Thursday, April 25, 2024
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राष्ट्रीय गणित दिसव यानी गणितज्ञ रामानुजन का जन्म दिन

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रामानुजन के बनाए हुए ढेरों ऐसे थियोरम हैं, जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं हैं। उनका एक पुराना रजिस्टर 1976 में ट्रिनीटी कॉलेज की लाइब्रेरी से मिला था, जिसमें थियोरम और कई फॉर्मूले थे। इस रजिस्टर के थियोरम की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई है। इस रजिस्टर को रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना जाता है।

 

भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की उपलब्धियों को मान्यता देने के लिए हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है, जिसका जन्म 1887 में इसी तारीख को हुआ था. साल 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय गणित दिवस की घोषणा की थी।

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में एक तमिल ब्राह्मण अयंगर परिवार में हुआ था। रामानुजन 1903 में कुंभकोणम के सरकारी कॉलेज में शामिल हुए। कॉलेज में, गैर-गणित विषयों के लिए उनकी लापरवाही के कारण वह परीक्षा में असफल रहे।

साल 1912 में, उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया, जहां उनके गणितीय ज्ञान को एक सहकर्मी ने मान्यता दी जो गणितज्ञ भी थे। उक्त सहकर्मी ने रामानुजन को प्रोफेसर जीएच हार्डी, ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिए भेजा।

प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ महीने पहले रामानुजन ट्रिनिटी कॉलेज में शामिल हुए।  साल 1916 में, उन्होंने बैचलर आॅफ साइंस (बीएससी) की डिग्री प्राप्त की। वे 1917 में लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी के लिए चुने गए।

अगले साल, उन्हें एलीप्टिक फंक्शंस और संख्याओं के सिद्धांत पर अपने शोध के लिए रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया। उसी वर्ष, अक्टूबर में, वह ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय बन गए।

1919 में रामानुजन भारत लौट आए और एक साल बाद उन्होंने 32 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।  2015 में, श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी पर आधारित फिल्म ळँी टंल्ल हँङ्म ङल्ली६ कल्ला्रल्ल्र३८  रिलीज हुई थी। यह भारत में गणितज्ञ के जीवन का वर्णन करता है, जब वह ्रपहले विश्व युद्ध के दौरान कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शामिल हो गया और प्रसिद्ध गणितीय सिद्धांतों को स्थापित करने की दिशा में उनकी यात्रा हुई।

शुरू में रामानुजन सामान्य बच्चों की तरह ही थे। यहां तक कि तीन साल की उम्र तक उन्होंने बोलना भी शुरू नहीं कयिा था। स्कूल में एडमिशन हुआ तो पढ़ाने का घिसा-पिटा अंदाज उन्हें बिलकुल भी नहीं भाया। हां, ये और बात है कि 10 साल की उम्र में उन्होंने प्राइमरी एग्जाम में पूरे जिले में टॉप किया। 15 साल की उम्र में वो ‘ए सिनॉपसिस आॅफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइट मैथमेटिक्स’ नाम की बेहद पुरानी किताब को पूरी तरह घोट कर पी गए थे। इस किताब में हजारों थियोरम थे। यह उनकी प्रतिभा का ही फल था कि उन्हें उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशपि भी मिली।

रामानुजन का मन सिर्फ मैथ्स में लगता था। उन्होंने दूसरे सब्जेक्ट्स की ओर ध्यान ही नहीं दिया। नतीजतन उन्हें पहले गवर्मेंट कॉलेज और बाद में यूनिवर्सिटी आॅफ मद्रास की स्कॉलरशपि गंवानी पड़ी। इन सबके बावजूद मैथ्स के प्रति उनका लगाव जरा भी कम नहीं हुआ। 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में उनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ जो बनूर्ली नंबरों पर आधारित था। 1912 में रामानुजन मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी जरूर करने लगे थे लेकिन तब तक उनकी पहचान एक मेधावी गणितज्ञ के रूप में होने लगी थी।

इसी दौरान रामानुजन उस समय के विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश गणतिज्ञ जीएच हार्डी के काम के बारे में जानने लगे थे। 1913 में रामानुजन ने अपना कुछ काम पत्र के जरिए हार्डी के पास भेजा। शुरुआत में हार्डी ने उनके खतों को मजाक के तौर पर लिया, लेकिन जल्द ही उन्होंने उनकी प्रतिभा भांप ली। फिर क्या था हार्डी ने रामानुजन को पहले मद्रास यूनिवर्सिटी में और फिर कैंब्रिज में स्कॉलरशिप दिलाने में मदद की। हार्डी ने रामानुजन को अपने पास कैंब्रिज बुला लिया। हार्डी के सानिध्य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्लिश किए। 1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर आॅफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में वो रॉयल सोसाइटी आॅफ लंदन के सदस्य बन गए।

भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और ऐसे समय में किसी भारतीय को रॉयल सोसाइटी की सदस्यता मिलना बहुत बड़ी बात थी। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद वे ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।

रामानुजन कड़ी मेहनत कर रहे थे। ब्रिटेन का ठंड और नमी वाला मौसम उन्हें सूट नहीं कर रहा था। 1917 में उन्हें टीबी भी हो गई। स्वास्थ्य में थोड़े-बहुत सुधार के बाद 1919 में उनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई और वो भारत लौट आए। 26 अप्रैल 1920 को 32 साल की बेहद कम उम्र में उनका देहांत हो गया। बीमारी की हालत में भी उन्होंने मैथ्स से अपना नाता नहीं तोड़ा। बेड पर लेटे-लेटे वो थियोरम लिखते रहते थे। पूछने पर कहते थे कि थियोरम सपने में आए थे।

रामानुजन के बनाए हुए ढेरों ऐसे थियोरम हैं, जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं हैं। उनका एक पुराना रजिस्टर 1976 में ट्रिनीटी कॉलेज की लाइब्रेरी से मिला था, जिसमें थियोरम और कई फॉर्मूले थे। इस रजिस्टर के थियोरम की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई है। इस रजिस्टर को रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना जाता है।

रामानुजन की बायोग्राफी ‘द मैन हू न्यू इंफिनिटी’ 1991 में पब्लिश हुई थी। इसी नाम से रामानुजन पर एक फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म में एक्टर देव पटेल ने रामानुजन का किरदार निभाया है। रामानुजन आज भी न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी गणतिज्ञों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

-फीचर डेस्क 


फीचर डेस्क Dainik Janwani

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