Wednesday, July 3, 2024
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पाप और दुविधा

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Amritvani 4


अथ केन प्रयुक्तोरयं पापं चरति पुरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।। 3/36
अर्जुन बोले, हे कृष्ण! तो फिर इंसान खुद न चाहते हुए भी किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है, जैसे उससे बलपूर्वक वह कराया जा रहा हो। दुनिया में सभी अच्छे काम करना चाहते हैं। लेकिन अच्छे कर्म की चाहत रखते हुए भी इंसान अक्सर बुरे काम भी कर बैठता है। ऐसा करने की उसकी कोई पहले से सोच नहीं थी, लेकिन अचानक मन को न जाने क्या हो जाता है कि इंसान न चाहते हुए भी पाप कर्म कर बैठता है। जब वह पाप से जुड़े काम करता है तो देखने से ऐसा लगता है, जैसे यह सब उससे कोई जबरदस्ती करवा रहा है। पाप कर्म करने के बाद उसको पछतावा होता है। मन में ऐसे ख्याल आते हैं कि मैंने ऐसा क्यों कर दिया, न जाने उस वक्त मुझे क्या हो गया था? वह बार-बार पछताता है। प्रायश्चित करने की बातें करने लगता है। वैसे भी पाप करने में कुछ क्षण ही लगते हैं, लेकिन उसकी सजा या पछतावा बड़ा लंबा होता है। कई बार तो पाप कर्म करने का आवेग इतना ताकतवर होता है कि उसकी सजा की जानकारी होते हुए भी इंसान पाप कर बैठता है। यह परेशानी ज्यादातर सबके साथ होती है, बस फर्क इतना है कि कोई ज्यादा पाप करता है, कोई कम। कोई बार-बार करता है, कोई कभी-कभी। इसी दुविधा का उत्तर जानने के लिए अर्जुन, श्रीकृष्ण से पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है? लेकिन इसका जवाब आज तक कोई नहीं दे पाया है। बस हमें तो यह सोचना है कि पाप की ओर जाते समय एक बार नहीं हजार बार सोचना चाहिए।


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