एक बार एक धनवान ईसा मसीह के पास उनसे मिलने आया। उसे अपने सुखद जीवन में तो कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह स्वर्ग जाकर वहां का नजारा देखना चाहता था। उसने ईसा मसीह से निवेदन किया, आपने स्वर्ग का द्वार तो खोल ही दिया है। इसलिए अब कृपा कर मुझे भी वहां भिजवा दीजिए। मैं भी वहां जाना चाहता हूं। ईसा मसीह ने उसकी ओर देखा और पूछा, क्या तुम सचमुच स्वर्ग में जाना चाहते हो? क्या तुम्हारी वहां जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है? तुमने स्वर्ग जाने की अपनी पात्रता ठीक से परख ली है? कुछ कमी रह गई हो, तो उसे पूरी कर लो, फिर मेरे पास आना। तब में कुछ बता सकूंगा। इस पर धनवान ने उत्तर दिया-जी हां, मैं सचमुच स्वर्ग में जाना चाहता हूं। और इसके लिए मेरी तैयारी भी पूरी हो चुकी है। यह सुनकर ईसा ने फिर उससे कहा, पहले तुम अच्छी तरह से सोच लो और फिर उत्तर दो। धनवान ने कहा, जी हां, मैंने बहुत सोच समझकर ही उत्तर दिया है।
ईसा मसीह बोले, जब तुमने सोच ही लिया है और अब तुम्हारी तैयारी भी हो गई है, तो अपनी तिजोरियों की तमाम चाबियां मुझे सौंप दो। धनवान यह सुनकर अचकचा गया, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं भला। अपनी जिंदगी भर की कमाई किसी और को कैसे दे दूं। ईसा ने उससे कहा, तब फिर तुम स्वर्ग नहीं जा सकते। स्वर्ग जाने वाले इंसान में जो गुण होने चाहिए, वे तुममें नजर नहीं आते। तुम्हारी तो रग-रग में लालच समाया हुआ है। तुम जैसे लोगों के लिए स्वर्ग में कोई स्थान नहीं है। धनवान ने उनसे क्षमा मांगी और तय किया कि वह पहले खुद में स्वर्ग जाने की सलाहियत पैदा करेगा फिर ईसा मसीह से वहां भेजने का निवेदन करेगा।