Monday, July 1, 2024
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खाद्य सुरक्षा पर घोषणाओं की समग्र पड़ताल हो

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ARVIND SARDANAखाद्य सुरक्षा अधिनियम के मुताबिक सभी को भोजन उपलब्ध होना चाहिए, लेकिन सरकारें योजनाओं में रद्दो-बदल करके लोगों को उससे वंचित कर रही हैं। कहा जा रहा है कि इससे सरकारी खजाने का पैसा बचेगा। सवाल है कि क्या इस तरीके से भुखमरी पर काबू पाया जा सकेगा? किसी भी सरकार की घोषणाओं के साथ कई अनकही बातें होती हैं। उन्हें समग्र रूप से समझने की जरूरत होती है। हाल ही में दो घोषणाएं एक साथ की गई हैं-एक बुलंद आवाज में और दूसरी दबे स्वर में। जैसा कि स्पष्ट है, भारत में खाद्य सुरक्षा अधिनियम पहले से चला आ रहा है। अब यह ऐलान किया गया है कि एक वर्ष के लिए राशनकार्ड धारकों को पांच किलो अनाज प्रति माह/प्रति व्यक्ति मुफ्त में दिया जाएगा। इससे पहले लोग हर माह दो रुपए प्रति किलो गेहूं और तीन रुपए प्रति किलो चावल प्राप्त कर रहे थे। यानी अब हर व्यक्ति के लिए 10 या 15 रुपए की बचत होगी। साथ में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अतिरिक्त अनाज वितरण बंद किया जा रहा है। इस योजना के चलते हर गरीब व्यक्ति को पांच किलो अतिरिक्त अनाज मुफ्त में दिया जा रहा था। अब गरीबों को कुल पांच किलो अनाज उपलब्ध होगा, 10 किलो नहीं। एक गरीब मजदूर जिसे राशन के आलावा बाजार से पांच किलो गेहूं खरीदना पडता है, उसे 100 से 125 रुपए खर्च करना होगा और उसके लिए राशन में बचत 10 रुपए की होगी।

दोनों घोषणाओं को एक साथ देखें तो यह एक हाथ से देना और दूसरे हाथ से भारी वसूलना है। ऐसा क्यों किया जा रहा है? इसके कई कारण हैं। मुख्य रूप से सरकार मीठी छुरी के साथ वितीय भार कम करना चाहती है। फ्री-राशन पर अतिरिक्त 15 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना बंद करने पर सरकार को एक लाख 80 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। इस संदर्भ में आने वाले बजट को ध्यान से देखने की जरूरत होगी।

दूसरा कारण यह है कि सरकार को अनाज, खासकर गेहूं के स्टॉक की चिंता होने लगी है। इस स्टॉक का उपयोग बाजार भाव को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। सरकार मैदा मिलों को यह गेहूं उपलब्ध करवाती है। ऐसा करना जरूरी है, पर इससे स्टॉक का कम होना स्वाभाविक है। खलबली मची है कि क्या हमारे पास सुरक्षित स्टॉक है? इन सबके पीछे यह कारण है कि पिछले वर्ष बिना होमवर्क किये निर्यात को खोल दिया गया था और बाद में इसे बंद करना पड़ा था।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में व्यापक धांधली एक अन्य बड़ा कारण है। यह व्यापक गड़बड़ी छोटा-मोटा लीकेज नहीं है। जैसा कुछ रिपोर्टें कह रही हैं कि यह बड़े पैमाने पर हो रहा है और बगैर राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है। हालांकि इसे साबित करना टेढी-खीर है, किन्तु वास्तविकता में कई जगहों पर यह राशन गरीबों तक पहुंचने के बजाय बाजार में बिक रहा है।

इस संदर्भ में विकल्प क्या हो सकता है? पहली बात तो यह स्वीकार करना होगा कि हम कोविड की मार से निकल रहे हैं, न कि निकल चुके हैं। खासकर ग्रामीण और शहर के असंगठित क्षेत्र को देखें तो पता चलता है कि अब तक लोगों का रोजगार अपेक्षित रूप से वापस नहीं लौटा है। यानी लोगों को मदद की जरूरत है। यह मदद किसी-न-किसी रूप में जारी रखना चाहिए। एक सुझाव यह आया है कि राशन-कार्ड धारकों की पांच किलो प्रति व्यक्ति की सीमा को बढ़ाकर सात या आठ किलो करना चाहिए।

इसके साथ-साथ हमें राशन की उचित मूल्य की दुकानों की व्यवस्था को सुधारने की मुहिम चलाने की भी जरूरत है। यह तभी संभव है जब इस कार्यक्रम में जन-सुनवाई जैसी कोई व्यवस्था बनाई जाए। इससे सार्वजनिक निगरानी की संभावना बनेगी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता आएगी और गरीबों को राशन पहुंचाना आसान होगा। कई राज्यों ने इसे सुचारू बनाया है और कायम भी रख रहे हैं। उनके अनुभवों से सीखकर इस व्यवस्था को सुचारू बनाना लक्ष्य होना चाहिए।

कई लोगों का सुझाव है कि हमें राशन-कार्ड धारकों की समीक्षा कर संख्या बढ़ाने की जरूरत है। वर्ष 2021 की जनगणना नहीं होने के कारण बहुत से लोग छूट गए हैं जो राशन के हकदार हैं। इसके अलावा कुछ विशेष समूहों पर ध्यान देने की जरूरत है, जैसे-वृद्ध, विधवा महिलाएं आदि। कुपोषण की स्थिति देखते हुए आंगनवाड़ी तक बच्चों एवं महिलाओं की पहुंच को ज्यादा बेहतर बनाने की जरूरत है।

इसी तरह स्कूल में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था सभी राज्यों में 10वीं कक्षा तक होना चाहिए। बहुत समय से सुझाव दिया जा रहा है कि राशन में दाल, तेल एवं मोटे अनाज शामिल होने चाहिए। इस योजना को अब इस रूप में लागू करना चाहिए। आमतौर पर तर्क दिया जाता है कि इस योजना में धांधली हो रही है, इसलिए उसे बंद कर देना चाहिए, लेकिन यह बेतुका तर्क है। इस समय धांधली दूर करने और पारदर्शिता से योजना को लागू करने की जरूरत है। इस तरह हम देखते हैं कि सरकारी घोषणाओं की समग्र पड़ताल जरूरी है।


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