Tuesday, April 16, 2024
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कोरोना से गांवों को बचाना चुनौतीपूर्ण

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82कोरोना ने अब देशभर के गांवो में भी बहुत तेजी से दस्तक दे दी है। भारत में 6,49,481 गांव हैं और देश की तीन तिहाई से अधिक जनसंख्या आज भी गांवों में रहती है व अब तक माना जा रहा था कि गांव के लोगों सुरक्षित हैं, लेकिन पिछले लगभग 15 दिनों से गांवों के मौत के आंकडों ने चौंका दिया। गांववासियों की इम्यूनिटी को शहरी लोगों की अपेक्षा बहुत मजबूत मानी जातीं है, लेकिन बीते कुछ ही दिनों के आंकड़ों से कोरोना पीड़ितों की संख्या शहरों के बराबर पहुंचने लगी है। इसके अलावा परेशानी यह भी बढ़ रही है कि गांववासी झोलाछाप डॉक्टरों की चपेट में आ रहे हैं। ये लोग करें भी तो क्या करें, चूंकि आस-पास स्वास्थ्य सेवाओं उतनी अच्छी नही हैं कि वहां कोरोना का इलाज करवा सकें। एक तो गरीबी व दूसरा जानकारी का अभाव इन लोगों पर भारी पड़ रहा है।

वैसे तो ऐसी घटनाओं के तमाम उदाहरण हैं, लेकिन राजस्थान से हृदयविदारक खबर देखने को मिली जहां डोर टू डोर सर्वे में राजस्थान के गांवों में रहने वाले 7 लाख से अधिक लोगों में कोरोना के लक्षण मिले। ग्रेटर नोएडा के खुर्दपुर गुज्जर गांव में भी लोग अस्पतालों में भीड़ की वजह से नही जा रहे और बीते बीस दिन में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा कानपुर में घाटमपुर के आसपास गांव संक्रमण के ऐसी दस्तक दी कि पिछले 25 दिन में गांव में 70 से अधिक ग्रामीणों को कोरोना निगल चुका। हर एक घर में बुखार और खांसी के मरीज हैं। कई परिवार ऐसे हैं कि घर के सभी सदस्य बुखार से पीड़ित हैं। सभी मरीजों में कोरोना के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। कोरोना की बढ़ती रफ्तार से गांवों में दहशत का माहौल है। यदि कोरोना वायरस गांव में इस ही तेजी से बढ़ता रहा तो यकीनन आधा देश साफ हो जाएगा चूंकि देश की तीन तिहाई से अधिक जनसंख्या गांवों में ही हैं। यहां ज्यादा बुरा हाल होने की आशंका इसलिए भी है कि गावों में अच्छा उपचार मिलना बहुत मुश्किल होता है। पहले से ही लोग शहरों का हाल देखकर डरे पडेÞ हैं।

सरकारी हो या प्राइवेट, कहीं भी बेड उपल्ब्ध नही हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार को बडे एक्शन आॅफ प्लान की जरूरत है। भारत में अब तक कोरोना के लगभग दो करोड़ चौंतीस लाख केस आ चुके और लगभग साढेÞ तीन लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह वो आंकड़ा है, जो सरकार द्वारा दर्शाया गया है, ऐसे आंकड़ों का तो जिक्र नहीं है, जो बिना उपचार के मारे जा चुके। बीते दिनों नदी में बहती हुर्इं करीब दौ सौ लाशें मिलीं, जिस लेकर देश में हडकंप मच हुआ है। हर कोई उस पर अपनी ओर से कयास लगा रहा है, लेकिन हकीकत यह भी है कि शमशान घाटों व कब्रिस्तानों में लाशों को जलाने व दफनाने के लिए जगह नहीं मिल रही। अधिकतर श्मशान घाट नदियों के पास ही होते हैं। कुछ लोग बॉडी को वहीं बहा देते हैं। देखा गया कि कुछ लोगों के पास अंतिम संस्कार करने के पैसे नही थे तो उन्होनें ऐसे कदम उठाया होगा।

यदि महानगरों के आंकड़ों की बात करें तो दिल्ली में अब तक साढेÞ तेरह लाख केस आ चुके हैं, जिसमें बीस हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके। महाराष्ट्र में इक्यावन लाख केसों पर करीब अठहत्तर लाख लोग, कर्नाटक में बीस लाख केसों पर बीस हजार लोग, उत्तर प्रदेश में सोलह लाख पर सोलह हजार लोग व केरल में बीस लाख पर 6 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। इन आंकड़ों को बताने का तात्पर्य यह है कि इन जगहों पर बेहतर मेडिकल सुविधा है और तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों का मरना जारी है और गावों को लेकर यदि गणित लगाया जाए तो स्थिति विस्फोटक होने की पूरी आशंका है।

स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से देश के तमाम गांव व कस्बों में तंत्र को अपडेट व अपग्रेड रखने की जरूरत है। पहले 45 वर्ष से ऊपर व 1 मई से 18 वर्ष से अधिक के आयु के लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए सरकार ने अनुमित दे दी है, लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि गांवों के परिवेश में यह आंकड़ा शून्य के बराबर है। चूंकि एक तो उन लोगों को जागरूक करने वाला कोई नहीं है। वहीं दूसरी ओर वह स्वयं भी रुचि नहीं ले रहे। गांवों में सैनिटाइजेशन काम भी नही हो रहा है। अभी भी लोग खांसी, बुखार व जुकाम को साधारण बुखार मानकर किसी भी क्षेत्रिय डॉक्टर व कैमिस्ट से दवा लेकर खुद ही काम चला रहे हैं, जिसके बाद तबीयत बिगड़ने पर लोग मर रहे हैं।



इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि गांव वालों की आंतरिक क्षमता शहरी लोगों की अपेक्षा बहुत मजबूत होती है, लेकिन कोरोना नाम के इस वायरस ने सबको हिलाकर रख दिया। गांववासी एकाएक छोटी-मोटी बीमारी में दवा का प्रयोग नहीं करते, चूंकि वह शारीरिक रूप से इतने फिट होते हैं कि बीमारी उनका कुछ खास बिगाड़ नही पाती। देसी खान-पान व खेतों में काम करने से उनका शरीर सेहतमंद रहता है। लेकिन इस खतरनाक वायरस से ये लोग भी चपेट में आ रहे हैं।

इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि जैसी ही कोरोना के लक्षण दिखें, उनको हल्के में न लेते हुए तुरंत इलाज करना शुरू कर दें। इस समय बुखार व खांसी होने पर भी तुरंत कोरोना की जांच करवा लें। इसके अलावा अपनी मर्जी से कुछ भी दवा न लें व डिग्री होल्डर डॉक्टर व अस्पताल से परामर्श के बाद दवा का प्रयोग करें। सरकारी तंत्र को भी सक्रिय होने की जरूरत है। सरकारी स्कूलों, निगम व अन्य सरकारी दफ्तरों को अस्थाई अस्पताल में तब्दील करके वैक्सीन का कार्य तेजी से हो। इसके अलावा ऐसी स्थिति में गांववासियों को जागरूक व उनके लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है, अन्यथा स्थिति भयावह हो सकती है।


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