Tuesday, October 3, 2023
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भद्रा रहित काल में 31 को मनेगा रक्षाबंधन का पर्व

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  • रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है भाई-बहन के प्रेम और सद्भाव के पर्व के रूप में

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: प्रत्येक वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर्व को भाई-बहन के प्रेम और सद्भाव के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है इसके बदले में भाई बहन को भेंट देता है एवं सदैव उसकी रक्षा करने का वचन भी देता है।

यह पर्व धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह त्योहार परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों को मजबूत करता है। इससे न केवल परिवार के सदस्यों के बीच अधिक मित्रता बढ़ती है, बल्कि इससे समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के के मध्य आपसी समझदारी और भाई-बहन के प्यार को स्थायी बनाने के लिए शुभ दिन है।

शुभ मुहूर्त में बांधे भाई की कलाई में राखी

ज्योतिषाचार्य मनीष स्वामी ने बताया कि इस वर्ष श्रावण पूर्णिमा तिथि 30 और 31 अगस्त को है, साथ ही श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया भी रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कभी भी रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा का साया रहने पर नहीं मनाया जाता है।

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भद्रा काल में बहनों को भाई की कलाई में राखी बांधना वर्जित होता है। भद्रा काल के समय को बहुत ही अशुभ माना गया है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस साल भद्रा रक्षाबंधन के दिन पृथ्वी पर वास करेंगी जिस कारण से भद्रा में राखी बांधना शुभ नहीं रहेगा।

रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त

सावन माह की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10:59 पर प्रारंभ होगी और अगले दिन 31 अगस्त की प्रात: सूर्योदय के बाद 7 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। 30 अगस्त को सुबह 10:59 पर पूर्णिमा तिथि का आरंभ होगा उसके साथ ही भद्रा काल भी प्रारंभ हो जाएगा यह भद्रा काल 30 अगस्त को रात्रि 9:01 तक रहेगा।

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पंचांग के अनुसार 31 अगस्त को पूर्णिमा तिथि उदय कालीन तिथि 31 अगस्त को सूर्योदय के समय तथा उसके उपरांत भी कुछ समय तक पूर्णिमा तिथि विद्यमान रहेगी। इसी कारण इस बार रक्षाबंधन का पर्व 31 अगस्त को ही मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा।

भद्रा काल में बहने कदापि न बांधे भाइयों को रक्षा सूत्र

एक तिथि में दो करण होते है जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते है। माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनर्रावृत्ति होती है जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है और चतुर्थी व एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है ।

रक्षाबंधन पौराणिक कथा

सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण को हाथ पर चोट लग गई थी। उस समय द्रौपदी ने आंचल से एक टुकड़ा निकालकर भगवान श्रीकृष्ण के हाथ पर बांधा था। इससे चोट लगने वाले स्थान से रक्त प्रवाह रुक गया था। यह देख भगवान श्रीकृष्ण अति प्रसन्न हुए थे।

उन्होंने तत्क्षण द्रौपदी को जीवन भर रक्षा का वचन दिया था। कालांतर में जब भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी की मदद की थी। उस समय से रक्षाबंधन का पर्व सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।

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