नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। सनातन धर्म में अनेक त्योहार हैं सभी का अपना महत्व होता है। ऐसे ही हर माह में आने वाले प्रदोष व्रत का भी अपना अलग महत्व होता है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि भादों माह का प्रदोष व्रत सबसे खास होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह को भगवान गणेश के जन्म से जोड़ा जाता है। इस माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। ऐसे में महादेव की पूजा करना और भी लाभकारी होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस साल भादों माह के शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत 15 सितंबर 2024 को रखा जा रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, सुकर्मा योग, अतिगण्ड योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में शिव-परिवार की पूजा करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। तो आइए जानते है प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में…
प्रदोष व्रत तिथि
इस वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 15 सितंबर को शाम 06 बजकर 12 मिनट पर आरंभ हो रही है। इसका समापन 16 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 10 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। ऐसे में ये उपवास 15 सितंबर 2024 को रखा जा रहा है। इस दिन रविवार होने के कारण ये रवि प्रदोष व्रत होगा।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत पर पूजा का समय संध्याकाल 6 बजकर 26 मिनट से लेकर रात के 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद विधि अनुसार महादेव की पूजा करें, और व्रत का संकल्प लें। फिर प्रदोष काल में सभी सामग्रियों के साथ पूजा स्थल पर अपना स्थान लें। सबसे पहले चौकी लगाएं। उसके बाद उसपर साफ वस्त्र बिछाएं। अब शिव जी की मूर्ति को उसपर स्थापित करें। इस दौरान ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। फिर आप देवी पार्वती की मूर्ति को स्थापित करें।
- फिर शिवलिंग पर शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद महादेव को बेलपत्र और भांग चढ़ाएं। वहीं माता पार्वती को फूल अर्पित करना चाहिए। इस दौरान भोलेनाथ को कनेर का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है।
- इसके बाद दीया जलाएं और आरती करना शुरू करे। इस दौरान शिव चालीसा का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से मनचाहें परिणामों की प्राप्ति होती हैं।
- अंत में शिव परिवार को मिठाई का भोग लगाएं, और सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।