एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता। और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता। एक दिन उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था। अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो? वह मित्र बोला : माफ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं। दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई। दूसरे मित्र ने कहा, मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊंगा, अंदर तक नहीं। वह बोला: बाहर के लिए तो मै ही बहुत हूं, मुझे तो अंदर के लिए गवाह चाहिए। फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था और अपनी समस्या सुनाई। तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि तीन मित्र कौन हैं? सब से पहला मित्र है हमारा अपना शरीर। हम जहा भी जाएंगे, शरीर रूपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता। दूसरा मित्र है शरीर के संबंधी जैसे :माता-पिता, भाई-बहन, मामा-चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह-दोपहर शाम मिलते हैं। तीसरा मित्र है: हमारे कर्म जो सदा ही साथ जाते हैं। आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। दूसरा मित्र संबन्धी श्मशान घाट तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते हैं तथा वहां से फिर वापिस लौट जाते हैं। तीसरा मित्र आपके कर्म हैं, कर्म जो सदा ही साथ जाते हैं, चाहे अच्छे हों या बुरे।