जिस भारत देश में स्कूली शिक्षा में प्राइमरी कक्षा की इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में सभी धर्मों के महापुरुषों की जीवन गाथा केवल इसी मकसद से पढ़ाई जाती थी ताकि देश के कर्णधार बच्चों को न केवल उनके व्यक्तित्व के बारे में पता चल सके बल्कि उनके प्रति आदर, सत्कार, सम्मान व स्नेह भी पैदा हो। आज उसी देश में सद्भाव व सौहार्द की नहीं बल्कि साम्प्रदायिक नफरत के बीज बोने जैसा खतरनाक खेल खेला जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के लाख मना करने व चेतावनी देने के बावजूद देश के मुख्य धारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया के फेस बुक, वॉट्सएप्प व एक्स (ट्विटर) जैसे अनेक प्लेटफॉर्म्स पर धड़ल्ले से सांप्रदायिकता का जहर उगला जा रहा है। चूंकि मीडिया व सोशल मीडिया इस तरह के विषवमन करने वाले अनेक तत्वों को उन्हें प्रचारित कर ‘हीरो’ बना चुका है और ऐसे अनेक स्वयंभू धर्मगुरु से लेकर अपराधी प्रवृत्ति के तत्वों तक समाज में जहर घोल कर व सांप्रदायिक नफरत फैलाकर आज के दौर के चर्चित व्यक्ति बन चुके हैं और प्रसिद्धि हासिल कर चुके हैं, अत: इन्हीं का अनुसरण कर मानो नफरत के कारोबारियों की पूरी फौज धड़ल्ले से मैदान में उतर आई है और बेफिक्र होकर समाज में नफरत का जहर घोल रही है। इनमें से अधिकांशत: समाज के निठल्ले, बेरोजगार, उपेक्षित, अशिक्षित, सांप्रदायिकतावादी, पूर्वाग्रही तथा सामाजिक एकता को नापसंद करने वाली जन्मजात सोच रखने वाले लोग शामिल हैं। इन्हें मालूम है कि चूंकि उनके इस नफरती अभियान से सत्ता पक्ष खुश होगा, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होगी और संभव है कि नफरत फैलाने में ज्यादा महारत रखने का ‘सफल प्रदर्शन’ करने पर उन्हें किसी ‘रेवड़ी’ से भी नवाज दिया जाए।
पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी ने तेलंगाना राज्य में अपने प्रत्याशियों की जो सूची जारी की उसमें एक नाम विधायक टी राजा सिंह का भी था। पार्टी ने उन्हें इस बार भी उनकी गोशामहल सीट से मैदान में उतारने का फैसला किया है। टी राजा 2014 से इसी सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं। इनका संक्षिप्त परिचय यह है कि यह रानजीति में आने से पूर्व बजरंग दल से जुड़े थे। हमेशा विवादों से घिरे रहने वाले टी राजा के विरुद्ध अनेक थानों में 75 से भी अधिक एफआईआर दर्ज हैं। इनमें से अधिकांश प्राथमिकी हेट स्पीच, लॉ एंड आॅर्डर के उल्लंघन और कर्फ़्यू के आदेशों के उल्लंघन जैसे मामलों में दर्ज हैं। पिछले कुछ समय से राजा सत्ता द्वारा मिलती जा रही लगातार छूट या शह से उत्साहित होकर कुछ ज्यादा ही नफरत उगलने लगे थे। टी राजा की पूरी राजनीति व शोहरत ही नफरत की बुनियाद पर तिकी रही है। उन्होंने 2017 में बॉलीवुड फिल्म पद्मावत की रिलीज को लेकर मचे हंगामे के दौरान भी कई विवादित बयान दिए थे। उन्होंने हैदराबाद के पुराने शहर को मिनी पाकिस्तान बताया था। जुलाई, 2017 में उन्होंने बंगाल में हिंदुओं से 2002 के गुजरात दंगों की तरह जवाब देने को कहा था। इस तरह 2018 में उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर कहा था कि अगर वह देश नहीं छोड़ते तो उन्हें गोली मार देनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों की धार्मिक किताब कुरआन पर प्रतिबंध लगाने को भी कहा था और इसे ग्रीक पुस्तक बताते हुए कुरआन को देश में आतंकवाद का कारण बताया था। उनकी इसी नफरत पूर्ण पोस्ट की वजह से 2020 में उन्हें फेस बुक ने प्रतिबंधित भी कर दिया था। ऐसा करते समय फेस बुक ने कहा था कि टी राजा ने उस पॉलिसी का उल्लंघन किया है, जो हिंसा और नफरत को बढ़ावा देने या उसमें शामिल होने वाले लोगों को फेस बुक पर उपस्थिति से रोकता है।
इसी तरह जब भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे व स्वतंत्र भारत के पहले आतंकवादी हत्यारे नाथू राम गोडसे को देशभक्त बताती हैं तो प्रधानमंत्री उनसे रुष्ट होने का बयान तो जरूर देते हैं परन्तु उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करते? अनुराग ठाकुर व तेजस्वी सूर्य जैसे कई लोग नफरत फैलाने के बाद पदोन्नत होते दिखाई देते हैं। कोई शस्त्र धारण करने का आवाह्न समुदाय विशेष से कर रहा है तो किसी ने सोशल मीडिया पर तलवारों की दुकान ही खोल रखी है। कोई चाकुओं की धार तेज रखने को कह रहा है तो कोई दस पांच बच्चे पैदा करने की सलाह दे रहा है। ऐसे माहौल में कौन नहीं चाहेगा कि हिंसा व नफरत की आग में ही तपकर क्यों न सत्ता के करीबियों में अपना शुमार किया जाए? अनजानी व गुमनामी भरी जिंदिगी जीने वाले लोग भला क्यों न चाहेंगे कि केवल नफरती पोस्ट के जरिये धर्म ध्वजा बुलंद कर क्यों न ‘प्रसिद्धि’ की राह तय की जाए? और अब तो नफरत का यह बाजार इतनी कुरूपित हो चुका है कि यही नफरती ट्रोल फस्तीन में इस्राइलियों द्वारा किए जा रहे नरसंहार का जश्न मना रहे हैं और बार बार हमास या फस्तीनियों को ही लड़ाई का जिम्मेदार यहां तक कि उन्हीं को क्रूर ठहराने पर तुले हैं? कई ने तो अपनी प्रोफाइल पर भारतीय तिरंगे की जगह इस्राइली ध्वज तक लगा दिया है।
शम्भू रैगर व मोनू मानेसर जैसे अनेक गुंडे मवाली ही नहीं बल्कि स्वयं को पढ़े लिखे कहलाने का शौक पालने वाले अनेकानेक स्वयंभू लेखक, कवि, प्रेरक, प्रवचनकर्ता, लेक्चरबाज, यहां तक कि सत्ता लोभी अनेक फिल्मी लोग व तमाम स्वयंभू पत्रकार भी इस अंधी रेस में दौड़ लगा रहे हैं। सवाल यह है कि नफरत के बाजार में हिंसा व नफरत के सौदागरों द्वारा सोशल मीडिया पर पूरी आजादी से इस कद्र नफरत फैलाना और उनका बिना किसी कानूनी बाधा के उनका बेलगाम घूमना यह सब समाज को विभाजित करने का एक सुनियोजित षड़यंत्र नहीं तो और क्या है?