- आजादी से पहले का बना हुआ है मेरठ में मां मंशा देवी का मंदिर
- नवरात्र में नौ दिन होती है मां की अराधाना, भक्तों की लगती है कतार
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शहर के मंशा देवी मंदिर में विराजमान मां मंशा देवी अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करती हैं। यह मंदिर आजादी से पहले का है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां से मां किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटाने देती हैं। मंदिर की खासियत है कि यहां आंखें बंद करके माता के आगे विनती नहीं होती, बल्कि लोग आंखें खोलकर माता के दर्शन करते हैं और उनसे मनोकामना मांगते हैं।
भगवान के आगे शीश झुकाकर, आंखें बंद कर जो भी मांगों वह मनोकामना पूरी होती हैं, लेकिन शहर में जागृति विहार स्थित मां मंशा देवी के मंदिर में आंखें खोलकर श्रद्धालु मां से मन्नत मांगते हैं। शहर के प्राचीन भगवती मंदिरों में से एक मंशा देवी मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। गिरी परिवार की पिछली चार पीढ़ियां मंदिर में मातारानी की सेवा कर रही हैं।
मंदिर के पुजारी भगवत गिरी के अनुसार यह 100 साल पुराना मंदिर है, जहां हर भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने की अरदास लेकर आता है। पुजारी भगवत गिरी कहते हैं। भगवान से जो मांगना है वह आंखें बंद करके नहीं, बल्कि आंखें खोलकर मांगना चाहिए। माता से वातार्लाप करते हुए भक्त यहां अपनी भावना व्यक्त करते हैं। हर देवी-देवता को उसके खास दिन पूजन करने के लिए अलग व्रत व विधि-विधान से पूजा होती है।
मंदिर समिति के मुताबिक मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति सिद्ध है। प्रारंभ दौर में लोग यहां आने से भी डरते थे, कि यहां भूतप्रेत का निवास है। लेकिन माता की शक्ति से यहां कोई डर नहीं। मंदिर के पुजारी के अनुसार उनके दादा स्व. बाबा रामगिरि ने इस मंदिर की देखरेख का कार्य शुरू किया था।
साढ़े चार बीघा जमीन में यह मंदिर बना है। मंदिर के अंदर छोटे द्वार भी हैं। जिनमें झुककर प्रवेश करना पड़ता है। मुख्य मंदिर के अलावा 25 अन्य मंदिर बने हैं, जो सभी मंदिर माढ़ी की तरह बने हैं। मुख्य मंदिर मां मंशा देवी का है। मंदिर परिसर में ही बाबा राम गिरि की समाधि बनी है। मंदिर की देखरेख का कार्य अब मां मंशा देवी मंदिर ट्रस्ट कर रहा है। इस ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2010 में की गई। ट्रस्ट की स्थापना होने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
पहले जंगल-मरघट, अब मंदिर
मां मंशा देवी के मंदिर को मरघट वाली माता का मंदिर भी कहते हैं। पुराने समय में यहां जंगल था। पुजारी भगवत गिरी ने बताया कि यहां पहले जंगल हुआ करता था। जंगल के पास ही औरंगशाहपुर डिग्गी की शमशान भूमि थी। जिसके बीच में मूर्ति हुआ करती थी। इसलिए इसे मरघट वाली मां का मंदिर भी कहते हैं।