डॉ श्रीगोपाल नारसन, एडवोकेट
सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में जिस हिमनद के फटने से इतनी बड़ी तबाही आई है और सवा दो सौ लोगों की जान चली गई। जिनमें कुछ के शव मिल चुके और कुछ लापता है। इस हादसे की चेतावनी उत्तराखंड के ही वैज्ञानिकों ने आठ महीने पहले दे दी थी। वैज्ञानिकों ने बताया था कि उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के कई इलाकों में ऐसे ग्लेशियर हैं, जो कभी भी फट सकते हैं। लेकिन, इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया था।
वैज्ञानिकों ने बताया था कि श्योक नदी के प्रवाह को एक हिमनद ने रोक दिया है। इसकी वजह से अब वहां एक बड़ी झील बन गई है। झील में ज्यादा पानी जमा हुआ तो उसके फटने की आशंका है। यह चेतावनी देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दी थी। वैज्ञानिकों ने सचेत किया था कि जम्मू-कश्मीर काराकोरम रेंज समेत पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदी का प्रवाह रोकने पर कई झीलें बनी हैं, यह बेहद खतरनाक स्थिति है जो इस आपदा के रूप में हमारे सामने आई है।
पृथ्वी पर 99 प्रतिशत हिमानियां ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं। जिन पर वर्षभर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है। ये हिमानियां समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी का सबसे बड़ा भण्डार है और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं।
हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं। जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था। इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहां आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं।
हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं। हिमालय में हजारों छोटे-बड़े हिमनद है जो लगभग 3350 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं। इन हिमनदों में सबसे पहले गंगोत्री हिमनद है, जो 26 किमी लम्बा तथा 4 किमी चौड़ा है, यह उत्तरकाशी के उत्तर में स्थित है। इसके बाद पिण्डारी गढ़वाल-कुमाऊँ सीमा के उत्तरी भाग पर स्थित है। जबकि सियाचिन का हिमनद काराकोरम श्रेणी में है और 72 किलोमीटर लम्बा है। इसी तरह सासाइनी, बियाफो हिस्पर, बातुरा व खुर्दोपिन काराकोरम श्रेणी के हिमनद है। रूपल, सोनापानी व रिमो कश्मीर में है जिसकी लम्बाई 40 किलोमीटर तक है।
वही केदारनाथ व कोसा-उत्तराखंड में है। जेमू हिमनद भारत के सिक्किम व नेपाल में 26 किलोमीटर तक फैला है। कंचनजंघा भी नेपाल में है। जिसकी लम्बाई 16 किलोमीटर तक है। हिम यानि बर्फ के एकत्र होने से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है। वे सघन हिम के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है, जिसे हिमनद यानि ग्लेशियर कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल में परिवर्तित हो जाता है।
उत्तराखंड से निकलने वाली प्रमुख नदियों में भागीरथी, अलकनंदा, विष्णुगंगा, भ्युंदर, पिंडर, धौलीगंगा, अमृत गंगा, दूधगंगा, मंदाकिनी, बिंदाल, यमुना, टोंस, सोंग, काली, गोला, रामगंगा, कोसी, जाह्नवी, नंदाकिनी के नाम हैं। रविवार की घटना धौलीगंगा नदीं में हुई है। धौलीगंगा नदी अलकनंदा की सहायक नदी है। गढ़वाल और तिब्बत के बीच यह नदी नीति दर्रे से निकलती है। इसमें कई छोटी नदियां मिलती हैं जैसे कि पर्ला, कामत, जैंती, अमृतगंगा और गिर्थी नदियां, धौलीगंगा नदी, पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी हैं।
आपके मन में सवाल होंगे कि ग्लेशियर टूटने की घटना क्या है, इससे नदी का जलस्तर कैसे बढ़ता है और ग्लेशियर टूटते क्यों हैं? बर्फ की नदी, जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है। हिमनद में बहाव नहीं होता। सामान्यतः हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है। क्योंकि, बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समाता है। इससे नदी का जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है। चूंकि पहाड़ी क्षेत्र होता है इसलिए पानी का बहाव भी काफी तेज होता है। ऐसी स्थिति तबाही लाती है। नदी अपने तेज बहाव के साथ रास्ते में पड़ने वाली हर चीज को तबाह करते हुए आगे बढ़ती है।
हिमनद दो प्रकार के होते हैं, एक घाटी रूप में दूसरा पहाड़ रूप में उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई घटना का संबंध पहाड़ी हिमनद से है, जो ऊंचे पर्वतों के पास बनते हैं और घाटियों की ओर बहते हैं। पहाड़ी हिमनद ही सबसे ज्यादा घातक माने जाते हैं। हिमनद वहां बनते हैं जहां काफी ठंड होती है। बर्फ पूरे साल जमा होती रहती है। मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत होता है। ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमीं बर्फ दबने लगती है।
उसका घनत्व काफी बढ़ जाता है और वायुदाब के कारण वह फट जाता है। हिमनद पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा माध्यम हैं। इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है। जो नदियां पूरे साल पानी से लबालब रहती हैं वे ग्लेशियर से ही निकलती हैं।
गंगा नदी का प्रमुख स्रोत गंगोत्री हिमनद ही है। यमुना नदी का स्रोत यमुनोत्री भी हिमनद ही है। हिमनद का टूटना या पिघलना ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जो बड़ी आबादी पर असर डालती हैं। कई बार पहाड़ों पर घूमने गए सैलानी, माउंटेनियर ग्लेशियर की चोटियों पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये बर्फीली चोटियां काफी खतरनाक होती हैं। कभी भी गिर सकती हैं।
हिमनद में कई बार बड़ी-बड़ी दरारें आ जाती हैं, जो ऊपर से बर्फ की पतली परत से ढकी होती हैं। ये जमी हुई मजबूत बर्फ की चट्टान की तरह ही दिखती हैं। ऐसी चट्टान के पास जाने पर वजन पड़ते ही हिमनद में मौजूद बर्फ की पतली परत टूट जाती है और व्यक्ति सीधे बर्फ की विशालकाय दरार में जा गिरता है। इसी तरह यदि भूकंप या कंपन होता है तब भी चोटियों पर जमी बर्फ खिसककर नीचे आने लगती है, जिसे एवलॉन्च कहते हैं। कई बार तेज आवाज, विस्फोट के कारण भी एवलॉन्च आते हैं। जो दुर्घटना का कारण बनते है।
प्रकृति ने ली अंगड़ाई है
पहाड़ में फिर तबाही है
हिमनद फिर से पिघल गए
टुकड़ों टुकड़ों में बिखर गए
सैकड़ों जानें चली गईं
प्रकृति के हाथों छली गई
एक दिन पहले से हलचल थी
हिमनद फटने की तड़पन थी
बस, हम ही नहीं समझ पाए
अपनों की जान नहीं बचा पाए
इस तबाही से सबक ले लो
दिवंगतों को श्रद्धांजलि दे दो।
डॉ श्रीगोपाल नारसन, एडवोकेट
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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