अगर युवा पीढ़ी की बात की जाए तो युवा पीढ़ी पूरी तरह से मोबाइल और सोशल मीडिया की लत में उलझी हुई है। जिससे ना सिर्फ़ उनका ध्यान करियर से भटक रहा है, बल्कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी दिन पर दिन गिरता जा रहा है। ऐसे में हर माता पिता के मन में यही सवाल उठता है, कि आखिर वे अपने बच्चों का सहारा कैसे बने, और इस मोबाइल और सोशल मीडिया के जाल से उन्हें कैसे निकालें।
दिखावे की जिंदगी जीना
आज का हर एक युवा सोशल मीडिया जरूर चलाता है, सोशल मीडिया पर हमें हमेशा सब लोगों की एकदम परफेक्ट लाइफ ही नजर आती है, सब अपने बारे में अच्छी अच्छी चीजें ही सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं, जिसे देखकर हर किसी को यह लगता है कि सामने वाले व्यक्ति की जिÞंदगी बहुत अच्छी है, वह अपनी जिदगी में बहुत मजे कर रहा है, और खुश है बस एक हम ही खुशहाल नहीं है। यही तनाव का सबसे मुख्य कारण है। लेकिन सिर्फ़ यही एक कारण नहीं है ऐसे और भी कारण है, जिन्हें हम आपको आगे बताएँगे।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव रहना
इस दुनिया में मौजूद तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट,वॉट्सऐप आदि। इन सभी प्लैटफॉर्म पर हर एक युवा एक्टिव रहता है, सोने से पहले अपने मोबाइल को चेक करना और तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को चेक करना, फिर उठने के तुरंत बाद भी ऐसा ही करना, ये आदत युवा पीढ़ी को दिन पर दिन असल जिदगी से दूर कर रही है। युवा पीढ़ी अपनी असल जिदगी को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है, उन्हें सिर्फ़ सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाली दिखावे वाली जिदगी पसंद आती है और वे भी हरदम उसी जिदगी को जीने का प्रयास करते हैं।
दौड़ का हिस्सा बनना
जिदगी में अच्छा परफॉर्म करने का दबाव हर एक बच्चे को बचपन से ही दिया जाता है, पहले स्कूल में अच्छा परफॉर्म करना, फिर कॉलेज में अच्छा परफॉर्म करना, फिर अच्छी पढ़ाई कर अच्छी नौकरी के पीछे दौड़ना, फिर ज्यादा कमाई के पीछे भागना, जीवन में ये भागदौड़ कभी रुकती ही नहीं है, यही कारण है कि आजकल युवा पीढ़ी सक्षम होने के बावजूद भी खुश नजर नहीं आती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास जो कुछ भी है वह पर्याप्त नहीं है उन्हें और अच्छा पाने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
डिजिटल वर्ल्ड में ज्यादा समय बिताना
डिजिटल वर्ल्ड में ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के चक्कर में युवा पीढ़ी लोगों से मिलने जुलने में कतराने लगी है, सामाजिक कार्यक्रमों में जाना युवा पीढ़ी ने पूरी तरह से बंद कर दिया है, यही कारण है कि अक्सर युवा पीढ़ी अकेलापन महसूस करती है और तनाव में रहती है। देखा जाए तो सोशल मीडिया के जरिए युवा पीढ़ी किसी से कितनी भी बातें कर सकती है, लेकिन जब बात आती है आमने सामने बात करने की तो युवा पीढ़ी इस इंटरेक्शन से दूर भागती नजर आती है।
माता-पिता कैसे करें बच्चों की मदद
दोस्ताना व्यवहार रखें : माता-पिता को सबसे पहले यह समझने की जरूरत है की जैसे-जैसे जनरेशन बदलती है, वैसे-वैसे हर पीढ़ी में बदलाव आते हैं, इसलिए अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें, जिससे की बच्चे खुलकर अपने मन की बात आपसे साझा कर सके। इस बात का ध्यान रखें कि जब बच्चे खुलकर आपसे बात साझा कर रहे हो, तब आप उन्हें जज न करें, बल्कि ध्यान से उनकी बात समझें और उन्हें यह भरोसा दिलाएं, कि आप अपने बच्चों की हर प्रकार की बात सुनेंगे और समझेंगे।
प्रेशर न डालें : करियर के लिए अपने बच्चों पर जरूरत से ज्यादा प्रेशर न डालें, उन्हें किसी और के जैसे बनने या कमाने के लिए ना कहें। आप अपने बच्चों की रूचियों और क्षमताओं को समझें, और उन्हें अपने हिसाब से आगे बढ़ने दें।
-भावना चौबे