गेंदे का उपयोग यह सभी मूल्यसंवर्धन उत्पादों के अलावा अंतरवर्तीय फसल के रूप में भी सूत्रकृमियों की रोकथाम हेतु की जाती है, इसकी जड़ों सें अल्फा-टेरथिएनील नामक एक पदार्थ का निर्माण होता है जो मूल ग्रंथ सूत्रकृमियों को अपनी और आकर्षित करता है इसी कारण सें यह सब्जियों वाली फसलों के साथ-साथ, पॉलीहाऊस में भी सूत्रकृमियों की रोकथाम के लिये उगाया जा रहा है।
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वैसे तो गेंदे का पौधा बड़ा सहनशील होता है, जिस पर कीट एवं बीमारियों का आक्रमण काफी कम ही होता है परन्तु उचित समय पर इनकी सही तरीके से पहचान करके नियंत्रित नहीं किया जाये तो कई बार नुकसान बहुत ज्यादा हो जाता है।
गेंदे में लगने वाली कुछ प्रमुख कीट एवं बीमारियां निम्नलिखित है :-
आर्द्र गलन
यह रोग ‘राइजोक्टोनिया सोलानी’ नामक फफंूद से फैलता है एवं इसकी समस्या ज्यादातर पौध तैयार करते समय नर्सरी घर ही देखने में आती है। रोगग्रसित पौधे का तना गलने लगता है एवं जब पौध को उखाडकर देखते हैं तो उसका जड़ तंत्र भी सड़ा हुआ दिखाई देता है। प्रभावित पौधे जमीन की सतह सें सडकर नीचे गिरने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व 3.0 ग्राम कैप्टान या 3.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। खड़ी पौध में समस्या आने पर उपरोक्त फफूंदनाशी दवा का 0.2 प्रतिशत के घोल से डेचिंग करें।
पुष्प कली सड़न रोग
यह रोग अल्टरनेरिया डाइएंथी द्वारा फैलता है, इससे नई कलियां काफी प्रभावित होती हंै। फूलों की पंखुडियों पर भी काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में पूरे फूल पर फैल जाते है। इसकी रोकथाम के लिए रिडोमिल या डाईथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़कें।
पत्ती धब्बा
अल्टरनेरिया टैजेटिका कवक के प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियों के ऊपर भूरे रंग के गोल धब्बे दिखायी देने लगते हंै जो धीरे-धीरे पत्तियों को खराब कर देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।
पाऊडरी मिल्डयू
ओडियम स्पीसीज के कारण यह रोग फैलता है। इस फफूंद से प्रभावित पौधों कि पत्तियों के उपरी तरफ पर सफेद चूर्ण जैसे चकते दिखाई देते हैं जिसकी वजह से पुष्प उत्पादन में काफी कमी आ जाती। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (सल्फैक्स) एक लीटर या कैराथेन 48 ई.सी. 150 मि.ली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। यह छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर पुन: दोहरायें।
कली छेदक
कीट की लट (सुन्डी) फूल की कलियों में छेद कर देती है। नियंत्रण के लिए क्विनालफास या प्रोफेनोफास का 1.5-2 मि.ली. एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।
मोयला
यह कीट हरे रंग का होता है पत्तियों की निचली सतह से रस चूसकर काफी हानि पहँुचाते हैं। यह विषाणु रोग भी फैलाने में सहायक होता है। रोकथाम के लिए 300 मि.ली. डाईमिथिएट या मेटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें यदि आवश्यकता हो तो अगला छिडकाव 10 दिन के अंतराल पर पुन: दोहरायें।
लाल मकड़ी
यह आठ पैरों वाला कीट बहुत ही छोटा लगभग बिन्दु के समान जो लाल रंग का होता है तथा पत्ती के निचले भाग पर रहता है, गर्म मौसम में आक्रमण ज्यादा होता है। माइट गेंदे की पत्तियों का रस चूस लेते हंै, जिससे पत्तियां हरे रंग से भूरे रंग में परिवर्तित होने लगती है तथा पौधे की बढ़वार बिल्कुल रूक जाती है इसकी रोकथाम के लिए मेटासिस्टॉक्स का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें।