Friday, July 5, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादमुक्ति मार्ग

मुक्ति मार्ग

- Advertisement -

Amritvani


भक्तों के कष्टों को हरने वाले भगवान श्री विष्णु , जिन्हें उनके भक्त श्री हरी कह कर बुलाते हैं, एक बार पक्षीराज गरुड़ की मृत्यु के समय की स्थिति की जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे थे। श्रीहरि ने कहा, जो लोग सत्य का पालन करते हैं, झूठ नहीं बोलते, काम, मोह, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष के कारण स्वधर्म का परित्याग नहीं करते, वे सभी निश्चय ही सुखपूर्वक शरीर का त्याग करते हैं। ऐसे दृढ़ संकल्पवान सदाचारी पुरुषों की आदर्श मृत्यु होती है।

जो असत्यवादी, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघाती और धर्म निंदक होते हैं, वे मूर्छारूपी दु:खद मृत्यु को प्राप्त होते हैं। भगवान श्रीहरि कर्म की व्याख्या करते हुए बताते हैं, जो कर्म जीव को आत्मा को मोह और लोभ के बंधन में नहीं ले जाता, वही सत्कर्म है। जो विद्या प्राणी को मुक्ति प्रदान करने में समर्थ है, वही विद्या है।

श्रीहरि गरुड़ को उपदेश देते हुए बताते हैं, सत्संग और विवेक-ये प्राणी के सार्थक दो नेत्र हैं। सत्संग और विवेक के बिना मानव अंधकार में भटकता रहता है। जो व्यक्ति ज्ञान का झूठा अंहकार करके बड़ी बड़ी जटाएं रखकर, मृगचर्म पहनकर अपने को साधु समझता है, वो नासमझी में यह दावा करता है कि मेरा ब्रह्म से परिचय है, ऐसे ढोंगी व्यक्ति का कभी संग नहीं करना चाहिए। ऐसे ढोंगी की न तो स्वयं की आत्मा तरक्की करती है और न ही संग रहने वालों की।

अंत समय के कल्याण का साधन बताते हुए भगवान कहते हैं, अंत समय अ जाने पर भयरहित होकर, संयम और धैर्य रूपी शस्त्र से देह आदि की आसक्ति को काट देने वाला व्यक्ति जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। अपने अंतिम समय में सांसारिक चीजों से मोह रखने वाला बार-बार यहां जन्म लेता है और दुखों को भोगता है।
                                                                                            प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


janwani address 6

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments