नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। एकादशी का दिन सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। एकादशी का व्रत विशेष रूप से मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए माना जाता है। यह दिन भक्तों के लिए भगवान विष्णु की उपासना और भक्ति का आदर्श समय होता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे कामदा एकादशी के नाम से जानते हैं, विशेष रूप से मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों के सभी अधूरे इच्छाएं पूरी हो सकती हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कामदा एकादशी पर व्रत करने से न केवल जन्मों के पाप नष्ट होते हैं, बल्कि व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। ऐसे में आइए जानते है कामदा एकादशी व्रत का महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा के बारे में…
कामदा एकादशी व्रत का महत्व
कामदा एकादशी का व्रत सांसारिक सुखों और कामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष माना गया है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से शुभ है जो संतान सुख, विवाह में सफलता, प्रेम संबंधों में मधुरता और वैवाहिक जीवन में संतुलन की कामना करते हैं। साथ ही, इस व्रत से पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट होते हैं और आत्मा को शुद्धि की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है। भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
पूजा विधि
कामदा एकादशी के दिन व्रती को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ और सात्विक वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद घर के पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। पीले पुष्प, चंदन, धूप-दीप, तुलसी दल, फल और नैवेद्य से भगवान विष्णु का पूजन करें। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। पूरे दिन व्रत रखें, यदि निर्जल व्रत संभव न हो तो फलाहार लें। रात्रि को विष्णु भजन, कीर्तन और जागरण करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र अथवा दक्षिणा दान देकर व्रत का पारण करें।
पौराणिक कथा
पद्म पुराण में कामदा एकादशी की एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है। प्राचीनकाल में रत्नपुर नामक नगर में ललित नामक गंधर्व और उसकी पत्नी ललिता रहते थे। ललित बहुत अच्छा गायक था और राजा के दरबार में संगीत प्रस्तुत करता था। एक दिन दरबार में गाते हुए उसकी स्मृति अपनी पत्नी की ओर चली गई, जिससे वह स्वर-लय में चूक गया। इससे नाराज होकर राजा ने उसे राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। यह देखकर उसकी पत्नी ललिता अत्यंत दुखी हुई और उसे अपने पति को श्राप से मुक्त करने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब वह श्रृंगी ऋषि के पास गई और उनसे समाधान पूछा। ऋषि ने उसे चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन कामदा एकादशी व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ यह व्रत किया और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने ललित को श्राप से मुक्त कर दिया। यह कथा दर्शाती है कि इस एकादशी का व्रत कितना प्रभावशाली और कल्याणकारी होता है।