Friday, April 19, 2024
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सबसे छोटा देश वेटिकन सिटी

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डा. विनोद बब्बर


वेटिकन स्थित इस रोमन कैथोलिक चर्च से दुनिया भर के कैथोलिक चर्चों को संचालित किया जाता हैं। चर्च के नियमानुसार प्रत्येक बिशप का कार्यकाल उनकी 75 वर्ष की उम्र तक ही होता है, इसके बाद उन्हें रिटायर होना पड़ता है। नए बिशप के चयन में इलेक्शन की प्रक्रिया नहीं है। प्रत्येक धर्मप्रान्त के बिशप का चयन उस क्षेत्र विशेष के सभी बिशप मिलकर सवार्नुमति से करते हैं। उसके बाद सहमति के बाद जब पोप उस नाम पर अपनी मुहर लगा दें तभी नए बिशप का नाम घोषित किया जाता है।

इटली की राजधानी रोम में बसा वेटिकन सिटी दुनिया का सबसे छोटा देश माना जाता है। ईसाइयों के सबसे बड़े धार्मिक गुरु पोप का मुख्यालय होने के कारण इसे सम्मान स्वरूप अलग देश का दर्जा दिया गया है। इसका क्षेत्रफल मात्र 44 हेक्टेयर एवं जनसंख्या एक हजार से भी कम है। आश्चर्य की बात यह है कि कैथोलिकों के तीर्थ स्थल वेटिकन सिटी की सुरक्षा इटली की सेना नहीं, स्विस सैनिक करते हैं। वास्तव में स्विस सैनिकों को दुनिया में सबसे ज्यादा लॉयल माना जाता है।

1929 से वेटिकन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता मिली। इसके अपने अलग कानून, अपनी राजभाषा, यहां तक कि अपनी मुद्रा, अपना डाकघर और अपना रेडियो स्टेशन भी है। वे अपने खुद के पासपोर्ट भी जारी करते हैं जो पोप, पादरियों, कार्डिनल्स और स्विस गार्ड के सदस्यों को दिए जाते हैं। वेटिकन सिटी की मुख्य पहचान इसके बीचों-बीच स्थित सैन पियेत्रो नामक भव्य हाल है जहां लाखों की संख्या में ईसाई समुदाय के लोग एकत्र होकर अपने धर्मगुरू पोप का विशेष अवसरों पर दिया जाने वाला उपदेश ग्रहण करते हैं।

वेटिकन स्थित इस रोमन कैथोलिक चर्च से दुनिया भर के कैथोलिक चर्चों को संचालित किया जाता हैं। चर्च के नियमानुसार प्रत्येक बिशप का कार्यकाल उनकी 75 वर्ष की उम्र तक ही होता है, इसके बाद उन्हें रिटायर होना पड़ता है। नए बिशप के चयन में इलेक्शन की प्रक्रिया नहीं है। प्रत्येक धर्मप्रान्त के बिशप का चयन उस क्षेत्र विशेष के सभी बिशप मिलकर सवार्नुमति से करते हैं। उसके बाद सहमति के बाद जब पोप उस नाम पर अपनी मुहर लगा दें तभी नए बिशप का नाम घोषित किया जाता है।

चर्च के ठीक सामने के विशाल मैदान को सेंट पीटर स्क्वेयर कहा जाता है जहां शानदार फव्वारे स्वागत करते हैं। हम वैटिकन सिटी के उस भव्यतम चर्च में गए तो कड़ी सुरक्षा व्यवस्था आधुनिक जांच यंत्रों द्वारा की जा रही थी। चर्च के अंदर प्रवेश करते हुए कैमरा तो साथ ले जा सकते हैं लेकिन किसी भी धातु की कोई भी वस्तु, चाकू, लाइटर आदि नहीं ले जा सकते।

सबसे आश्चर्यजनक था बिना बाजू अथवा खुले गले वाले वस्त्र पहनी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। वैसे बाहर बंग्लादेशी और अफ्रीकी हॉकर तन ढकने के लिए स्कार्फ आदि बेच रहे थे। भारत में मेजपोश के लिए अक्सर बाजारों में बिकने वाले ये रंग-बिरंगे स्कार्फ समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार काफी महंगे थे।
विशाल हॉल विश्व प्रसिद्ध पेंटिंग्स और संगमरमर पर शानदार नक्काशी से शोभायानमान था। सोने की नक्काशी भी आकर्षक थी।

एक प्रकार से यह स्थान चर्च के साथ-साथ कला-संग्रहालय भी प्रतीत हो रहा था। एक स्थान पर ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अनेक भाषाओं में प्रचार सामग्री एवं पुस्तकें मुफ्त वितरित की जा रही थी। चर्च में संग्रहालय भी है लेकिन, उसके लिए लिफ्ट के बावजूद सैकड़ों सीढ़ियांं चढ़नी पड़ती हैं। इसलिए मेरे जैसे अधिकांश लोग उसे देखने से वंचित रहे। संग्रहालय में प्रवेश का शुल्क भी है।

बाहर निकले तो सबसे अधिक आश्चर्य हुआ ढेरों भिखारियों को देखकर। दुनिया के इस संपन्न माने-जाने वाले स्थान पर भी भिखारी? ईसाइयों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ यह एक पर्यटक स्थल भी है, जहां केवल ईसाई धर्म नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी उसके वास्तु सौंदर्य को निहारने के लिए आते हैं। वेटिकन में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय पर्यटकों की उपस्थिति भी मेरी इस धारणा को पुष्ट कर रही थी।

लगभग यही स्थिति भारत के तिरूपति जैसे स्थानों की भी है। कुछ घंटे वहां बिताने के बाद हम रोम में रात्रि विश्राम के लिए होटल के लिए रवाना हुए। वेटिकन में वन-वे (एक तरफा) यातायात का नियम है परंतु एक कार को गलत दिशा से आता देखकर मैं चौंका लेकिन तब तक स्विस गार्ड उपस्थित था। उसने उसे विनम्रता से वापस भेज दिया।


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