पैसा लेकर सवाल पूछने का मामला इन दिनों देश की संसद में गर्म है। दिलचस्प ये है कि ऐसे ही एक मामले में जो सांसद सजा काट चुका है, वही दूसरे पर आरोप लगा रहा है। हालांकि इससे आरोप की अहमियत कम नहीं हो जाती। मामला संसद की संबन्धित कमेटी के समक्ष विचाराधीन है। सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के बहुत सारे देशों में जहां तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था है, पैसा लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले लगातार उजागर होते रहते हैं। असल में यह पूंजीवादी व्यवस्था की एक अदा है। सभी जानते हैं कि आज दुनिया भर में लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था काले धन के ही बूते चल रही है। यही वजह है कि पानी की तरह पैसा बहा कर हर हाल में चुनाव जीतने की सनक पूरी दुनिया में फैली हुई है और इससे जुड़े कदाचार भी सारी दुनिया में एक जैसे ही हैं।
सांसदों के भ्रष्टाचार के कुछ हालिया चर्चित मामलों में वर्ष 2010 में अमेरिकी पूर्व सांसद जॉन एनसाइन, वर्ष 2013 में ब्रिटेन में पैसा लेकर सवाल पूछने के मामले में कई सांसदों का इस्तीफा, वर्ष 2015 में मलेशिया के पूर्व प्रधानमन्त्री नजीब रजक की गिरफ्तारी, वर्ष 2016 में ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले का संज्ञान लिया जिसमें देश के 100 से अधिक सांसदों ने एक कॉन्सट्रक्शन कंपनी ओडेब्रेश से घूस लिया था। आॅपरेशन ‘कार वाश’ नामक इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि पूर्व राष्ट्रपति लूला द सिल्वा समेत बहुत सारे बड़े राजनीतिज्ञों की गिरफ्तारी हुई थी तथा वर्ष 2016 में ही दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति पार्क गुइन हे के खिलाफ महाभियोग आदि घूसखोरी के ही चर्चित मामले हैं।
सुश्री महुआ मोइत्रा के मामले की गंभीरता इस बात से बढ़ जाती है कि क्या उन्होंने वास्तव में अपना लोकसभा पोर्टल का ‘लॉग इन पासवर्ड’ किसी बाहरी व्यक्ति को दिया था? अगर ऐसा किया गया तो यह संभवत: अपनी तरह का पहला ज्ञात मामला होगा। बहरहाल, जरूरी अधिकारों से संपन्न संसद की एक कमेटी मामले की जांच कर रही है और दूसरी तारीख पर समन की जाने पर देश के नेताओं की जानी-मानी स्टाइल में सुश्री महुआ ने कमेटी को कह दिया है कि ‘अपने संसदीय क्षेत्र की व्यस्तताओं’ के चलते वो निर्धारित तिथि पर उपस्थित नहीं हो पाएंगीं और यह कि उन्हें एक सप्ताह बाद की कोई तिथि दी जाए।
देश की संसद में पैसा लेकर सवाल पूछने या सांसदों द्वारा पैसा लेकर किसी की अनुचित पैराकारी करने के मामले बहुत समय से चले आ रहे हैं। जांच एजेन्सियों या संसदीय कमेटियों द्वारा दोषी पाये जाने पर भी अभी तक ज्ञात अधिकतम सजा संसद से सिर्फ छह महीने के निलम्बन की ही है जो अभी तक सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के निशिकान्त दूबे को दी गई है और इन्होंने ही सुश्री महुआ मोइत्रा के खिलाफ ताजा मामला उठाया है।
वर्ष 1993 में केंद्र की तत्कालीन अल्पमत कांग्रेस सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा से ‘नोट के बदले समर्थन’ हासिल करने के मामले में सीबीआई जांच के बाद केस यद्यपि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था लेकिन अदालत ने इसे वर्ष 1998 में यह कहते हुए खारिज कर दिया कि संविधान की धारा 105/2 के तहत सांसदों को विशेषाधिकार प्राप्त है और संसद के भीतर हुए किसी कृत्य के लिए उनके विरुद्व अदालती कार्यवाही नहीं की जा सकती। हालांकि अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट इस मामले की पुन: सुनवाई या समीक्षा के लिए तैयार हो गया है। यही कारण है कि घूसखोरी या आर्थिक कदाचार के मामले में आज तक कोई भी सांसद जेल नहीं भेजा गया है। अधिकतम सजा महज निलम्बन की ही हुई है।
सुश्री मोइत्रा मामले का सवाल उठाने वाले भाजपा सांसद निशिकान्त दूबे के कदाचार मामले में आरोप है कि उन्होंने वर्ष 2021 में किसी व्यवसायी से संसद में सवाल उठाने के बदले 50 करोड़ रुपया लिया था। सीबीआई व संसदीय कमेटी द्वारा दोषी पाये जाने पर वे छह महीने यानी 22 सितम्बर 2021 से 21 मार्च 2022 तक के लिए निलम्बित किये जा चुके हैं। सीबीआई ने केस कोर्ट में दाखिल कर रखा है। वर्ष 2018 में महाराष्ट्र से भाजपा सांसद संजय धोत्रे को एक व्यवसायी से पांच करोड घूस लेते गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने अपनी जांच में मामले को सही पाया और केस में चार्जशीट दाखिल कर रखा है। मुकदमा अभी न्यायालय में चल रहा है।
भारतीय संसद की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि 04 अगस्त 2023 तक सांसदों के कदाचार यानी भ्रष्टाचार, घूस, घृणा बयान व कुछ अन्य तरह के कुल 125 मामले लंबित पड़े हुए हैं। इनमें से 27 भाजपा सांसदों के खिलाफ हैं और काफी गंभीर हैं। सत्तारुढ़ दल होने के नाते भाजपा की यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह अपनी पार्टी के सांसदों के कदाचार की भी वैसी ही मुस्तैदी से जांच करे, जैसा कि वह विपक्षी सांसदों के मामलों में करती आ रही है। भाजपा सांसदों के कदाचार मामलों में मुख्य रूप से महाराष्ट्र से संजय धोत्रे, उत्तर प्रदेश से बृजभूषण शरण सिंह, खदान मामले में लाइसेंस के लिए एक व्यवसायी से 20 करोड़ रुपये लेने का मामला, मध्य प्रदेश की सांसद प्रज्ञा ठाकुर, एक विदेशी व्यवसायी से मेडिकल सामाग्री के ठेके के नाम पर 10 करोड़ रुपये का मामला, गुजरात के देवसिंह चौहान, बैंक से कर्ज दिलाने के नाम पर एक व्यवसायी से 05 करोड़ रुपये, कर्नाटक से अनन्त हेगड़े एक व्यवसायी से सड़क ठेका दिलाने के नाम पर 03 करोड़ रुपेय तथा बिहार से गिरिराज सिंह, पॉवर प्लान्ट को कोयला आपूर्ति ठेका दिलाने के नाम पर 02 करोड़ रुपये दिलाने के मामले काफी चर्चित रहे हैं। यहां यह ध्यान रखना है कि किसी सांसद के खिलाफ कदाचार का मामला लंबित होने का यह मतलब नहीं होता कि उसने कदाचार किया ही है। यह तो जांचोपरान्त ही साबित होता है।
सुश्री महुआ मोइत्रा मामले के बहाने कई सवाल भी सिर उठाते हैं। मसलन, सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि क्या इस तरह के सभी पूर्ववर्ती मामलों को संसद ने निपटा दिया है? यदि नहीं, तो इस मामले में ऐसा खास क्या है जो इतनी जल्दबाजी से इसे उठा लिया गया है? सभी जानते हैं कि सुश्री मोइत्रा और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस सत्तारुढ़ भाजपा तथा प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ काफी समय से मुखर और आक्रामक रही हैं। पूर्व से लंबित सैकड़ों ऐसे ही मामलों को छोड़कर उसी तरह के एक नए मामले में तेजी दिखाना संस्थाओं की मंशा पर सवाल उठाता है। वैसे भी संसद की शुचिता बनाए रखने के लिए विभिन्न संस्थाओं ने जो आधा दर्जन से अधिक सुझाव दिए हैं, उसमें सबसे प्रमुख सुझाव संसदीय कार्य प्रणाली में पारदर्शिता बनाये रखने का है, ताकि नागरिकों को लगे कि सब कुछ नियमानुसार हो रहा है। गुनाह पर सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन देश की जनता को यह जरूर लगे कि न्याय हो रहा है। अन्यथा देश में नेताओं, राजनेताओं और सत्ताधीशों की दशा तो ऐसी हो गई है कि बरबस ही मरहूम अदम र्गंडवी की ये पंक्तियां याद आ रही हैं-पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें, संसद बदल गई है यहां की नखास में। लेकिन यह हालत बदलनी जरूरी है।