
1500 किसान होंगे लाभान्वित
एनसीआरटीसी के प्रेस प्रवक्ता पुनीत वत्स के अनुसार प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शृंखला के तहत दिल्ली मेरठ कॉरिडोर के इर्द गिर्द बसे लगभग 52 गांवों के 1500 किसानों के लिए कुल 104 प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि इन शिविरों की शुरूआत हो चुकी है।